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इमली और महुआ खाकर जिंदा है गुरुवारी, लॉकडाउन में नहीं मिला खाना - झारखंड में कोरोना वायरस अपडेट

चाईबासा के टोंटो प्रखंड अंतर्गत घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में वन विभाग के टूटे हुए भवन को अपना आशियाना बनाकर रह रही 75 वर्षीय गुरुवारी लागुरी के सामने इस लॉकडाउन में खाने-पीने की बड़ी समस्या है. वो पिछले चार दिन से इमली और महुआ खाकर पेट भर रही है.

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Published : Apr 14, 2020, 3:21 PM IST

चाईबासा: कोरोना वायरस को लेकर पूरे देश में लॉकडाउन लगा हुआ है और इस लॉकडाउन के दौरान कोई भूखा न रहे और भूख से किसी की मौत न हो जाए. इसे लेकर पश्चिम सिंहभूम जिला प्रशासन गरीबों, असहाय और जरुरतमंद के लिए मिल ऑन द व्हील्स के तहत काम कर रही है. वहीं, जिले में विभिन्न प्रखंड अंतर्गत पंचायतों में मुखिया को गांव में 10-10 किलो अनाज बांटने का आदेश दिया गया है. पर पश्चिम सिंहभूम के टोंटो प्रखंड अंतर्गत घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में एक वृद्ध महिला इमली और महुआ खाकर पिछले चार दिनों से अपनी पेट की आग बुझा रही है और जिंदा रहने की जद्दोजहद में लगी हुई है.

देखें पूरी खबर

भूख और बेबसी की जिंदगी
टोंटो प्रखंड अंतर्गत घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में वन विभाग के टूटे हुए भवन को अपना आशियाना बनाकर रह रही 75 वर्षीय गुरुवारी लागुरी लॉकडाउन में भूख और बेबसी की जिंदगी जीने को मजबूर है. गांव के ग्रामीण महिला स्थानीय हो भाषा में बताती हैं कि गुरुवारी के परिवार में कोई नहीं है, गुरुवारी का न तो राशन कार्ड है और न आधार कार्ड. उसका घर वर्षों पहले ही टूट चुका है. सरकार से मिलने वाला चावल भी उसे नहीं मिला है. सामान्य दिनों में गांव में घूम घूमकर गुरुवारी अपने पेट के लिए खाना का जुगाड़ कर लेती थी. गांव में संचालित दाल भात केंद्र से भी खाना मिल जाया करता था, कोरोना के संक्रमण के डर से दाल भात केंद्र अब बंद हो चुका है.

ये भी पढ़ें- रांची के हिंदपीढ़ी में कोरोना संदिग्ध को लाने गई स्वास्थ्य विभाग की टीम, लौटी बैरंग

इमली और महुआ खाकर भर रही पेट
गांव की महिलाएं जब झींकपानी स्थित बैंक से पैसे निकालने पहुंची तो समाजिक कार्यकर्ता जितेन गोप को गांव की वृद्ध महिला गुरुवारी के बारे में जानकारी दी. जिसके बाद जितेन गोप ने वृद्ध महिला के घर पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया. गुरुवारी के घर का चूल्हा कई माह से नहीं जला था. घर में चावल का एक दाना तक नहीं था. घर में रखे दो बोरे में मात्र इमली और महुआ रखे थे. जिसे खाकर गुरुवारी अपना पेट भर रही थी.

गुरुवारी की स्थिति काफी दयनीय
समाजिक कार्यकर्ता जितेन गोप बताते हैं कि टोंटो पंचायत की मुख्य बाजार क्षेत्र के पास रहने वाली गुरुवारी की स्थिति काफी दयनीय है. उसकी स्थिति देख उन्होंने टोंटो प्रखंड के बीडीओ से बात करने का प्रयास किया पर उनका फोन नहीं लगा. उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के दौरान जिसके पास राशन कार्ड नहीं है उसे भी 10 किलो चावल देने की बात कही जा रही है पर पंचायत के मुखिया पंचायत के कार्डधारियों तक को सही से राशन नहीं देते हैं. ऐसे में जिनके पास राशन कार्ड नहीं है उसे राशन बिल्कुल भी नसीब नहीं हो रहा है.

ये भी पढ़ें- लॉकडाउन के दौरान नहीं ली जाएगी स्कूल फीस, उपायुक्त ने दिया आदेश, अभिभावकों को मिली बड़ी राहत

मुखिया पर आरोप
जितेन गोप ने बताया कि टोंटो पंचायत के आसपास के गांव के 150 से अधिक परिवार रहते हैं. जिनमें मात्र 30 से 40 परिवार को ही सरकारी चावल नसीब हो रहा है. राशन कार्ड से वंचित लोगों को राशन नहीं दिया जाता है. पंचायत के मुखिया के पास ग्रामीणों के जाने पर उन्हें फटकार लगाकर भगा दिया जाता है.

चाईबासा: कोरोना वायरस को लेकर पूरे देश में लॉकडाउन लगा हुआ है और इस लॉकडाउन के दौरान कोई भूखा न रहे और भूख से किसी की मौत न हो जाए. इसे लेकर पश्चिम सिंहभूम जिला प्रशासन गरीबों, असहाय और जरुरतमंद के लिए मिल ऑन द व्हील्स के तहत काम कर रही है. वहीं, जिले में विभिन्न प्रखंड अंतर्गत पंचायतों में मुखिया को गांव में 10-10 किलो अनाज बांटने का आदेश दिया गया है. पर पश्चिम सिंहभूम के टोंटो प्रखंड अंतर्गत घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में एक वृद्ध महिला इमली और महुआ खाकर पिछले चार दिनों से अपनी पेट की आग बुझा रही है और जिंदा रहने की जद्दोजहद में लगी हुई है.

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भूख और बेबसी की जिंदगी
टोंटो प्रखंड अंतर्गत घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में वन विभाग के टूटे हुए भवन को अपना आशियाना बनाकर रह रही 75 वर्षीय गुरुवारी लागुरी लॉकडाउन में भूख और बेबसी की जिंदगी जीने को मजबूर है. गांव के ग्रामीण महिला स्थानीय हो भाषा में बताती हैं कि गुरुवारी के परिवार में कोई नहीं है, गुरुवारी का न तो राशन कार्ड है और न आधार कार्ड. उसका घर वर्षों पहले ही टूट चुका है. सरकार से मिलने वाला चावल भी उसे नहीं मिला है. सामान्य दिनों में गांव में घूम घूमकर गुरुवारी अपने पेट के लिए खाना का जुगाड़ कर लेती थी. गांव में संचालित दाल भात केंद्र से भी खाना मिल जाया करता था, कोरोना के संक्रमण के डर से दाल भात केंद्र अब बंद हो चुका है.

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इमली और महुआ खाकर भर रही पेट
गांव की महिलाएं जब झींकपानी स्थित बैंक से पैसे निकालने पहुंची तो समाजिक कार्यकर्ता जितेन गोप को गांव की वृद्ध महिला गुरुवारी के बारे में जानकारी दी. जिसके बाद जितेन गोप ने वृद्ध महिला के घर पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया. गुरुवारी के घर का चूल्हा कई माह से नहीं जला था. घर में चावल का एक दाना तक नहीं था. घर में रखे दो बोरे में मात्र इमली और महुआ रखे थे. जिसे खाकर गुरुवारी अपना पेट भर रही थी.

गुरुवारी की स्थिति काफी दयनीय
समाजिक कार्यकर्ता जितेन गोप बताते हैं कि टोंटो पंचायत की मुख्य बाजार क्षेत्र के पास रहने वाली गुरुवारी की स्थिति काफी दयनीय है. उसकी स्थिति देख उन्होंने टोंटो प्रखंड के बीडीओ से बात करने का प्रयास किया पर उनका फोन नहीं लगा. उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के दौरान जिसके पास राशन कार्ड नहीं है उसे भी 10 किलो चावल देने की बात कही जा रही है पर पंचायत के मुखिया पंचायत के कार्डधारियों तक को सही से राशन नहीं देते हैं. ऐसे में जिनके पास राशन कार्ड नहीं है उसे राशन बिल्कुल भी नसीब नहीं हो रहा है.

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मुखिया पर आरोप
जितेन गोप ने बताया कि टोंटो पंचायत के आसपास के गांव के 150 से अधिक परिवार रहते हैं. जिनमें मात्र 30 से 40 परिवार को ही सरकारी चावल नसीब हो रहा है. राशन कार्ड से वंचित लोगों को राशन नहीं दिया जाता है. पंचायत के मुखिया के पास ग्रामीणों के जाने पर उन्हें फटकार लगाकर भगा दिया जाता है.

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