दुमका: उपराजधानी दुमका की स्वास्थ्य व्यवस्था लचर है. यहां कुल पदस्थ चिकित्सकों की संख्या स्वीकृत पदो के आधे से भी कम है. जिसके कारण यहां मरीजों को ठीक से इलाज नहीं मिल पाता है. जिससे मरीजों को कई तरह के परेशानियों का सामना करना पड़ता है लेकिन सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है.
ये भी पढ़ें- शहर से अच्छे तो इस गांव के लोग, कोरोना से बचाव को लेकर हैं जागरूक
लचर स्वास्थ्य व्यवस्था से जनता परेशान
बिहार से अलग होकर 15 नवंबर 2000 को झारखंड अलग राज्य बना. उसके बाद दुमका को इस नए राज्य की उपराजधानी का दर्जा मिला. इसके उपराजधानी घोषित होने के बाद लोगों को उम्मीद थी कि अब हेल्थ सेक्टर बेहतर होगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. 3 साल पूर्व दुमका मेडिकल कॉलेज की स्थापना हुई लेकिन उचित व्यवस्था न होने से मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मरीजों की स्थिति थोड़ी भी गंभीर हुई नहीं कि रेफर कर दिया जाता है.
चिकित्सकों की संख्या आधे से कम
सदर अस्पताल के अतिरिक्त 10 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं. यहां कुल चिकित्सकों के स्वीकृत पद 192 हैं, जबकि डॉक्टर पदस्थापित सिर्फ 82 हैं. मतलब कुल संख्या का लगभग 40%. जाहिर है कि इसका असर मरीजों को मिलने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं पर पड़ेगा. दुमका के फूलो झानो मेडिकल कॉलेज अस्पताल की बात करें तो यहां 117 चिकित्सक होने चाहिए लेकिन उसकी संख्या 53 है, मतलब यहां की स्थिति भी आधे से कम वाली है.
कई विभागों में नहीं हैं चिकित्सक
दुमका में चिकित्सकों की कमी तो है ही साथ ही कई स्पेशलिस्ट जो आवश्यक हैं, वह भी नहीं हैं. अभी कोरोना काल चल रहा है. जिसमें स्वास्थ्य संबंधित परेशानी मरीजों को हो रही है लेकिन दुमका में रेस्पिरेट्री मेडिसिन के डॉक्टर नहीं हैं. इसके साथ ही रेडियोलॉजिस्ट का पद रिक्त होने की वजह से लाखों की अल्ट्रासाउंड मशीन का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है. चर्म रोग विशेषज्ञ भी नहीं हैं. मेडिकल कॉलेज अस्पताल की ये कमियां चिंताजनक कही जा सकती हैं.
क्या कहते हैं सिविल सर्जन
दुमका जिले में स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति और चिकित्सकों की कमी को लेकर जिले के सिविल सर्जन डॉ. अनंत कुमार झा ने बताया कि जिले में चिकित्सकों की संख्या आधे से भी कम है. लेकिन उसी में किसी तरह काम चलाना पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि राज्य सरकार को यह सारी सूचना दे दी गई है, जो भी करना है वह मुख्यालय स्तर से ही होगा.