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मंदिरों के गांव में आपका स्वागत है, 500 साल पुराने 72 मंदिरों में समाई है गुप्त काशी

दुमका के शिकारीपाड़ा में मंदिरों का गांव मलूटी है. यहां 400 से 500 साल पुराने एक दो नहीं बल्कि 72 मंदिर हैं. पहले मंदिरों की संख्या 108 थी, लेकिन धीरे-धीरे रखरखाव के अभाव में ये खत्म होते गए. हालांकि अब जो मंदिर शेष रह गए हैं, उसके लिए केंद्र और राज्य दोनों सरकारें काफी गंभीर है और इसका संरक्षण और जीर्णोद्धार का काम तेजी से चल रहा है. टेराकोटा पद्धति से बने इन मंदिरों की ख्याति अब दूर-दूर तक फैल चुकी है.

500 साल पुराने 72 मंदिरों में समाई है गुप्त काशी
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Published : Sep 27, 2019, 6:04 AM IST

दुमका: झारखंड की उपराजधानी दुमका के शिकारीपाड़ा में मंदिरों का गांव मलूटी है. यहां 400 से 500 साल पुराने एक दो नहीं बल्कि 72 मंदिर हैं. पहले मंदिरों की संख्या 108 थी, लेकिन धीरे-धीरे रखरखाव के अभाव में ये खत्म होते गए. हालांकि अब जो मंदिर शेष रह गए हैं, उसके लिए केंद्र और राज्य दोनों सरकारें काफी गंभीर है और इसका संरक्षण और जीर्णोद्धार का काम तेजी से चल रहा है. टेराकोटा पद्धति से बने इन मंदिरों की ख्याति अब दूर-दूर तक फैल चुकी है.

वीडियो में देखें पूरी खबर

जानें क्या है मंदिरों का इतिहास
इन मंदिरों के निर्माण का बहुत ज्यादा लिखित इतिहास नहीं है, लेकिन जानकारों के मुताबिक बीरभूम से सटे इलाकों के शासक राजा बसंत राय और उनके वंशजों ने इन मंदिरों के निर्माण 1690 से 1840 के बीच यानि 150 सालों में कराया था. वहीं, मलूटी में लगे झारखंड सरकार के पर्यटन विभाग के साइनबोर्ड के मुताबिक, मलूटी गांव बंगाल के मल्ल राजाओं की राजधानी हुआ करता था. इन्हीं लोगों ने इस मंदिर का निर्माण 17 वीं सदी में कराया. यहां टेराकोटा पद्धति से 108 मंदिरों का निर्माण किया गया.

ये भी पढ़ें- विश्व स्तरीय पर्यटक स्थल बनकर तैयार पतरातू डैम, करोड़ों की लागत से बना शानदार टूरिस्ट डेस्टिनेशन

हालांकि, वक्त के साथ मंदिर कम होते गए और अब 72 मंदिर शेष हैं. इनमें से 58 मंदिर भगवान शिव के हैं. इसलिए इसे गुप्त काशी भी कहा जाता है. शेष मंदिर अन्य देवी देवताओ के हैं. इन मंदिरों में काफी सुंदर नक्काशी की गई है. अधिकांश मंदिरों में रामायण और महाभारत की कथा को मिट्टी से निर्मित मूर्तियों के जरिए दिखाया गया है. मंदिरों की ऊंचाई 15 फीट से लेकर 60 फीट तक है. इसके निर्माण में छोटे-छोटे पतले आकार के खूबसूरत ईंट का प्रयोग चूना सुरकी के गारे ( लेप ) के साथ किया गया है.

मंदिरों के धार्मिक महत्व पर एक नजर
मौजूदा 72 मंदिर में 58 मंदिर भगवान शिव के हैं, जिनमें शिवलिंग स्थापित है. इसलिए इसे गुप्त काशी भी कहा जाता है. यहां का मुख्य मंदिर मां मौलिक्षा का है. मां मौलिक्षा को मां तारा की बड़ी बहन माना जाता है. इसका सबूत इस बात से मिलता है कि तारापीठ मंदिर भी यहां से महज 15 किलोमीटर दूर पर स्थित है. कहते हैं मां तारा के अनन्य भक्त साधक वामाखेपा भी पहले यहीं साधना करते थे. इसके बाद उन्होंने अपनी साधना भूमि मां तारा के यहां तारापीठ में बना ली, जो भक्त तारापीठ आते हैं वो यहां आना नहीं भूलते.

ये भी पढ़ें- इन मेगालिथ पत्थरों के बीच दिखता है अद्भुत खगोलीय नजारा, जुटते हैं कई खगोलशास्त्री

भारत सरकार द्वारा करोड़ों की लागत से मंदिरों का हो रहा है जीर्णोद्धार
वैसे तो यह मंदिर सदियों से भक्तों के लिए आस्था का केंद्र रहा है. राज्य सरकार इसे सजाने संवारने का काम भी काफी दिनों से कर रही है, लेकिन इस काम में तेजी तब आई जब 26 जनवरी 2015 के दिन दिल्ली में गणतन्त्र दिवस की परेड में मलूटी के मंदिरों के स्वरूप की झांकी निकाली गई और इसे दूसरा स्थान भी प्राप्त हुआ. इसके बाद 2015 में ही गांधी जयंती 2 अक्टूबर के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब दुमका आए, तो उन्होंने इसके संरक्षण और जीर्णोद्धार के काम का शिलान्यास किया. योजना लगभग 7 करोड़ की थी, जो अभी भी चल रही है. मंदिरों के संरक्षण का काम इंडियन ट्रस्ट फॉर रुरल हेरिटेज एंड डेवलपमेंट नामक संस्था कर रही है. प्रथम चरण में 20 मंदिरों पर काम चल रहा है.

मंदिर से जुड़े और आने वाले भक्तों का क्या है कहना
मंदिर के पुजारी भी बताते हैं कि यह काफी सिद्धस्थल है. मां मौलिक्षा मां तारा की बड़ी बहन थीं. संरक्षण का काम देखरेख करने वाले स्वरूप चटर्जी भी कहते हैं कि कार्य में इस बात का ध्यान रखा जा रहा है कि मंदिर के संरक्षण के साथ ही मौलिकता भी बनी रहे. भक्त भी यहां आकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं. वो इसकी तारीफ करते नहीं थकते. इसके साथ ही सुझाव देते हैं कि इसके नाम के अनुरूप विकास हो.

ये भी पढ़ें- झारखंड के 31 स्थानों को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में मिली पहचान, सौंदर्यीकरण में लगेंगे 2.15 करोड़

दुमका के उपायुक्त ने दी जानकारी
इस संबंध में जब हमने दुमका के तत्कालीन उपायुक्त मुकेश कुमार से बात की तो उन्होंने भी बताया कि गुप्त काशी के नाम से विख्यात मलूटी के मंदिरों में विकास काम चलाए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि मंदिर के आसपास हेलीपैड भी बनाया जा रहा है, ताकि यहां आने वाले पर्यटकों को सुविधा मिल सके. इसके साथ ही कई और विकास के कार्य चल रहे हैं, ताकि देश ही नहीं बल्कि विश्व पटल पर इसकी पहचान हो सके.

दुमका: झारखंड की उपराजधानी दुमका के शिकारीपाड़ा में मंदिरों का गांव मलूटी है. यहां 400 से 500 साल पुराने एक दो नहीं बल्कि 72 मंदिर हैं. पहले मंदिरों की संख्या 108 थी, लेकिन धीरे-धीरे रखरखाव के अभाव में ये खत्म होते गए. हालांकि अब जो मंदिर शेष रह गए हैं, उसके लिए केंद्र और राज्य दोनों सरकारें काफी गंभीर है और इसका संरक्षण और जीर्णोद्धार का काम तेजी से चल रहा है. टेराकोटा पद्धति से बने इन मंदिरों की ख्याति अब दूर-दूर तक फैल चुकी है.

वीडियो में देखें पूरी खबर

जानें क्या है मंदिरों का इतिहास
इन मंदिरों के निर्माण का बहुत ज्यादा लिखित इतिहास नहीं है, लेकिन जानकारों के मुताबिक बीरभूम से सटे इलाकों के शासक राजा बसंत राय और उनके वंशजों ने इन मंदिरों के निर्माण 1690 से 1840 के बीच यानि 150 सालों में कराया था. वहीं, मलूटी में लगे झारखंड सरकार के पर्यटन विभाग के साइनबोर्ड के मुताबिक, मलूटी गांव बंगाल के मल्ल राजाओं की राजधानी हुआ करता था. इन्हीं लोगों ने इस मंदिर का निर्माण 17 वीं सदी में कराया. यहां टेराकोटा पद्धति से 108 मंदिरों का निर्माण किया गया.

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हालांकि, वक्त के साथ मंदिर कम होते गए और अब 72 मंदिर शेष हैं. इनमें से 58 मंदिर भगवान शिव के हैं. इसलिए इसे गुप्त काशी भी कहा जाता है. शेष मंदिर अन्य देवी देवताओ के हैं. इन मंदिरों में काफी सुंदर नक्काशी की गई है. अधिकांश मंदिरों में रामायण और महाभारत की कथा को मिट्टी से निर्मित मूर्तियों के जरिए दिखाया गया है. मंदिरों की ऊंचाई 15 फीट से लेकर 60 फीट तक है. इसके निर्माण में छोटे-छोटे पतले आकार के खूबसूरत ईंट का प्रयोग चूना सुरकी के गारे ( लेप ) के साथ किया गया है.

मंदिरों के धार्मिक महत्व पर एक नजर
मौजूदा 72 मंदिर में 58 मंदिर भगवान शिव के हैं, जिनमें शिवलिंग स्थापित है. इसलिए इसे गुप्त काशी भी कहा जाता है. यहां का मुख्य मंदिर मां मौलिक्षा का है. मां मौलिक्षा को मां तारा की बड़ी बहन माना जाता है. इसका सबूत इस बात से मिलता है कि तारापीठ मंदिर भी यहां से महज 15 किलोमीटर दूर पर स्थित है. कहते हैं मां तारा के अनन्य भक्त साधक वामाखेपा भी पहले यहीं साधना करते थे. इसके बाद उन्होंने अपनी साधना भूमि मां तारा के यहां तारापीठ में बना ली, जो भक्त तारापीठ आते हैं वो यहां आना नहीं भूलते.

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भारत सरकार द्वारा करोड़ों की लागत से मंदिरों का हो रहा है जीर्णोद्धार
वैसे तो यह मंदिर सदियों से भक्तों के लिए आस्था का केंद्र रहा है. राज्य सरकार इसे सजाने संवारने का काम भी काफी दिनों से कर रही है, लेकिन इस काम में तेजी तब आई जब 26 जनवरी 2015 के दिन दिल्ली में गणतन्त्र दिवस की परेड में मलूटी के मंदिरों के स्वरूप की झांकी निकाली गई और इसे दूसरा स्थान भी प्राप्त हुआ. इसके बाद 2015 में ही गांधी जयंती 2 अक्टूबर के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब दुमका आए, तो उन्होंने इसके संरक्षण और जीर्णोद्धार के काम का शिलान्यास किया. योजना लगभग 7 करोड़ की थी, जो अभी भी चल रही है. मंदिरों के संरक्षण का काम इंडियन ट्रस्ट फॉर रुरल हेरिटेज एंड डेवलपमेंट नामक संस्था कर रही है. प्रथम चरण में 20 मंदिरों पर काम चल रहा है.

मंदिर से जुड़े और आने वाले भक्तों का क्या है कहना
मंदिर के पुजारी भी बताते हैं कि यह काफी सिद्धस्थल है. मां मौलिक्षा मां तारा की बड़ी बहन थीं. संरक्षण का काम देखरेख करने वाले स्वरूप चटर्जी भी कहते हैं कि कार्य में इस बात का ध्यान रखा जा रहा है कि मंदिर के संरक्षण के साथ ही मौलिकता भी बनी रहे. भक्त भी यहां आकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं. वो इसकी तारीफ करते नहीं थकते. इसके साथ ही सुझाव देते हैं कि इसके नाम के अनुरूप विकास हो.

ये भी पढ़ें- झारखंड के 31 स्थानों को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में मिली पहचान, सौंदर्यीकरण में लगेंगे 2.15 करोड़

दुमका के उपायुक्त ने दी जानकारी
इस संबंध में जब हमने दुमका के तत्कालीन उपायुक्त मुकेश कुमार से बात की तो उन्होंने भी बताया कि गुप्त काशी के नाम से विख्यात मलूटी के मंदिरों में विकास काम चलाए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि मंदिर के आसपास हेलीपैड भी बनाया जा रहा है, ताकि यहां आने वाले पर्यटकों को सुविधा मिल सके. इसके साथ ही कई और विकास के कार्य चल रहे हैं, ताकि देश ही नहीं बल्कि विश्व पटल पर इसकी पहचान हो सके.

Intro:दुमका -
झारखंड में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा ने कमर कस ली है । खासतौर पर वह संथालपरगना को फोकस कर रही है । यही वजह है कि इस सप्ताह एक ही दिन में दो केंद्रीय मंत्री संथाल के दौरे पर आ रहे हैं । 18 सितंबर को एक तरफ राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जामताड़ा आ रहे हैं तो दूसरी ओर उसी दिन नितिन गडकरी दुमका में रहेंगे । दरअसल भाजपा संथाल की सभी 18 विधानसभा सीट पर कमल खिलाने का मन बना चुकी है । 2019 के लोकसभा चुनाव में झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन को पराजित करने के बाद जैसे भाजपा को यह पूर्ण विश्वास है कि झामुमो के पास जो संथाल के विधानसभा की 6 सीट है , वह इस बार उनकी झोली में आ जाएगा । इसे लेकर भाजपा पुरजोर प्रयास में जुटी हुई है ।


Body:भाजपा सांसद सुनील सोरेन कहते हैं हमारी तैयारी पक्की ।
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2019 के लोकसभा चुनाव में दुमका सीट पर झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन को हराने के बाद भाजपा सांसद सुनील सोरेन काफी उत्साहित है । उनका कहना है कि हमारा लक्ष्य झारखंड में 65 सीट पार करने का है तो इसके लिए यह काफी आवश्यक हो जाता है कि हम संथाल की सभी 18 सीट पर विजय पताका लहराये । हमारे वरीय नेताओं द्वारा भी इसके लिए काफी प्रयास किया जा रहा है और हम निश्चित रूप से संथाल की 18 सीट जीतेंगे ।।


Conclusion:विपक्ष का है कहना जनता भाजपा को करेगी अस्वीकार ।
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झारखंड प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष राजेश कुमार ठाकुर का कहना है कि भाजपा नेताओं का तौर तरीका शहंशाह और तानाशाह वाला है । ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव में झारखंड की जनता भाजपा को अस्वीकार करने का मन बना चुकी है ।

क्या करना है झामुमो नेता का ।
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झारखंड मुक्ति मोर्चा कई दशक से संथालपरगना को अपना गढ़ बना रखा है । 2014 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद उन्हें 6 सीट हासिल हुई । लोकसभा में इस बार भी भले ही गुरुजी चुनाव हार गए लेकिन राजमहल लोकसभा सीट झामुमो के खाते में गई । झामुमो के केंद्रीय महासचिव विजय कुमार सिंह का कहना है कि भाजपा नेताओं के संथालपरगना दौरे का कोई खास असर नहीं पड़ने वाला है क्योंकि विधानसभा चुनाव में हमारी ताकत बूथ स्तर पर देखने को मिलेगी । विधानसभा चुनाव में भाजपा को हमारी ताकत का अहसास हो जाएगा ।

बाईंट - सुनील सोरेन , भाजपा सांसद , दुमका लोकसभा

बाईट - राजेश कुमार ठाकुर , कार्यकारी अध्यक्ष , झारखंड कांग्रेस

बाईट - विजय कुमार सिंह , केंद्रीय महासचिव झामुमो

फाईनल वीओ -
पिछले कई वर्षों से भारतीय जनता पार्टी ने संथालपरगना को फोकस कर रखा है । मुख्यमंत्री रघुवर दास ने दर्जनों बार संथालपरगना का दौरा किया । यहां तक की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दो-तीन मौके पर संथाल पहुंचे । अब केन्द्रीय मंत्रियों का आगमन हो रहा है । वजह साफ है संथालपरगना से झामुमो का सफाया और सभी 18 विधानसभा सीट को हासिल करना ।

मनोज केशरी
ईटीवी भारत
दुमका
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