रांचीः देश भर में आज भगवान महावीर की जयंती मनाई जा रही है. महावीर जयंती हर साल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाई जाती है. भगवान महावीर का सबसे प्रसिद्ध मंदिर गिरिडीह में है, जिसे सम्मेद शिखर के नाम से और पारसनाथ के नाम से जाना जाता है. चौबीस जैन तीर्थंकरों ने इस पहाड़ी पर मोक्ष प्राप्त किया. कुछ के अनुसार, नौ तीर्थकारों ने इस पहाड़ी पर मोक्ष प्राप्त किया. उनमें से सभी के लिए पहाड़ी पर एक मंदिर है. यहां हर साल लाखों जैन धर्मावलंबी आते हैं.
रांची: देश भर में आज भगवान महावीर की जयंती मनाई जा रही है. महावीर जयंती हर साल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाई जाती है. भगवान महावीर को वीर, वर्धमान, अतिवीर और सन्मति के नाम से भी जाना जाता है.
599 ईसा पूर्व जन्म
भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे. उनका जन्म 599 ईसा पूर्व बिहार के वैशाली जिले के कुंडलपुर में लिच्छिवी वंश में हुआ था. उनके पिता महाराज शिद्धार्थ और माता महारानी त्रिशला थीं. जैन धर्म के अनुयायियों का मत है कि भगवान महावीर ने 12 सालों तक कठोर तप किया और अपनी इंद्रियों को वश में कर लिया, जिससे उनका नाम विजेता भी पड़ा.
![Giridih is an important tirtha place for the people of Jainism](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/6682767_article1.jpg)
माता त्रिशला को दिखे थे स्वप्न
कहा जाता है कि भगवान महावीर के जन्म से पहले उनकी माता त्रिशला को 16 स्वप्न दिखे थे. उसमें चार दांतों वाला हाथी, सफेद वृषभ, एक सिंह, सिंहासन पर स्थित लक्ष्मी, फूलों की दो मालाएं, पूर्ण चंद्रमा, सूर्य, दो सोने के कलश, समुद्र, सरोवर, मणि जड़ित सोने का सिंहासन आदि उन्होंने अपने सपने में देखे थे. इसका अर्थ था कि उनका पुत्र धर्म का प्रवर्तक, सत्य का प्रचारक, जगत गुरू, ज्ञान प्राप्त करने वाला, अन्य लक्षणों से युक्त होगा.
झारखंड-बिहार का सबसे बड़ा पर्वत पारसनाथ
जैन धर्म के साथ-साथ आदिवासियों के लिए पूजनीय इस पर्वत पर करोड़ों लोगों की आस्था है. जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थांकरों ने यहां मोक्ष की प्राप्ति की. ऐसे में जैन धर्मावलंबी इसे सम्मेद शिखर कहते हैं. वहीं आदिवासी समाज के लोग इस पर्वत को मरांग बुरु कह इस पर्वत की पूजा करते हैं.
![Giridih is an important tirtha place for the people of Jainism](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/6682767_articleeeee.jpg)
जैन धर्म का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल
पारसनाथ पहाडी झारखंड के गिरिडीह जिले में स्थित पहाड़ियों की एक श्रृंखला है. उच्चतम चोटी 1350 मीटर है. यह जैन के लिए सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल केंद्र में से एक है. वे इसे सम्मेद शिखर कहते हैं. 23वें तीर्थंकर के नाम पर पहाड़ी का नाम पारसनाथ रखा गया है. चौबीस जैन तीर्थंकरों ने इस पहाड़ी पर मोक्ष प्राप्त किया. कुछ के अनुसार, नौ तीर्थकारों ने इस पहाड़ी पर मोक्ष प्राप्त किया. उनमें से प्रत्येक के लिए पहाड़ी पर एक मंदिर है. पहाड़ी पर कुछ मंदिर 2,000 साल से अधिक पुराने माने जाते हैं.
यहां हर साल लाखों जैन धर्मावलंबी आते हैं. इसके साथ-साथ अन्य पर्यटक भी पारसनाथ पर्वत की वंदना करना जरूरी समझते हैं. गिरीडीह स्टेशन से पहाड़ की तलहटी मधुबन तक 14 और 18 मील है. पहाड़ की चढ़ाई उतराई और यात्रा करीब 18 मील की है.
जैन धर्म के शास्त्र में मंदिर का जिक्र
जैन धर्म शास्त्रों में लिखा है कि अपने जीवन में सम्मेद शिखर तीर्थ की एक बार भावपूर्ण यात्रा करने पर मृत्यु के बाद व्यक्ति को पशु योनि और नरक प्राप्त नहीं होता. यह भी लिखा गया है कि जो व्यक्ति सम्मेद शिखर आकर पूरे मन, भाव और निष्ठा से भक्ति करता है, उसे मोक्ष प्राप्त होता है. इस संसार के सभी जन्म-कर्म के बंधनों से अगले 49 जन्मों तक मुक्त वह रहता है. यह सब तभी संभव होता है, जब यहां पर सभी भक्त तीर्थंकरों को स्मरण कर उनके द्वारा दिए गए उपदेशों, शिक्षाओं और सिद्धांतों का शुद्ध आचरण के साथ पालन करें.
यहां के जानवार भी अंहिसक
इस प्रकार यह क्षेत्र बहुत पवित्र माना जाता है. इस क्षेत्र की पवित्रता और सात्विकता के प्रभाव से ही यहां पर पाए जाने वाले शेर, बाघ आदि जंगली पशुओं का स्वाभाविक हिंसक व्यवहार नहीं देखा जाता. इस कारण तीर्थयात्री भी बिना भय के यात्रा करते हैं. संभवत: इसी प्रभाव के कारण प्राचीन समय से कई राजाओं, आचार्यों, भट्टारक, श्रावकों ने आत्म-कल्याण और मोक्ष प्राप्ति की भावना से तीर्थयात्रा के लिए विशाल समूहों के साथ यहां आकर तीर्थंकरों की उपासना, ध्यान और कठोर तप किया.
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महावीर के 5 सिद्धांत
महावीर ने लोगों को समृद्ध जीवन और आंतरिक शांति पाने के लिए 5 सिद्धांत बताएं. आइए जानते हैं आखिर क्या हैं वो 5 सिद्धांत.
अहिंसा
भगवान महावीर का पहला सिद्धांत है अहिंसा, इस सिद्धांत में उन्होंने जैनों लोगों को हर परिस्थिति में हिंसा से दूर रहने का संदेश दिया है.
सत्य
भगवान महावीर का दूसरा सिद्धांत है सत्य. महावीर कहते हैं कि है पुरुष तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ. जो बुद्धिमान सत्य के सानिध्य में रहता है, वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है. यही वजह है कि उन्होंने लोगों को हमेश सत्य बोलने के लिए प्रेरित किया.
अस्तेय
भगवान महावीर का तीसरा सिद्धांत है अस्तेय. अस्तेय का पालन करने वाले किसी भी रूप में अपने मन के मुताबिक वस्तु ग्रहण नहीं करते हैं
ब्रह्मचर्य
भगवान महावीर का चौथा सिद्धांत है ब्रह्मचर्य. इस सिद्धांत को ग्रहण करने के लिए जैन व्यक्तियों को पवित्रता के गुणों को प्रदर्शन करने की आवश्यकता होती है.
अपरिग्रह
पांचवां अंतिम सिद्धांत है अपरिग्रह, यह शिक्षा सभी पिछले सिद्धांतों को जोड़ती है. माना जाता है कि अपरिग्रह का पालन करने से जौनों की चेतना जागती है और वे सांसारिक एवं भोग की वस्तुओं का त्याग कर देते हैं.