बगोदर, गिरिडीह: बगोदर प्रखंड और आसपास के इलाके से बड़ी संख्या में मजदूर विदेशों और महानगरों में पलायन करते हैं. मगर वे वहां सुरक्षित नहीं रहते. वहां भी मजदूरों को शोषण और उत्पीड़न का दंश झेलना पड़ता है. प्रवासी मजदूरों के विदेश और महानगरों में फंसने से उपरोक्त बातें स्पष्ट होती हैं.
पलायन शौक नहीं, मजबूरी
मजदूरों का विदेशों और महानगरों में पलायन करना उनका शौक नहीं, बल्कि मजबूरी है. परिजनों के लिए 2 जून की रोटी का जुगाड़ स्थानीय स्तर पर नहीं हो पाता है, तब उनका पलायन विदेश और महानगरों में होता है. लेकिन दुख की बात यह है कि सात समुंदर पार जाने के बाद भी प्रवासी मजदूर और उनके परिजन सुरक्षित नहीं हैं. विदेशों और महानगरों में प्रवासी मजदूरों को कभी बंधक बनना पड़ रहा है तो कभी मजदूरी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.
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इधर खाई, उधर पहाड़ वाली स्थिति
इसके अलावा हादसे में मौत होने के बाद परिजनों के पास इधर खाई, उधर पहाड़ वाली स्थिति उत्पन्न हो जाती है. विगत 5 सालों के आंकड़ों पर गौर करें तो दर्जनों प्रवासी मजदूरों की मौत महानगरों और विदेश में हो चुकी.
सऊदी और ओमान में अब भी फंसे हैं कई मजदूर
ओमान और सऊदी में बगोदर इलाके के 20 मजदूर अभी भी फंसे हुए हैं. इस घटना ने वहां फंसे मजदूरों उनके परिजनों सहित इलाके के तमाम प्रवासी मजदूरों को झकझोर कर रख दिया है. प्रखंड के माहुरी गांव के इमरान अंसारी और अकबर अंसारी सऊदी में फंसे हुए हैं, जबकि इसी गांव के राजू पासवान, खूबलाल पासवान, विजय महतो, योगेंद्र महतो सहित 18 मजदूर ओमान में फंसे हुए हैं.
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सरकार से मजदूरों की वापसी की गुहार
सऊदी में फंसे मजदूर के परिजनों की माने तो उनके परिजन वहां एक तरह से बंधक बनाकर रखे गए हैं. न तो अच्छे से खाना-पीना दिया जा रहा है और न हीं घरवालों से बात करने दी जा रही है. परिजनों ने सरकार से मजदूरों की वापसी की गुहार लगाई है.
अफगानिस्तान में अगवा मजदूरों का नहीं मिला सुराग
विदेश और महानगरों में प्रवासी मजदूरों की अव्यवस्था का एक बड़ा उदाहरण अफगानिस्तान में बगोदर के 2 मजदूरों का एक साल से कोई सुराग नहीं मिल पाना है. 6 मई 2018 को अफगानिस्तान में 7 भारतीय मजदूरों को अगवा कर लिया गया था. जिसमें झारखंड के चार मजदूर शामिल हैं. उसमें 3 मजदूर बगोदर प्रखंड क्षेत्र के हैं. अगवा मजदूरों में माहुरी के हुलास महतो और घाघरा के प्रसादी और प्रकाश महतो शामिल हैं. जबकि चौथा मजदूर हजारीबाग जिले के टाटी झरिया प्रखंड के बेडम निवासी काली महतो शामिल है. इसमें काली की वापसी हो चुकी है.
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कई मामले
बता दें कि एक साल पहले इसमें से एक मजदूर प्रकाश महतो की वापसी होने का मामला सामने आया था, मगर अब तक वह घर नहीं पहुंचा है. मजदूरों के विदेश और महानगरों में शोषण और प्रताड़ना की कहानी यहीं खत्म नहीं होती है. विदेशों में रहने वाले मजदूरों के दर्द भरी कई कहानियां हैं. कभी उनके परिजनों को शव का दीदार के लिए भी 6 महीने तक का इंतजार करना पड़ा है तो कभी मजदूरों को जिंदगी और मौत की जंग भी लड़नी पड़ी है. विगत पांच सालों की बात करें तो दर्जनों मजदूरों की हादसे में विदेशों में मौत हो चुकी है, जबकि सैकड़ों की संख्या में मजदूरों के फंसने का मामला समय-समय पर सामने आता रहा है.