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गिरिडीहः निर्जला एकादशी पर मंदिरों में उमड़े श्रद्धालुे , विधि विधान से की पूजा अर्चना

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Published : Jun 2, 2020, 12:03 PM IST

निर्जला एकादशी गिरिडीह जिले में विधि विधान से मनाई जा रही है. बगोदर सरिया और बिरनी प्रखंड क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों के मंदिरों में श्रद्धालु पूजा पाठ कर रहे हैं. मान्यता है कि यह व्रत रखने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.

celebration of Nirjala Ekadashi in giridih
गिरिडीह में निर्जला एकादशी का व्रत

गिरिडीहः जिले में निर्जला एकादशी के मौके पर मंदिरों में भारी भीड़ देखी गई. बगोदर, सरिया और बिरनी प्रखंड क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों के मंदिरों में श्रद्धालु पूजा-पाठ कर रहे हैं. इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने निर्जला एकादशी का व्रत भी रखा है. मान्यता है कि एकादशी व्रत करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.

देखें पूरी खबर

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पंडित रीतेश मिश्रा ने बताया कि निर्जला एकादशी के दिन निर्जल रहकर भगवान विष्णु की आराधना की जाती है. यह व्रत रखने से साल की सभी एकादशी का व्रत करने का फल मिलता है. साथ ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति भी होती है. उन्होंने बताया कि ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी कहा जाता है. साल की सभी 24 एकादशियों में निर्जला एकादशी सबसे अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है. मान्यता है कि निर्जला एकादशी के दिन बिना जल के उपवास रहने से साल की सभी एकादशियों का पुण्य फल प्राप्त होता है.

इस एकादशी व्रत में पानी पीना वर्जित माना जाता है. इसलिए इस एकादशी को निर्जला कहते हैं. उन्होंने बताया कि इस भीम एकादशी या फिर पांडव एकादशी भी कहा जाता है. चूंकि भीम ने खुद यह एकादशी व्रत रखा था, तब से इस व्रत की महिमा और भी बढ़ गई है. भीम ने एक मात्र इसी उपवास को रखा था और मूर्छित हो गए थे. इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है.

गिरिडीहः जिले में निर्जला एकादशी के मौके पर मंदिरों में भारी भीड़ देखी गई. बगोदर, सरिया और बिरनी प्रखंड क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों के मंदिरों में श्रद्धालु पूजा-पाठ कर रहे हैं. इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने निर्जला एकादशी का व्रत भी रखा है. मान्यता है कि एकादशी व्रत करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.

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पंडित रीतेश मिश्रा ने बताया कि निर्जला एकादशी के दिन निर्जल रहकर भगवान विष्णु की आराधना की जाती है. यह व्रत रखने से साल की सभी एकादशी का व्रत करने का फल मिलता है. साथ ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति भी होती है. उन्होंने बताया कि ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी कहा जाता है. साल की सभी 24 एकादशियों में निर्जला एकादशी सबसे अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है. मान्यता है कि निर्जला एकादशी के दिन बिना जल के उपवास रहने से साल की सभी एकादशियों का पुण्य फल प्राप्त होता है.

इस एकादशी व्रत में पानी पीना वर्जित माना जाता है. इसलिए इस एकादशी को निर्जला कहते हैं. उन्होंने बताया कि इस भीम एकादशी या फिर पांडव एकादशी भी कहा जाता है. चूंकि भीम ने खुद यह एकादशी व्रत रखा था, तब से इस व्रत की महिमा और भी बढ़ गई है. भीम ने एक मात्र इसी उपवास को रखा था और मूर्छित हो गए थे. इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है.

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