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बांस कारीगरों का हाल बेहाल, सरकार से लगाई मदद की गुहार

दुमका में सैकड़ों मोहली परिवार अपनी रोजी रोती बांस के सूप, डाला और अन्य सामान बनाकर चला रहे हैं कई पीढ़ियों से इनकी ये परंपरा चली आ रही है. लेकिन कड़ी मेहनत के बावजूद ये बांस के कारीगर बदहाली में जीवन जीने को मजबूर हैं. बांस के बढ़ते दाम और हाथ से बने सामान की उचित कीमत नहीं मिलने से परेशान इन कारीगरों ने सरकार से मदद की मांग की है (Condition Of Bamboo Artisans Is Not Good). इनका कहना है कि इनकी नई पीढ़ी उचित दाम नहीं मिलने के कारण दिहाड़ी मजदूर बन रहे हैं. ऐसे में इनकी परंपरा खत्म हो रही है.

Condition Of Bamboo Artisans Is Not Good
Condition Of Bamboo Artisans Is Not Good
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Published : Oct 18, 2022, 10:34 AM IST

Updated : Oct 19, 2022, 1:04 PM IST

दुमका: बदलते जमाने में पर्व त्योहारों में कई चीजें बदल गई हो पर लोक आस्था के महापर्व छठ में आज भी बांस के बने सूप और डाला ही प्रयोग में लाये जाते हैं. दुमका में सैकड़ों मोहली परिवार हैं जो बांस के सूप और डाला बनाते हैं. इन्ही से इनकी आजीविका चलती है. लेकिन आज इनका हालत काफी दयनीय है (Condition Of Bamboo Artisans Is Not Good). अपने सामान का सही दाम नहीं मिल पाने के कारण अब इनकी नई पीढ़ी इस काम को छोड़ दिहाड़ी मजदूरी तक कर रही है.

ये भी पढ़ें: धनबाद में बदहाल हैं बांस के कारीगर, उचित कीमत नहीं मिलने पर सरकार से लगाई मदद की गुहार

दुमका में सैकड़ों मोहली करते हैं. ये परिवारों बांस के परंपरागत सामान बनाते हैं. खासतौर पर ये बांस के सूप, डाला और चटाई का निर्माण करते हैं. इनका बढ़िया बाजार महापर्व छठ पूजा में होता है. छठ पर्व में बांस के जो सूप और डाला प्रयोग छठव्रती इस्तेमाल कर हैं उनकी एक बड़ी मात्रा इन्हीं कारीगरों की बनाई होती है. छठ पूजा के लिए ये परिवार दो महीवने पहले से ही लग जाते हैं. दुमका में बेहतर क्वालिटी के बांस की उपज होती है. इसके अलावा यहां के कुशल कारीगरी की वजह से यहां बने सूप और डाला की क्वालिटी काफी अच्छी होती है. इसलिये इसकी डिमांड भी काफी रहती है. यहां झारखंड बिहार के कई जिलों से व्यापारी आते हैं और सूप और डाला खरीद कर ले जाते हैं, इसके अलावा लोकल मार्केट में भी ये अपने उत्पाद को बेचते हैं.

देखें वीडियो


मोहली समाज के लोगों का दर्द: दुमका के सैकड़ों मोहली परिवार की स्थिति बदहाल है. इनका कहना है कि जो व्यापारी इनसे सामान खरीज कर ले जाते हैं वे दूसरे जिले और राज्यों में ले जाकर उसे बेचते हैं. इससे उन्हें काफी मुनाफा होता है, लेकिन इनके हिस्से में कुछ नहीं आता है. मोहली समाज के लोग सरकार से मांग कर रहे हैं कि दुमका के बाजार में इन्हें सरकारी दुकान उपलब्ध कराई जाए, ताकि अपने उत्पाद को सही तरीके से बेच सकें. वे कहते हैं कि ये लोग दुमका में लगने वाले सोमवार और शुक्रवार के हाट में ही अपने सामानों को बेचने जाते हैं बाकी पांच दिन इनके पास बेचने का कोई तरीका नहीं रह जाता है. ये कहते हैं कि अगर बाजार में इन्हें दुकान मिल जाए तो ये पूरे सप्ताह अपने सामान बेच सकते हैं. इससे इनकी आमदनी भी बढ़ेगी. इसके अलावा इनकी सरकार से मांग है कि सरकार इन्हें पूंजी उपलब्ध कराएं ताकि ये अपने उत्पाद को बाहर से आए व्यापारियों को औने पौने दाम पर बेचने के लिए मजबूर ना हों. इनका कहना है कि अगर इनके पास पूंजी रहेगी तो ये अपना माल स्टॉक कर सकते हैं और अपने उत्पाद पर अपनी कीमत तय कर सकते हैं.

नई पीढ़ी हो रही है इस पेशे से विमुख: बांस के सामान बनाने वाली सुमिता मोहली कहती हैं कि नई पीढ़ी इस पेशे से विमुख हो रही है. उनका कहना है कि अगर वे दिहाड़ी मजदूरी करते हैं तो कम से कम तीन सौ रुपये वे शाम में हासिल कर लेते हैं. लेकिन बांस के सामान को बनाकर बेचने पर इस बात की गारंटी नहीं होती कि शाम तक वे 300 रुपए कमा लेंगे.
मोहली परिवार बांस से सामान बनाने की परंपरागत पेशे को बरकरार रखा है, हालांकि अब परिस्थितियां प्रतिकूल हो रही हैं. ऐसे में इनकी मांग है कि सरकार इनकी मदद करे.

दुमका: बदलते जमाने में पर्व त्योहारों में कई चीजें बदल गई हो पर लोक आस्था के महापर्व छठ में आज भी बांस के बने सूप और डाला ही प्रयोग में लाये जाते हैं. दुमका में सैकड़ों मोहली परिवार हैं जो बांस के सूप और डाला बनाते हैं. इन्ही से इनकी आजीविका चलती है. लेकिन आज इनका हालत काफी दयनीय है (Condition Of Bamboo Artisans Is Not Good). अपने सामान का सही दाम नहीं मिल पाने के कारण अब इनकी नई पीढ़ी इस काम को छोड़ दिहाड़ी मजदूरी तक कर रही है.

ये भी पढ़ें: धनबाद में बदहाल हैं बांस के कारीगर, उचित कीमत नहीं मिलने पर सरकार से लगाई मदद की गुहार

दुमका में सैकड़ों मोहली करते हैं. ये परिवारों बांस के परंपरागत सामान बनाते हैं. खासतौर पर ये बांस के सूप, डाला और चटाई का निर्माण करते हैं. इनका बढ़िया बाजार महापर्व छठ पूजा में होता है. छठ पर्व में बांस के जो सूप और डाला प्रयोग छठव्रती इस्तेमाल कर हैं उनकी एक बड़ी मात्रा इन्हीं कारीगरों की बनाई होती है. छठ पूजा के लिए ये परिवार दो महीवने पहले से ही लग जाते हैं. दुमका में बेहतर क्वालिटी के बांस की उपज होती है. इसके अलावा यहां के कुशल कारीगरी की वजह से यहां बने सूप और डाला की क्वालिटी काफी अच्छी होती है. इसलिये इसकी डिमांड भी काफी रहती है. यहां झारखंड बिहार के कई जिलों से व्यापारी आते हैं और सूप और डाला खरीद कर ले जाते हैं, इसके अलावा लोकल मार्केट में भी ये अपने उत्पाद को बेचते हैं.

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मोहली समाज के लोगों का दर्द: दुमका के सैकड़ों मोहली परिवार की स्थिति बदहाल है. इनका कहना है कि जो व्यापारी इनसे सामान खरीज कर ले जाते हैं वे दूसरे जिले और राज्यों में ले जाकर उसे बेचते हैं. इससे उन्हें काफी मुनाफा होता है, लेकिन इनके हिस्से में कुछ नहीं आता है. मोहली समाज के लोग सरकार से मांग कर रहे हैं कि दुमका के बाजार में इन्हें सरकारी दुकान उपलब्ध कराई जाए, ताकि अपने उत्पाद को सही तरीके से बेच सकें. वे कहते हैं कि ये लोग दुमका में लगने वाले सोमवार और शुक्रवार के हाट में ही अपने सामानों को बेचने जाते हैं बाकी पांच दिन इनके पास बेचने का कोई तरीका नहीं रह जाता है. ये कहते हैं कि अगर बाजार में इन्हें दुकान मिल जाए तो ये पूरे सप्ताह अपने सामान बेच सकते हैं. इससे इनकी आमदनी भी बढ़ेगी. इसके अलावा इनकी सरकार से मांग है कि सरकार इन्हें पूंजी उपलब्ध कराएं ताकि ये अपने उत्पाद को बाहर से आए व्यापारियों को औने पौने दाम पर बेचने के लिए मजबूर ना हों. इनका कहना है कि अगर इनके पास पूंजी रहेगी तो ये अपना माल स्टॉक कर सकते हैं और अपने उत्पाद पर अपनी कीमत तय कर सकते हैं.

नई पीढ़ी हो रही है इस पेशे से विमुख: बांस के सामान बनाने वाली सुमिता मोहली कहती हैं कि नई पीढ़ी इस पेशे से विमुख हो रही है. उनका कहना है कि अगर वे दिहाड़ी मजदूरी करते हैं तो कम से कम तीन सौ रुपये वे शाम में हासिल कर लेते हैं. लेकिन बांस के सामान को बनाकर बेचने पर इस बात की गारंटी नहीं होती कि शाम तक वे 300 रुपए कमा लेंगे.
मोहली परिवार बांस से सामान बनाने की परंपरागत पेशे को बरकरार रखा है, हालांकि अब परिस्थितियां प्रतिकूल हो रही हैं. ऐसे में इनकी मांग है कि सरकार इनकी मदद करे.

Last Updated : Oct 19, 2022, 1:04 PM IST
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