धनबादः कोरोना की रफ्तार धीमी (slowing down of corona) होने के साथ ही दूसरे राज्यों से अपने घर वापस लौटे प्रवासी मजदूरों का पलायन (exodus of migrant laborers) एक बार फिर से शुरू हो गया है. रोजगार को लेकर मजदूर दूसरे राज्यों का रुख करने लगे हैं. जाहिर-सी बात है कि जब रोजगार नहीं मिलेगा तो वो अपने जीवनयापन के लिए दूसरे राज्यों का रुख करेंगे ही. सरकार जो भी दाने करे, सच तो यही है कि राज्य में मजदूरों के लिए मुकम्मल रोजगार की व्यवस्था नहीं है और ये बाद महगामा की विधायक ने भी माना है.
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सरकार की ओर से प्रवासी मजदूरों को रोजगार उपलब्ध नहीं कराए जाने से एक बार फिर से प्रवासी मजदूर रोजगार की तलाश में अपना घर छोड़ने को मजबूर हैं. धनबाद रेलवे स्टेशन (Dhanbad Railway Station) पर ट्रेन से दूसरे राज्यों के सफर के लिए बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर देखे जा सकते हैं. झारखंड में रोजगार नहीं मिलना, इनकी सबसे बड़ी मजबूरी है. इनकी आजीविका अब दूसरे राज्यों के भरोसे ही चल रही है.
'भूखे मरने से अच्छा है कोरोना से लड़ें'
कोरोना की दूसरी लहर (second wave of corona) में सरकार ने इन्हें वापस लाकर सार्थक पहल तो की, पर रोजगार नहीं मिलने से इनके चेहरे पर मायूसी साफ झलक रही है. प्रवासी मजदूरों का कहना है कि सबसे बड़ा तो पेट है. कोरोना से मरना और भूखे मरने में फर्क है. मजदूरों ने कहा कि भूखे मरने से अच्छा है कि कोरोना से लड़कर इस जीवन को आगे चलाना.
महागमा विधायक दीपिका पांडेय (Mahagama MLA Deepika Pandey) ने स्वीकार किया कि आज भी हमारे सभी प्रवासी मजदूरों के लिए रोजगार नहीं है. कोरोना की वजह से हमारी सरकार पलायन रोकने में पूरी तरह से सक्षम नहीं है. उन्होंने कहा कि मनरेगा के तहत ग्रामीण अर्थव्यवस्था (rural economy) को पाटने का काम हमारी सरकार ने किया है.
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'सब काम एक साथ नहीं किया जा सकता'
सूबे के मंत्री बादल पत्रलेख (Minister Badal Patralekh) का कहना है कि अभी हमें कोरोना से लड़ना है, राज्य में टीकाकरण की रफ्तार बढ़ानी है. कोरोना संक्रमण के खात्मे के बाद हम प्रवासी मजदूरों के रोजगार के बारे में भी विचार करेंगे, जल्दबाजी में सब काम एक साथ नहीं किया जा सकता है.