चाईबासा: कोरोना संक्रमण की रोकथाम को लेकर देश में लगाए गए लॉकडाउन में परेशानियों को झेलते और जद्दोजहद करने के बाद प्रवासी मजदूर अपने गांव पहुंचे थे. वे एक बार फिर काम की तलाश में पलायन कर रहे हैं. राज्य सरकार देश के विभिन्न राज्यों से लौटे प्रवासी मजदूरों को अपने ही राज्य में काम देने के उद्देश्य से कई योजनाएं शुरूआत भी की है, लेकिन प्रवासी मजदूरों को राज्य सरकार की योजनाएं रास नहीं आ रहे हैं. इसलिए जिले के मजदूर काम की तलाश में फिर से पलायन कर रहे हैं.
मजदूरों को निबंधन करके ही अन्य राज्यों में जाने की अनुमति
सरकार के द्वारा प्रवासी मजदूरों की निबंधन करवाने को लेकर निर्देश जारी किया है और राज्य के सभी जिले में आने वाले प्रवासी मजदूरों की निबंधन जिला प्रशासन के द्वारा की जा रही है. इसके साथ ही मजदूरों को निबंधन करके ही अन्य राज्यों में जाने की अनुमति भी दी गई है, लेकिन पश्चिम सिंहभूम जिले के कई गांव से मजदूर बिना निबंधन के ही अन्य राज्यों से आने वाले ठेकेदारों और कंपनियों के बसों में बैठकर चले जा रहे हैं. कुछ दिनों पूर्व ही तमिलनाडु राज्य की एक कंपनी के द्वारा भेजी गई बस को स्थानीय लोगों ने पकड़ कर थाने को सुपुर्द कर दिया था. पुलिस के द्वारा पूछताछ किए जाने पर जानकारी मिली की चेन्नई की कंपनी के द्वारा दो बसें भेजी गई है और मजदूर उस बस से ही बिना निबंधन के जा रहे हैं. जिस पर स्थानीय पुलिस ने सभी मजदूरों को अपना निबंधन करवा कर ही अन्य राज्यों में जाने की अनुमति दी.
मजदूरों ने सुनाई अपनी पीड़ा
प्रवासी मजदूर धंनजय महतो ने कहा कि "हम लॉकडाउन से पहले ही अपने घर लौट आए थे. झारखंड सरकार के द्वारा काम तो मिला, लेकिन दो-चार दिन का ही काम मिलता है, ऐसे में हम लोग अपना परिवार कैसे चलाएंगे और जो मजदूरी मिलती है उसमें बहुत कम पैसा मिलता है. प्रतिदिन हाजरी के हिसाब से 190 रुपए मिलते हैं. जबकि मैं ऑपरेटर का काम करता हूं, चेन्नई में हमें ऑपरेटर का काम करने पर महीने के 28 से 30 हजार रुपए मिलते हैं. इसलिए हम वापस ठेकेदार के साथ जाने का मन बनाएं हैं".
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पिंटू कुमार महतो ने बताया कि 'वे पहली बार काम करने के लिए चेन्नई जा रहे. सरकार के द्वारा चलाई जा रही योजनाओं की जानकारी उन्हें नहीं है. सरकार की योजनाओं के बारे में जानकारी होती और काम अगर मिलता तो हम लोग यहीं काम करते, लेकिन जानकारी नहीं थी और काम भी नहीं मिला जिस कारण हम लोग चेन्नई काम करने पहली बार जा रहे थे". चेन्नई से कंपनी के द्वारा बस भेजी गई थी. लालजी कुमार महतो ने कहा कि "उनके घर 6 सदस्यों का परिवार है और उनके भरण पोषण के लिए काम की तलाश में चेन्नई जा रहे थे. उन्हें अगर यंहा काम मिलेगा तो वे चेन्नई नहीं जाते. जहा काम मिल भी रहा है वहां पैसे कम दिए जाते हैं. जबकि चेन्नई में सामान्य मजदूरी करने पर 15 से 18 हजार मिलते हैं इसी कारण काम करने चेन्नई जा रहे हैं."
क्यों हो रहा फिर से पलायन
पश्चिम सिंहभूम जिले में लगभग 36 हजार प्रवासी मजदूर वापस लौटे हैं जिला प्रशासन के द्वारा इनका पंजीयन भी करवाया गया है. पंजीयन के बाद सभी प्रवासी मजदूरों को रोजगार उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से राज्य सरकार के द्वारा चलाई जा रही योजनाओं को भी जिले के सभी प्रखंडों में मनरेगा के तहत काम देने की योजना जिला प्रशासन ने बनाई थी. उसके बाद भी मजदूरों को लौटे हुए अभी 2 महीने भी नहीं हुए की प्रवासी मजदूर फिर से रोजगार के लिए पलायन कर रहे हैं. ऐसे में सरकार के द्वारा प्रवासी मजदूरों को रोजगार उपलब्ध करवाने के दावों के बीच में सबसे बड़ी समस्या यह है कि आखिर में पलायन फिर से क्यों शुरू हो गई है. मनरेगा की रोजगार गारंटी योजना के तहत बड़ी संख्या में रोजगार देने का दावा किया गया, लेकिन जिस तरह की समस्याएं बनी हुई है. उसके मद्देनजर फिर से पलायन शुरू हो गया है.
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उपायुक्त ने क्या कहा
जिले के उपायुक्त अरवा राजकमल ने कहा कि दूसरे राज्यों में काम करने जाने वाले मजदूरों को निबंधन करवाना अनिवार्य होगा, क्योंकि बिना निबंधन के अगर मजदूरों को भेज दिया जाता है और भविष्य में उनके साथ वहां पर कुछ अनहोनी घटना घट जाती है तो वैसे दिशा में मजदूर के परिजनों को सूचना देने या सरकार के द्वारा राहत देने के कार्यों में कठिनाई हो सकती है. जिला प्रशासन भी उनके हित के लिए प्रयासरत है, लगातार गांव के मुंडा एवं मानकी के माध्यम से भी निगरानी रखा जा रहा है. बिना ई-पास के दूसरे राज्यों से आने वाले गाड़ियों की सूचना मिलने पर वैसे लोगों पर कानूनी कार्रवाई भी कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि इससे पूर्व के दिनों में मनरेगा के तहत इतनी बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों को काम नहीं दिया गया था. इस जिले में 36 हजार प्रवासी मजदूर आए हैं और अब 1 या 2 हजार मजदूर भी यहां से वापस नहीं गए हैं, क्योंकि ट्रेन की सुविधा भी यहां से शुरू नहीं हुई है और कम बसों में भी मजदूर वापस गए हैं. मजदूर अपनी इच्छा से दूसरे राज्यों में जाकर काम करना चाहते हैं तो वे जा सकते हैं, लेकिन जबरन उन्हें कोई अगर काम करने के लिए ले जा रहे हैं तो वैसे लोगों पर हमारी नजर है.
रोजगार के लिए पलायन और सेहत से खिलवाड़
इधर, जिस तरह से प्रवासी मजदूरों का पलायन हो रहा है. मजदूरों को बसों में ठुंस- ठुंस कर ले जाया जा रहा है. ठेकेदार और कंपनियां अपनी खुद की बसें भेज कर मजदूरों को ले जा रही हैं और किसी प्रकार से सोशल डिस्टेंस का पालन नहीं किया जा रहा है. मास्क और सेनेटाइजर तो बहुत ही दूर की बात है. ऐसे में इन अव्यवस्थाओं में मजदूरों की जिंदगी को खतरे में डाला जा रहा है. हालात यह है कि कोरोना वायरस संक्रमण की महामारी आगामी दिनों में फैली तो सबसे ज्यादा मजदूर प्रभावित होंगे. इस विषय पर किसी का भी ध्यान नहीं है.