दुमका: लुईस मरांडी ने झारखंड की राजनीति में अपनी एक खास पहचान बनाई है. जहां ज्यादातर आदिवासी महिलाएं घरेलू काम के साथ ही मेहनत मजदूरी भी करती हैं. वहीं, इन्होंने संघर्ष कर झारखंड की राजनीति को चुना जहां महिलाओं की भागीदारी न के बराबर है. यह इनके प्रोग्रेसिव स्वभाव को दर्शाता है.
महिलाओं की समस्या देखकर राजनीति में आईं लुईस
ईटीवी भारत से खास बताचीत में लुईस मरांडी ने झारखंड की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी पर बात की. झारखंड की रघुवर दास सरकार में कल्याण और महिला बाल विकास मंत्रालय संभाल रहीं डॉ. लुईस मरांडी दुमका की विधायक हैं. लुईस मरांडी का कहना है कि राजनीति में महिलाएं बहुत कम संख्या में आती हैं. महिलाओं की समस्या को देखते हुए वो राजनीति में आई.
'महिलाओं का मिला खूब समर्थन'
मंत्री लुईस मरांडी कहती हैं कि जब से वह राजनीति के मैदान में उतरी तो उन्हें महिलाओं का खूब समर्थन मिला है. उन्होंने कहा कि अब महिलाएं उनके पास बैठकर अपनी समस्या बताती हैं. मरांडी ने कहा कि ऐसा नहीं है कि वो सिर्फ महिलाओं की जनप्रतिनिधि हैं. वो महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों की भी जनप्रतिनिधि हैं.
'अब महिला और पुरुष एक मंच पर कर रहे काम'
लुईस मरांडी ने कहा कि महिला होने के नाते उन्हें पार्टी से भी खूब सहयोग मिला. पार्टी ने उन्हें कभी ये महसूस नहीं होने दिया कि वह महिला हैं और आगे नहीं बढ़ सकतीं. नए महिलाओें के राजनीति में आने पर लुईस मरांडी ने कहा कि जिन महिलाओं की रुचि राजनीति में है वो आ सकती हैं. उन्हें बेहतर काम करना होगा. आज के जमाने में महिला और पुरुष एक मंच पर काम कर रहे हैं. लुईस मरांडी ने कहा कि पंचायती चुनाव में 52 फीसदी महिलाएं चुन के आई ये झारखंड की राजनीति के लिए अच्छे संकेत हैं.
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हेमंत सोरेन को हराकर बनीं विधायक
बता दें कि 2014 के विधानसभा चुनाव में डॉ. लुईस मरांडी ने जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन को हराया था. उस वक्त हेमंत सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री थे, लेकिन इस चुनाव में लुईस मरांडी की जीत हुई. 2014 में जब रघुवर दास की सरकार बनी तो डॉ. लुईस मरांडी को कल्याण, महिला बाल विकास मंत्रालय सौंपा गया. 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में 8 महिलाओं ने जीत दर्ज की. यानी महिलाओं के नाम अब तक का सबसे बड़ा स्कोर रहा.