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सावन में कांवर यात्रा का है विशेष महत्व, अश्वमेघ यज्ञ के समान होती है पूण्य की प्राप्ति

पवित्र श्रावणी महीने में कांवरिया अपने कंधे पर कांवर रखकर सुल्तानगंज से जल भरकर देवघर आते हैं और बाबा को जल अर्पित करते हैं. मान्यता है कि कांवर यात्रा करने से अश्वमेघ यज्ञ जितनी पूण्य की प्राप्ति होती है.

सावन में कांवर यात्रा
सावन में कांवर यात्रा
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Published : Jul 21, 2022, 4:55 PM IST

Updated : Jul 21, 2022, 5:27 PM IST

देवघरः बोलबम में लोग कांवर लेकर बाबा भोलेनाथ के दरबार में पहुंचते हैं. कांवर यात्रा की बड़ी महिमा है. कांवर को लेकर चलने में कई नियमों का भी पालन करना पड़ता है. इसमे शुद्धता का भी काफी ख्याल रखा जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान राम से लेकर श्रवण कुमार तक ने कांवर यात्रा की थी.


कांवर यात्रा की महिमा बहुत पुरानी है. कथाओं के मुताबिक रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद भगवान राम अयोध्या लौटे. अयोध्या में राज्याभिषेक के बाद भगवान राम ने पत्नी सीता ओर तीनों भाई सहित सुल्तानगंज से जल भर कर शिव का जलाभिषेक किया था. तभी से शिव भक्त यह जलाभिषेक करते हैं स्कंद पुराण के अनुसार कांवर यात्रा से अश्वमेघ यज्ञ करवाने जितनी फल की प्राप्ति होती है. इसलिए कांवरिया सभी कष्ट भूलकर दुर्गम रास्तो पर भी बम भोले का सुमिरन करने बाबा नगरी पहुचते हैं. साथ ही साथ यह भी कहा गया है कि श्रवण कुमार ने आपने माता पिता को कांवर में रखकर कावड़ यात्रा कराई थी तभी से श्रावण मास में जलाभिषेक का विशेष महत्त्व है.

देखें पूरी खबर
कावड़ यात्रा तीन तरह के होते हैं. एक वो जो रुक रुक कर चलते हैं, दूसरे वो जो डंडी कावड़ लेके आते है यानी ये दंड देते देते आते और ओर तीसरे वो जो बिना रुके बिना खाये कावड़ लेकर आते हैं. इन्हें डाक कांवरिया भी कहते हैं. कांवर यात्रा में भक्त पूरे नियमों का पालन करते हैं. इस दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है और एक साधु की जीवन शैली को साथ रखकर चलना पड़ता है. कांवरिया सबसे पहले सुल्तानगंज से जल भर कर संकल्प लेते हैंं और कई नियमों का पालन करते हुए बाबाधाम पहुंचते हैं. कांवर में एक तरफ जल देवघर के बाबा बैद्यनाथ के लिए होता है, तो दूसरी तरफ बासुकीनाथ के लिए जल होता है. वहीं एक अन्य पात्र में भी जल होता है. जिसका उपयोग शुद्धि के लिए होता है. कुछ कांवरिया अपने साथ अपनी पत्नी, अपने बच्चे के नाम से भी जल ले जाते हैं. भक्त रास्ते भर यात्रा में पवित्रता का खूब ख्याल रखते हैं

देवघरः बोलबम में लोग कांवर लेकर बाबा भोलेनाथ के दरबार में पहुंचते हैं. कांवर यात्रा की बड़ी महिमा है. कांवर को लेकर चलने में कई नियमों का भी पालन करना पड़ता है. इसमे शुद्धता का भी काफी ख्याल रखा जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान राम से लेकर श्रवण कुमार तक ने कांवर यात्रा की थी.


कांवर यात्रा की महिमा बहुत पुरानी है. कथाओं के मुताबिक रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद भगवान राम अयोध्या लौटे. अयोध्या में राज्याभिषेक के बाद भगवान राम ने पत्नी सीता ओर तीनों भाई सहित सुल्तानगंज से जल भर कर शिव का जलाभिषेक किया था. तभी से शिव भक्त यह जलाभिषेक करते हैं स्कंद पुराण के अनुसार कांवर यात्रा से अश्वमेघ यज्ञ करवाने जितनी फल की प्राप्ति होती है. इसलिए कांवरिया सभी कष्ट भूलकर दुर्गम रास्तो पर भी बम भोले का सुमिरन करने बाबा नगरी पहुचते हैं. साथ ही साथ यह भी कहा गया है कि श्रवण कुमार ने आपने माता पिता को कांवर में रखकर कावड़ यात्रा कराई थी तभी से श्रावण मास में जलाभिषेक का विशेष महत्त्व है.

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कावड़ यात्रा तीन तरह के होते हैं. एक वो जो रुक रुक कर चलते हैं, दूसरे वो जो डंडी कावड़ लेके आते है यानी ये दंड देते देते आते और ओर तीसरे वो जो बिना रुके बिना खाये कावड़ लेकर आते हैं. इन्हें डाक कांवरिया भी कहते हैं. कांवर यात्रा में भक्त पूरे नियमों का पालन करते हैं. इस दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है और एक साधु की जीवन शैली को साथ रखकर चलना पड़ता है. कांवरिया सबसे पहले सुल्तानगंज से जल भर कर संकल्प लेते हैंं और कई नियमों का पालन करते हुए बाबाधाम पहुंचते हैं. कांवर में एक तरफ जल देवघर के बाबा बैद्यनाथ के लिए होता है, तो दूसरी तरफ बासुकीनाथ के लिए जल होता है. वहीं एक अन्य पात्र में भी जल होता है. जिसका उपयोग शुद्धि के लिए होता है. कुछ कांवरिया अपने साथ अपनी पत्नी, अपने बच्चे के नाम से भी जल ले जाते हैं. भक्त रास्ते भर यात्रा में पवित्रता का खूब ख्याल रखते हैं
Last Updated : Jul 21, 2022, 5:27 PM IST
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