दुमका: संथाल परगना में इस साल भी मानसून की स्थिति बेहतर नहीं दिख रही है. इसका सीधा असर कृषि पर पड़ रहा है. कई इलाकों में खेत की जुताई नहीं हुई है, तो कहीं जुताई के बाद किसान धान का बीज खेत में नहीं डाल डाल पाए. वहीं, बिचड़ा तैयार है तो रोपनी के लिए बारिश का इंतजार हो रहा है.
कृषि विभाग के आंकड़ो की मानें, तो पूरे संथालपरगना में 3 लाख 64 हज़ार 500 हेक्टेयर जमीन पर धान की रोपाई का लक्ष्य है. हालांकि अब तक सिर्फ 26 हजार 850 हेक्टेयर यानि 7 फीसदी धान की बुवाई हुई है. ऐसे में किसानों के लिए जरूरी हो गया है कि वो कृषि क्षेत्र में विकल्प पर ध्यान दें.
संथालपरगना के संयुक्त कृषि निदेशक अजय कुमार सिंह कहते हैं कि बारिश की स्थिति कमजोर देखते हुए धान की जगह मकई, अरहर, उड़द की खेती करें. इसमें कम पानी चाहिए. उन्होंने सुझाव दिया है कि मध्यम और ऊंची जमीन पर धान की खेती परंपरागत रोपा विधि से बिचड़ा तैयार करने के बाद न करके सीधी बुवाई प्रणाली से खेती करें.
इस खेती में धान का बीज खेत में कतारबद्ध तरीके से लगाए. इसमें पानी कम लगता है और फसल बर्बाद नहीं होती. उपज की मात्रा कम हो सकती है पर औसत उत्पादन हो जाएगा. इस विधि से खेती करने में एकमात्र समस्या यह आती है कि बीज ज्यादा मात्रा में लगाना पड़ता है.