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धनबाद में धूमधाम से की गई मां शीतला देवी की पूजा, हजारों की तादाद में जुटे श्रद्धालु - धनबाद न्यूज

धनबाद के निरसा में मां शीतला देवी की पूजा बड़े ही धूमधाम से की गई. इस पूजा में धनबाद सहित अन्य जिलों से कई श्रद्धालु निरसा पहुंचे और मां शीतला देवी की श्रद्धा और भक्ति भाव से पूजा की. यह पूजा पिछले 150 सालों से भट्टाचार्य परिवार की ओर से की जा रही है.

goddess sheetla was worshiped with great pomp in dhanbad
धूम-धाम से की गई मां शीतला देवी की पूजा
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Published : Apr 6, 2021, 8:26 AM IST

धनबाद: निरसा विधानसभा क्षेत्र के बीरसिंहपुर में मां शीतला देवी की पूजा बड़े ही धूमधाम से की गई. इस पूजा में धनबाद सहित अन्य जिलों से आए कई श्रद्धालु निरसा पहुंचे और मां शीतला देवी की श्रद्धा और भक्ति भाव से पूजा की. ये पूजा विगत 150 सालों से भट्टाचार्य परिवार की ओर से आयोजित किया जा रहा है. भट्टाचार्य परिवार के सदस्य शंभूनाथ भट्टाचार्य ने बताया कि हमारे पूर्वजों के समय से ये पूजा चली आ रही है. उसी परंपरा को निभाते हुए हम सभी इस पूजा को चैत्र मास के अष्टमी के दिन बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं.

ये भी पढ़ें- ETV BHARAT IMPCAT: खबर प्रकाशित होने के 24 घंटे के अंदर गांव में लगा नया ट्रांसफार्मर, लोगों ने ईटीवी भारत को दिया धन्यवाद

क्यों की जाती है मां शीतला देवी की पूजा

पूजा की तैयारी विगत एक महीने पहले से ही प्रारंभ कर दी जाती हैं. भट्टाचार्य परिवार ने बताया कि हमारे पूर्वज यजमानों के घर जाकर पूजा करते थे. एक दिन यजमानों के घर जाने के उपरांत रास्ते में अपने बग्घी को रोक कर शौच करने चले गए. जब वापस आया तो देखा कि एक देवी उनके घोड़े के पास खड़ी हैं और उस देवी ने कहा कि आप अपने घर में मां शीतला देवी की स्थापना करें और नित्य उनकी पूजा करें. ऐसा करने से आपके परिवार के साथ-साथ आपके क्षेत्र के भी हर श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होगी. इतना कहकर वो देवी अंतर्ध्यान हो गई और तभी से भट्टाचार्य परिवार ने अपने घर में मां शीतला देवी की प्रतिमा को स्थापित किया.

क्या-क्या होते हैं नियम

आज भी काफी आस्था के साथ लोग यहां पहुंचकर अपनी मन्नतें मांगते हैं. जो कि जल्द ही पूरी हो जाती है. इससे भी लोगों में काफी आस्था है जिसके कारण धनबाद जिले सहित दूसरे जिलों और पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल से भी काफी संख्या में श्रद्धालु पूजा याचना करने आते हैं. पौराणिक कथा के अनुसार माता शीतला की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा से हुई थी. देवलोक से धरती पर माता शीतला अपने साथ भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर को अपना साथी मानकर लाईं थीं. तब उनके हाथों में दाल के दाने भी थे. उस समय के राजा विराट ने माता शीतला को अपने राज्य में रहने के लिए स्थान नहीं दिया तो माता क्रोधित हो गई और भूलोक में चली गई. एक ऐसी भी परंपरा है कि माता शीतला पूजा के दिन लोगों के घर में चूल्हा नहीं जलता है. एक दिन पूर्व ही भोजन पकवान बना लिए जाते हैं. बिरसिंहपुर में सुबह 4:00 बजे से मंदिर के पट खोल दिया जाते हैं और श्रद्धालु हजारों की तादाद में उपस्थित होकर मां शीतला देवी की पूजा याचना बड़े ही हर्षोल्लास के साथ करते हैं.

धनबाद: निरसा विधानसभा क्षेत्र के बीरसिंहपुर में मां शीतला देवी की पूजा बड़े ही धूमधाम से की गई. इस पूजा में धनबाद सहित अन्य जिलों से आए कई श्रद्धालु निरसा पहुंचे और मां शीतला देवी की श्रद्धा और भक्ति भाव से पूजा की. ये पूजा विगत 150 सालों से भट्टाचार्य परिवार की ओर से आयोजित किया जा रहा है. भट्टाचार्य परिवार के सदस्य शंभूनाथ भट्टाचार्य ने बताया कि हमारे पूर्वजों के समय से ये पूजा चली आ रही है. उसी परंपरा को निभाते हुए हम सभी इस पूजा को चैत्र मास के अष्टमी के दिन बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं.

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क्यों की जाती है मां शीतला देवी की पूजा

पूजा की तैयारी विगत एक महीने पहले से ही प्रारंभ कर दी जाती हैं. भट्टाचार्य परिवार ने बताया कि हमारे पूर्वज यजमानों के घर जाकर पूजा करते थे. एक दिन यजमानों के घर जाने के उपरांत रास्ते में अपने बग्घी को रोक कर शौच करने चले गए. जब वापस आया तो देखा कि एक देवी उनके घोड़े के पास खड़ी हैं और उस देवी ने कहा कि आप अपने घर में मां शीतला देवी की स्थापना करें और नित्य उनकी पूजा करें. ऐसा करने से आपके परिवार के साथ-साथ आपके क्षेत्र के भी हर श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होगी. इतना कहकर वो देवी अंतर्ध्यान हो गई और तभी से भट्टाचार्य परिवार ने अपने घर में मां शीतला देवी की प्रतिमा को स्थापित किया.

क्या-क्या होते हैं नियम

आज भी काफी आस्था के साथ लोग यहां पहुंचकर अपनी मन्नतें मांगते हैं. जो कि जल्द ही पूरी हो जाती है. इससे भी लोगों में काफी आस्था है जिसके कारण धनबाद जिले सहित दूसरे जिलों और पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल से भी काफी संख्या में श्रद्धालु पूजा याचना करने आते हैं. पौराणिक कथा के अनुसार माता शीतला की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा से हुई थी. देवलोक से धरती पर माता शीतला अपने साथ भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर को अपना साथी मानकर लाईं थीं. तब उनके हाथों में दाल के दाने भी थे. उस समय के राजा विराट ने माता शीतला को अपने राज्य में रहने के लिए स्थान नहीं दिया तो माता क्रोधित हो गई और भूलोक में चली गई. एक ऐसी भी परंपरा है कि माता शीतला पूजा के दिन लोगों के घर में चूल्हा नहीं जलता है. एक दिन पूर्व ही भोजन पकवान बना लिए जाते हैं. बिरसिंहपुर में सुबह 4:00 बजे से मंदिर के पट खोल दिया जाते हैं और श्रद्धालु हजारों की तादाद में उपस्थित होकर मां शीतला देवी की पूजा याचना बड़े ही हर्षोल्लास के साथ करते हैं.

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