रांची/देवघर: रोपवे रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा होने के बाद से त्रिकूट पर्वत के आसपास के इलाकों में सन्नाटा पसरा हुआ है. जांच पूरी होने तक रोपवे बंद रहेगा . रोपवे का संचालन करने वाली कंपनी दामोदर रोपवे इंफ्रा लिमिटेड के जनरल मैनेजर,कमर्शियल महेश मोहिता ने बताया कि जिला प्रशासन के निर्देश के बाद ही रोपवे को ठीक करने की कवायद शुरू की जाएगी. इस बीच कई ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब सभी जानना चाहते हैं. खासकर वो लोग जो रोपवे की ट्रॉलियों में जिंदगी से जूझते रहे.
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रोपवे हादसे के बाद उठे कई सवाल: सबसे पहला सवाल तो यह है कि पूली पर से रोप आखिर उतरा कैसे. इतने भारी भरकम सिस्टम को जनरेटर के जरिए क्यों संचालित किया जा रहा था. रोपवे सिस्टम का सेफ्टी ऑडिट कौन एजेंसी करती थी. रोपवे के संचालन से कलेक्ट होने वाले रेवेन्यू में झारखंड पर्यटन विभाग की कितनी हिस्सेदारी थी. रोपवे के संचालन के लिए जेटीडीसी के साथ कब करार हुआ था. इसका वर्तमान स्टेटस क्या है.
ट्रॉली पुली से कैसे खिसका: इन सभी सवालों का जवाब जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने दामोदर रोपवे इंफ्रा लिमिटेड के जीएम महेश मोहिता से बात की. उन्होंने आश्चर्य जताते हुए कहा कि यह उनके लिए भी चौंकाने वाली बात है कि आखिर पुली पर से रोप कैसे खिसक गया. जनरेटर से रोपवे के संचालन के सवाल पर उन्होंने कहा कि देवघर में प्रॉपर तरीके से बिजली की सप्लाई नहीं होती है. वोल्टेज अप और डाउन होता रहता है. इस कंडीशन में बिजली पर रोपवे नहीं चलाया जा सकता. इसी वजह से जनरेटर पर इसका संचालन किया जाता है. उन्होंने कहा कि कंपनी के कैंपस एरिया में बिजली का कनेक्शन लगा हुआ है. तीसरे सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि काउंसिल फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के अधीन धनबाद स्थित सिंफर यानी सेंट्रल इंस्टीट्यूट आफ माइनिंग एंड फ्यूल रिसर्च की टीम समय-समय पर सेफ्टी ऑडिट करती है.
रेस्क्यू मॉक ड्रिल पर सवालः जेटीडीसी के साथ हुए करार के मुताबिक दामोदर रोपवे इंफ्रा लिमिटेड को हर तीन महीने में रेस्क्यू ऑपरेशन का मॉक ड्रिल करना था. इसकी पड़ताल करने पर पता चला कि ऐसा कुछ नहीं होता था. लेकिन कंपनी के पदाधिकारी का कहना है कि सेपरेट रोप के जरिए यह प्रक्रिया पूरी की जाती थी. अब सवाल यह है कि अगर रेस्क्य़ू ऑपरेशन का मॉक ड्रिल होता था तो फिर अलग से चोटी तक पहुंचने की व्यवस्था क्यों नहीं थी
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पिछले माह ही हुआ था ऑडिट: जीएम महेश मोहिता ने कहा पिछले माह मार्च में ही इसकी सेफ्टी ऑडिट सिंफर की टीम ने की थी. रिपोर्ट में कहीं भी किसी खामी का जिक्र नहीं है. हालांकि इस पर सेफ्टी ऑडिट करने वाले सिंफर के वैज्ञानिक से संपर्क साधने की कोशिश की गई तो वहां के हेड सिद्धार्थ सिंह ने बताया कि वह गुवाहाटी में रोपवे के सेफ्टी ऑडिट के लिए गए हैं. हमारा चौथा सवाल रेवेन्यू मॉडल को लेकर था. इस पर महेश मोहिता ने कहा कि इसका जवाब झारखंड टूरिज्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ही दे सकता है. पांचवे सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि दामोदर रोपवे इंफ्रा लिमिटेड और जीटीडीसी के बीच साल 2009 में करार हुआ था. उसके बाद से रिनुअल होता रहा है. उन्होंने कहा कि कई राज्यों में रोपवे सिस्टम को उनकी कंपनी संचालित कर रही है. लेकिन कहीं भी ऐसी दुर्घटना नहीं घटी है. उन्होंने सभी जांच एजेंसियों को तमाम जानकारी मुहैया कराने की बात कही. उन्होंने कहा कि पूरे सिस्टम के संचालन के लिए कंपनी की तरफ से 30 लोग सेवारत हैं.
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जेटीडीसी के साथ करार: रोपवे का संचालन करने वाली कंपनी के साथ जेटीडीसी का करार और रेवेन्यू मॉडल पर हमारी टीम ने जेटीडीसी के डायरेक्टर राहुल सिन्हा से बात की. उन्होंने बताया कि कंपनी के साथ 15 साल के लिए करार हुआ था.उसके बाद हर 5 साल पर रिनुअल होना है. 10 अप्रैल को रामनवमी के दिन हादसे के बाद पूरा प्रोजेक्ट सवालों के घेरे में आ गया है. वैसे हाईकोर्ट के संज्ञान लेने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी उच्च स्तरीय जांच कराने और FIR करने का निर्देश दे दिया है. इस बीच हादसे को लेकर राजनीति भी शुरू हो गई है. अब जांच के बाद ही पता चलेगा कि चूक किस स्तर पर हुई है. इस मामले में राज्य सरकार ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए मृतक के परिजनों के लिए न सिर्फ मुआवजा राशि की घोषणा कर दी है बल्कि कई लोगों की जान बचाने वाले पन्नालाल से खुद मुख्यमंत्री ऑनलाइन बात कर हौसला अफजाई कर चुके हैं. सरकार की तरफ से पन्ना लाल को सम्मान के रूप में एक लाख का चेक भी दिया जा चुका है. लेकिन इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि हादसा आखिर हुआ कैसे. क्या किसी की जिम्मेदारी फिक्स हो पाएगी.