दुमका: झारखंड सरकार किसानों को कृषि के आधुनिक तरीके सिखाना चाहती है. इसे लेकर राज्य से कई किसानों को इजरायल भी भेजा गया. सरकार की इन योजनओं के बाद भी जमीनी हालत में कुछ ज्यादा बदलाव नहीं आए हैं. आधुनिक खेती के लिए जो व्यवस्था की गई है, उसमें जो भी खर्च हुआ उसका लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है.
बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्र परिसर में साल 2009 को एक एग्रीकल्चर लेबोरेटरी स्थापित की गई. इसकी लागत करीब 1 करोड़ रुपए थी. इस प्रयोगशाला के पौधे रोगमुक्त होने के साथ ही तीव्र गति से बढ़ते. लेकिन सरकारी तंत्र और अधिकारियों की लापरवाही से अब ये मशीनों धूल फांक रही हैं. स्थानीय किसानों का कहना है कि प्रयोगशाला बनने से लगा कि अब उत्तम क्वालिटी के पौधे मिलेंगे, हमारी फसल अच्छी होगी, पैदावार बढ़ेगी. लेकिन उपकरणों के खराब हो जाने से किसानों की ये उम्मीद महज एक ख्वाब बनकर रह गई.
बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के प्रभारी निदेशक और कृषि वैज्ञानिक पीबी साहा ने ईटीवी भारत को बताया कि यह लेबोरेटरी किसानों के लिए काफी फायदेमंद थी. उन्हें आधुनिक खेती से जोड़ने के लिए यह सकरात्मक पहल साबित होती. लेकिन अभी इसके उपकरण खराब हैं. इसे ठीक करने की कोशिश की जा रही है.