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आदिवासी महिलाओं ने बदली अपनी मानसिकता, हड़िया की जगह अब परोस रही स्वादिष्ट भोजन - दुमका में राजकीय जनजातीय हिजला मेला महोत्सव

दुमका में आदिवासी महिलाएं शराब का व्यवसाय छोड़कर लोगों को स्वादिष्ट भोजन खिलाने के व्यवसाय से जुट गईं हैं. दरअसल, इन महिलाओं ने अपना एक समूह बनाकर ढाबे की शुरुआत की है, जिससे इनकी काफी अच्छी आमदनी हो रही है.

Tribal women opened a food stall in Dumka
आदिवासी महिलाओं का ढाबा
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Published : Feb 11, 2020, 6:16 PM IST

दुमका: समाज में बदलाव लाने के लिए हमेशा क्रांति की आवश्यकता नहीं होती, बस एक सकारात्मक प्रयास भी समाज में काफी बदलाव ला सकता है. कुछ ऐसा ही प्रयास कर रही हैं दुमका के हिजला ग्राम की आदिवासी समाज की महिलाएं. इन महिलाओं ने दुमका में आयोजित राजकीय जनजातीय हिजला मेला महोत्सव में एक ढाबा खोला है और लोगों को स्वादिष्ट भोजन परोस रही है. यहां खास बात यह है कि इनमें से अधिकांश महिलाएं मेले में पहले देसी शराब हड़िया बेचा करती थीं, लेकिन इन्हें लगा कि यह काम अच्छा नहीं है इससे समाज बिगड़ रहा है. जिसके बाद महिलाओं ने इस ढाबे की शुरूआत की.

देखें पूरी खबर

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पांच हजार रुपए से शुरू किया ढाबा

गरीब होने की वजह से इनके पास पूंजी कम थी. जिसके बाद सभी सदस्यों ने पांच सौ रुपये मिलाया और पांच हजार से यह ढाबा शुरू किया. यह सभी आपस में ही मिलकर खुद खाना बनाती हैं और लोगों को परोसती हैं. इतना ही नहीं ये साफ-सफाई में भी खास ध्यान देती हैं.

क्या कहती हैं महिलाएं

यह 10 महिलाओं का ग्रुप है, जिसमें सुनीता रानी जो ग्रेजुएट हैं कहती हैं पहले इस समूह की महिलाएं शराब बेचती थी जो उन्हें अच्छा नहीं लगता था. उन्होंने कहा कि इस व्यवसाय के शुरू होने से सभी आत्मनिर्भर हो रही हैं और इसमें किसी तरह की कोई परेशानी भी नहीं होती.

ये भी पढ़ें-पहले फर्नीचर अब एंबुलेंस से ढो रहे टायर, सवालों के घेरे में स्वास्थ्य विभाग

उन्होंने बताया कि यह व्यवसाय बहुत अच्छा चल रहा है. चार दिनों में काफी अच्छी आमदनी भी इस समूह ने प्राप्त किया है. पांच हजार की पूंजी लगाकर शुरू किए गए इस व्यवसाय में अब तक तीस हजार रुपये की बिक्री हो चुकी है. वहीं, समूह की अन्य महिला बताती हैं कि इस व्यवसाय के माध्यम से दूर से आए लोगों की भी सेवा करने का मौका मिलता है. इससे उन्हें काफी खुशी मिलती है.

इस ढाबे में मेला देखने पहुंचे लोग तो आ ही रहे हैं. साथ ही साथ ऐसे कई लोग जिन्होंने इस मेले में बाहर से आकर अपने दुकान या प्रदर्शनी लगाई है वह भी इस ढाबे में आकर भोजन कर रहे हैं. यहां दाल, चावल, सब्जी, रोटी, अंडा सब कुछ मिल रहा है. खास बात यह है कि ये महिलाएं खुद ही मालकिन हैं और खुद ही कर्मी. ऐसे में इनकी लागत मूल्य कम पड़ रहा है. इससे वो काफी सस्ते दर पर भोजन उपलब्ध करा रही है. वहीं, लोग भी खाने की तारीफ करते नहीं थकते.

दुमका: समाज में बदलाव लाने के लिए हमेशा क्रांति की आवश्यकता नहीं होती, बस एक सकारात्मक प्रयास भी समाज में काफी बदलाव ला सकता है. कुछ ऐसा ही प्रयास कर रही हैं दुमका के हिजला ग्राम की आदिवासी समाज की महिलाएं. इन महिलाओं ने दुमका में आयोजित राजकीय जनजातीय हिजला मेला महोत्सव में एक ढाबा खोला है और लोगों को स्वादिष्ट भोजन परोस रही है. यहां खास बात यह है कि इनमें से अधिकांश महिलाएं मेले में पहले देसी शराब हड़िया बेचा करती थीं, लेकिन इन्हें लगा कि यह काम अच्छा नहीं है इससे समाज बिगड़ रहा है. जिसके बाद महिलाओं ने इस ढाबे की शुरूआत की.

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पांच हजार रुपए से शुरू किया ढाबा

गरीब होने की वजह से इनके पास पूंजी कम थी. जिसके बाद सभी सदस्यों ने पांच सौ रुपये मिलाया और पांच हजार से यह ढाबा शुरू किया. यह सभी आपस में ही मिलकर खुद खाना बनाती हैं और लोगों को परोसती हैं. इतना ही नहीं ये साफ-सफाई में भी खास ध्यान देती हैं.

क्या कहती हैं महिलाएं

यह 10 महिलाओं का ग्रुप है, जिसमें सुनीता रानी जो ग्रेजुएट हैं कहती हैं पहले इस समूह की महिलाएं शराब बेचती थी जो उन्हें अच्छा नहीं लगता था. उन्होंने कहा कि इस व्यवसाय के शुरू होने से सभी आत्मनिर्भर हो रही हैं और इसमें किसी तरह की कोई परेशानी भी नहीं होती.

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उन्होंने बताया कि यह व्यवसाय बहुत अच्छा चल रहा है. चार दिनों में काफी अच्छी आमदनी भी इस समूह ने प्राप्त किया है. पांच हजार की पूंजी लगाकर शुरू किए गए इस व्यवसाय में अब तक तीस हजार रुपये की बिक्री हो चुकी है. वहीं, समूह की अन्य महिला बताती हैं कि इस व्यवसाय के माध्यम से दूर से आए लोगों की भी सेवा करने का मौका मिलता है. इससे उन्हें काफी खुशी मिलती है.

इस ढाबे में मेला देखने पहुंचे लोग तो आ ही रहे हैं. साथ ही साथ ऐसे कई लोग जिन्होंने इस मेले में बाहर से आकर अपने दुकान या प्रदर्शनी लगाई है वह भी इस ढाबे में आकर भोजन कर रहे हैं. यहां दाल, चावल, सब्जी, रोटी, अंडा सब कुछ मिल रहा है. खास बात यह है कि ये महिलाएं खुद ही मालकिन हैं और खुद ही कर्मी. ऐसे में इनकी लागत मूल्य कम पड़ रहा है. इससे वो काफी सस्ते दर पर भोजन उपलब्ध करा रही है. वहीं, लोग भी खाने की तारीफ करते नहीं थकते.

Intro:दुमका -
समाज में बदलाव लाने के लिए हमेशा क्रांति की ही आवश्यकता नहीं है बस एक सकारात्मक प्रयास भी समाज में काफी बदलाव ला सकता है । कुछ ऐसा ही प्रयास कर रही है दुमका के हिजला ग्राम की आदिवासी समाज की दस महिलाएं । इन्होंने दुमका में आयोजित राजकीय जनजातीय हिजला मेला महोत्सव में एक ढाबा खोला है और लोगों को स्वादिष्ट भोजन परोस रही है । यहाँ खास बात यह है कि इनमें से अधिकांश महिलाएं मेला में पहले देसी शराब - हड़िया बेचा करती थी लेकिन इन्हें लगा कि यह काम अच्छा नहीं है इससे समाज बिगड़ रहा है । इसके साथ अपना भी सम्मान कम हो रहा है तो क्यों न सम्मानपूर्वक जीने की राह तलाशी जाये ।

पांच सौ रुपये प्रति सदस्य मिलाकर पांच हज़ार से शुरू किया ढाबा ।
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गरीब होने की वजह से इनके पास पूंजी कम था । सबों ने पांच सौ रुपये करके मिलाया और पांच हज़ार से यह ढाबा शुरू किया है । यह सभी आपस में ही मिलकर खुद खाना बना रही है , परोस रही हैं और साफ सफाई कर रही है ।


Body:क्या कहती हैं महिलाएं ।
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इस ग्रुप इस 10 महिलाओं के समूह में सुनीता रानी जो ग्रेजुएट है वह कहती है पहले हमारे इस समूह की महिलाएं शराब बेचती थी जो इन्हें अच्छा नहीं लगता था क्योंकि इससे समाज बिगड़ रहा था । खुद को खराब लगता ही था । ऐसे में यह सोचा कि क्यों ना एक होटल खोला जाए । वह कहती हैं हमारा व्यवसाय बहुत अच्छा चल रहा है । चार दिनों में काफी अच्छी आमदनी भी हमने प्राप्त की है । पांच हज़ार की पूंजी लगाया था हमलोगों ने । इस 5 दिनों में तीस हज़ार रुपये की बिक्री हो चुकी है । वही समूह की अन्य महिला प्रेमलता कहती हैं कि हमलोग इस व्यवसाय के माध्यम से मेहमानों का ख्याल रख रहे हैं । काफी खुशी हो रही है हमें ।

बाईंट- सुनीता रानी टोप्पो , ढाबा संचालिका
बाईंट - प्रेमलता , ढाबा संचालिका


Conclusion:ग्राहकों को इस ढाबे का भोजन काफी पसंद आ रहा है ।
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इस ढाबे में मेला देखने पहुंचे लोग तो आ ही रहे हैं । साथ ही साथ ऐसे कई लोग जिन्होंने इस मेला में बाहर से आकर अपने दुकाने या प्रदर्शनी लगाई है वह भी इस ढाबे में आकर भोजन कर रहे हैं । यहां दाल , भात , सब्जी ,रोटी , अंडा सभी कुछ मिल रहा है । खास बात यह है कि ये महिलाएं खुद ही मालकिन है और खुद ही कर्मी ऐसे में इनका लागत मूल्य कम पड़ रहा है । इससे काफी सस्ते दर पर भोजन उपलब्ध करा रही है । भोजन के बाद लोगों का कहना है बिल्कुल घर जैसा टेस्ट है ।

बाईट - दिलीप कुमार , गोड्डा जिला निवासी

फाईनल वीओ -
इन गरीब महिलाओं ने अपनी बदली मानसिकता तो दिखा दी है । लेकिन यह मेला आठ दिनों का है , ऐसे में प्रशासन को चाहिए कि इनके लिए रोजगार का कोई अन्य राह उपलब्ध कराएं ताकि इनके चेहरे पर मुस्कान जो अभी दिखाई दे रही है वह सदा बनी रहे ।
मनोज केशरी
ईटीवी भारत
दुमका

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