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जिस जमीन पर गूंजती थी कभी नक्सलियों की गोलियां, अब वहां युवाओं का दिखेगा क्रिकेट में दमखम

धनबाद के पूर्वी टुंडी का सिपोन टुड्डू के कोशिश की वजह से उसे स्पोर्ट्स एकेडमी में भर्ती किया गया. एकेडमी पहुंचने के लिए उसे बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. अब अब गांव में ही ट्रेनिंग होने लगी है. जिसमें कई और लड़के भी शामिल हो रहे है.

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Published : Jun 5, 2019, 11:32 PM IST

Updated : Jun 6, 2019, 12:45 PM IST

ट्रेनिंग लेते युवा

धनबाद/पूर्वी टुंडी: कहते है जब कुछ सीखने की चाह होती है तो सामने पड़ी हर मुश्किल आसान हो जाती है. ऐसी ही एक कहानी है पूर्वी टुंडी के केंदुआटांड़ के रहने वाले सिपोन टुड्डू की. महेंद्र सिंह धोनी से वो इतना प्रभावित हुआ कि 12 km की दूरी तय कर के क्रिकेट सीखने गोविंदपुर जा पहुंचा. जहां उसे कोच उमेश श्रीवास्तव ने उसके जुनून को देखते हुए एकेडमी में भर्ती कर लिया.

स्पेशल पैकेज

सोपेन टुड्डू ने बताया कि घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. पिताजी दिहाड़ी मजदूर है. घर का खर्च ही बड़ी मुश्किल से चल पाता है. इसलिए साइकिल से12 km की दूरी तय करने के बाद वो गोविंदपुर से गोल्फ ग्राउंड बालू ट्रक से पहुंचते थे, लेकिन अब गांव में ही ट्रेनिंग होने लगी है. जिसमें कई और लड़के भी शामिल हो रहे है.

ये भी पढ़ें- सूख गई एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील, थी बिहार की प्रसिद्ध पर्यटन स्थली

गांव का ही राजेश मुर्मू भी गोल्फ ग्राउंड में क्रिकेट की ट्रेनिंग के लिए आता है. वो कहता है कि साल 2000 में फुटबॉल टूर्नामेंट के समापन के दौरान नक्सलियों ने चार पुलिस कर्मियों को गोलियों से छलनी कर दिया गया था. इस घटना के बाद वहां खेल का नामो-निशान मिट चुका था, लेकिन अब फिर से उसी मैदान में क्रिकेट की ट्रेनिंग कैंप शुरू हो गई है. इस ट्रेनिंग कैंप में गांव के कई बच्चे और युवा भी शामिल हो रहे है.

कभी जिस इलाके में नक्सलियों का खौफ रहता था, आज उसी इलाके के संथाल आदिवासी बच्चे क्रिकेट में अपना दमखम दिखाने को आतुर है.

धनबाद/पूर्वी टुंडी: कहते है जब कुछ सीखने की चाह होती है तो सामने पड़ी हर मुश्किल आसान हो जाती है. ऐसी ही एक कहानी है पूर्वी टुंडी के केंदुआटांड़ के रहने वाले सिपोन टुड्डू की. महेंद्र सिंह धोनी से वो इतना प्रभावित हुआ कि 12 km की दूरी तय कर के क्रिकेट सीखने गोविंदपुर जा पहुंचा. जहां उसे कोच उमेश श्रीवास्तव ने उसके जुनून को देखते हुए एकेडमी में भर्ती कर लिया.

स्पेशल पैकेज

सोपेन टुड्डू ने बताया कि घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. पिताजी दिहाड़ी मजदूर है. घर का खर्च ही बड़ी मुश्किल से चल पाता है. इसलिए साइकिल से12 km की दूरी तय करने के बाद वो गोविंदपुर से गोल्फ ग्राउंड बालू ट्रक से पहुंचते थे, लेकिन अब गांव में ही ट्रेनिंग होने लगी है. जिसमें कई और लड़के भी शामिल हो रहे है.

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गांव का ही राजेश मुर्मू भी गोल्फ ग्राउंड में क्रिकेट की ट्रेनिंग के लिए आता है. वो कहता है कि साल 2000 में फुटबॉल टूर्नामेंट के समापन के दौरान नक्सलियों ने चार पुलिस कर्मियों को गोलियों से छलनी कर दिया गया था. इस घटना के बाद वहां खेल का नामो-निशान मिट चुका था, लेकिन अब फिर से उसी मैदान में क्रिकेट की ट्रेनिंग कैंप शुरू हो गई है. इस ट्रेनिंग कैंप में गांव के कई बच्चे और युवा भी शामिल हो रहे है.

कभी जिस इलाके में नक्सलियों का खौफ रहता था, आज उसी इलाके के संथाल आदिवासी बच्चे क्रिकेट में अपना दमखम दिखाने को आतुर है.

Intro:ANCHOR:-कभी जिस इलाके में नक्सलियों का खौफ बोला करता था।गांव के जिस ग्राउंड में खेल समारोह के दौरान एक नही बल्कि चार चार पुलिस वालों की लाशें नक्सलियों द्वारा बिछा दी गयी थी।घटना के बाद से जहां खेल का नाम शब्द सुनकर ही लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं।आज उसी इलाके के संथाल आदिवासी बच्चे क्रिकेट में अपना दमखम दिखाने को आतुर है।




Body:
VO 01:-पूर्वी टुंडी के केंदुआटांड़ का रहनेवाले सिपोन टुड्डू महेंद्र सिंह धोनी से बेहद प्रभावित हुआ।8 साल पहले उसका मन क्रिकेट में दमखम दिखाने को आतुर हुआ।गाँव से साइकिल पर सवार होकर 12 किलोमीटर गोविंदपुर पहुँचा।स्थानीय कोच के स्पोर्ट्स एकेडमी पहुँचने के लिए गोविंदपुर से धनबाद चलने वाले बालू ट्रक में बैठ गया।कोच उमेश श्रीवास्तव ने भी उसके इस जुनून को देखते हुए एकेडमी में भर्ती ले लिया।

BYTE 01:-UMESH SHRIVASTAVA,COACH

VO 02:-सोपेन टुड्डू ने बताया कि घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नही है।पिताजी दिहाड़ी मजदूर हैं।घर का खर्च ही बड़ी मुश्किल से चल पाता है।इसलिए साइकिल से12 km की दूरी तय करने के बाद गोविंदपुर से गोल्फ ग्राउंड बालू ट्रक से पहुँचते थे।लेकिन अब हमारे गांव में ही हमारे सर ट्रेनिंग के लिए जाते हैं।कई और लड़के भी ट्रेनिंग में शामिल हो रहे हैं।

BYTE 02:-SOPEN TUDDU


VO 03:-केंदुआटांड़ का ही राजेश मुर्मू नाम का का युवक भी गोल्फ ग्राउंड में क्रिकेट की ट्रेनिंग के लिए आता है।वह कहता है कि साल 2000 में फुटबॉल टूर्नामेंट के समापन के दौरान नक्सलियों द्वारा सरेआम चार चार पुलिस कर्मियों को गोलियों से छलनी कर दिया गया था।इस घटना के बाद वहां खेल का नामो निशान मिट चुका था।लेकिन अब फिर से उसी मैदान में क्रिकेट का ट्रेनिंग कैंप शुरू हुआ है।इस ट्रेनिंग कैंप में गांव के कई बच्चे और युवा भी शामिल हो रहे हैं।

BYTE 03:-RAJESH MURMU




Conclusion:
Last Updated : Jun 6, 2019, 12:45 PM IST
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