दुमकाः झारखंड की उप राजधानी दुमका जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर मंदिरों का गांव मलूटी (Temples Village of Maluti in Dumka) है, जहां 400 वर्ष पुराने 72 मंदिर हैं. इसमें अधिकतर मंदिर भगवान शिव के हैं. इसके अलावे अन्य देवी देवताओं के भी मंदिर हैं. मलूटी गांव में मां मौलिक्षा मंदिर भी है, जो काफी प्रसिद्ध हैं. इस मंदिर में पूजा-अर्चना के साथ साथ मन्नात मांगने हजारों की संख्या में दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं.
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मां तारा की बड़ी बहन कही जाती हैं मां मौलिक्षाः शिकारीपाड़ा प्रखंड स्थित मलूटी गांव, जहां मां मौलिक्षा विराजमान हैं. इस गांव से 10 किलोमीटर की दूरी पर पश्चिम बंगाल में स्थित मां तारापीठ मंदिर है. बताया जाता है कि मां मौलिक्षा मां तारा की बड़ी बहन है. मंदिर के पुजारी बामन चौधरी कहते हैं कि मां तारा के अनन्य भक्त माने जाने वाले बामदेव उर्फ बामाखेपा पहले यहीं आराधना करते थे. इसके बाद वे तारापीठ चले गए. उन्होंने कहा कि मां मौलिक्षा, मां दुर्गा का सिंह वाहिनी स्वरूप हैं. इसकी महिमा अपरंपार है. यही वजह है कि दूरदराज से श्रद्धालु पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती है. दुर्गा पूजा के साथ-साथ मलूटी गांव में काली पूजा भी होती है. इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है.
श्रद्धालुओं में रहता है उत्साहः मंदिरों के गांव मलूटी आने वाले श्रद्धालु काफी उत्साहित होते हैं. पूजा-अर्चना करने पश्चिम बंगाल के बर्धमान से आई स्वाति बनर्जी ने बताया कि हम हमेशा मंदिर में मां का आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं. क्योंकि मां हमारी सुनती हैं. उन्होंने कहा कि मां तारा मंदिर में काफी भीड़ होती है. इसलिए विधि विधान से पूजा अर्चना के लिए मां मौलिक्षा के द्वार पर चले आते हैं. रामपुरहाट कॉलेज की छात्रा सुष्मिता मंडल कहती हैं कि मंदिरों का आर्किटेक्चर देखकर मन खुश हो जाता है. मौलिक्षा माता की पूजा अर्चना की. माता के दर्शन के बाद लगता है कि सचमुच देवी का दर्शन हो गया.
मलूटी की खासियतः शिकारीपाड़ा प्रखंड के मलूटी गांव. यह गांव मंदिरों के गांव के रूप में जाना जाता है. गांव में चार से पांच सौ साल पुराने एक दो नहीं बल्कि 72 मंदिर हैं. गांव में पहले मंदिरों की संख्या 108 थी. लेकिन धीरे धीरे इसका क्षय होता गया. लेकिन अब भी 72 मंदिर हैं, जिसका केंद्र और राज्य सरकारें सौंदर्यीकरण करवा रही है. संरक्षण और जीर्णोद्धार का काम तेजी से चल रहा है. टेराकोटा पद्धति से बने इन मंदिरों की ख्याति दूर दूर तक फैली है.
जाने मंदिरों का इतिहासः इन मंदिरों के निर्माण का बहुत ज्यादा लिखित इतिहास नहीं है. लेकिन जानकारों के मुताबिक बीरभूम से सटे इलाकों के शासक राजा बसंत राय और उनके वंशजों ने इन मंदिरों के निर्माण 1690 ईस्वी से 1840 ईस्वी के बीच यानी 150 वर्षों में करवाया था. बताया जाता है कि बंगाल के मल्ल राजाओं की राजधानी हुआ करती थी. यह इलाका मल्लुहाटी के नाम से प्रसिद्ध था, जो आगे चल कर मलूटी बन गया. इन्ही लोगों ने इन मंदिरों का निर्माण 17वीं सदी में कराया था. टेराकोटा पद्धति से 108 मंदिरों को बनाया गया. लेकिन वक्त के साथ मंदिरों का क्षरण हुआ और अभी 72 मंदिर शेष हैं. इनमें से 60 मंदिर भगवान शिव के हैं. इसलिए इसे गुप्त काशी भी कहा जाता है. शेष मंदिर अन्य देवी देवताओं के हैं.
मंदिरों के धार्मिक महत्वः आप कभी मंदिरों के गांव मलूटी आएं तो जहां सिर्फ मंदिर ही मंदिर दिखेगा. वर्तमान के 72 मंदिर में 60 मंदिर भगवान शिव के हैं, जिनमें शिवलिंग स्थापित हैं. इसलिए इसे गुप्त काशी भी कहा जाता है. साथ ही कई देवी देवताओं के मंदिर भी हैं. मलूटी के मुख्य मंदिर मां मौलिक्षा के हैं.
मंदिरों का हो रहा जीर्णोद्धारः वैसे तो यहां के मंदिर सदियों से श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र रहा है और राज्य सरकार इसे सजाने संवारने में लगी है. लेकिन इस कार्य में तेजी तब आई जब 26 जनवरी 2015 को गणतन्त्र दिवस परेड में मलूटी के मंदिरों के स्वरूप की झांकी निकाली गई. इसके बाद साल 2015 में ही गांधी जयंती 2 अक्तूबर के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब दुमका आए थे तो उन्होने इसके संरक्षण और जीर्णोद्धार के काम का शिलान्यास किया. योजना लगभग 5 करोड़ की थी, जो अब भी चल रही है. मंदिरों के संरक्षण का काम इंडियन ट्रस्ट फॉर रुरल हेरिटेज एंड डेवलपमेंट नामक संस्था कर रही है.