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महिला दिवस विशेष: सारंडा के बीहड़ में पिछले 5 वर्षों से शिक्षा की ज्योत जला रही जया रानी

पश्चिम सिंहभूम जिले के नोवामुंडी प्रखंड अंतर्गत सारंडा स्थित किरीबुरू की जया रानी पाडेया शिक्षित समाज के लिए निस्वार्थ काम कर रही हैं. वो बच्चों की निशुल्क शिक्षा देती हैं. उन्होंने खुद के दम पर गरीब बच्चों के लिए स्कूल भी खोला है.

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जया रानी पाडेया
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Published : Mar 1, 2020, 6:02 AM IST

चाईबासा: पश्चिम सिंहभूम जिले के नोवामुंडी प्रखंड अंतर्गत सारंडा स्थित किरीबुरू निवासी जया रानी पाडेया शिक्षित समाज के निर्माण के लिए निस्वार्थ भाव से अपनी अहम भूमिका निभाकर प्रेरणादायक संदेश दे रही हैं. जय रानी पाडेया पिछले 5 वर्षों से किरीबुरू क्षेत्र के ठेका मजदूर और गरीब तबके बच्चों को निशुल्क शिक्षा देकर शिक्षित बना रही हैं. 2015 में जया रानी ने स्कूल खोला जिसका नाम नवजीवन शिशु विद्यालय दिया गया.

देखें महिला दिवस पर विशेष खबर

'शिक्षा से ही बच्चों को नवजीवन मिल सकता है'
जया रानी पाडेया की माने तो शिक्षा से ही बच्चों को नवजीवन मिल सकता है. बस इसी सोच के साथ उन्होंने स्कूल का नाम निशुल्क नवजीवन शिशु विद्यालय रखा. यहां किरीबुरू प्रोस्पेक्टिंग, बक्कल हाटिंग, गाढ़ा हाटिंग आदि के लगभग 70 से 80 बच्चे पढ़ते हैं. लेकिन अब स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ गई है.

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समाजसेवी के रूप में जानी जाती हैं जया
जया रानी पाडेया किरीबुरू सेल उप महाप्रबंधक यूएस पाडेया की पत्नी हैं. यूं तो जया रानी पाडेया की पहचान एक समाजसेवी के रूप में हमेशा से रही है. किरीबुरू में गरीब और निसहाय बच्चों को सड़क किनारे घूमते और भीख मांगते देख जया ने बच्चों के माता-पिता से मिलकर बातचीत कर उन्हें समझाया पर बच्चों के माता-पिता ने अपनी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की बात बताई. तभी जया ने उन बच्चों के लिए निशुल्क शिक्षा देने की ठान ली और स्कूल की स्थापना कर डाली.

ये भी पढ़ें- फरियादियों से मिले सीएम हेमंत सोरेन, कहा- मूलभूत सुविधाओं को मजबूत करेगी सरकार

शुरुआती दौर में हुई परेशानी
बता दें कि स्कूल के शुरुआती दौर में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. स्कूल को सुचारू रूप से संचालित किए जाने और अन्य संसाधनों के लिए सेल खदान प्रबंधन से भी सहयोग की अपील की पर कहीं से कोई सहयोग नहीं मिल सका. जिसके बाद जय रानी ने खुद ही घर के खर्चों में से कुछ पैसे काट कर स्कूल को सुचारू रूप से अब तक संचालित रखा है. जया को अकेले ही स्कूल को संचालित करता देख कुछ महिला समिति की महिलाओं ने भी समय-समय पर मजदूर और गरीब तबके के बच्चों के बीच किताब-कॉपी, पेंसिल और उनके यूनिफॉर्म का वितरण करना शुरू किया.

ये भी पढ़ें- एशिया की सबसे बड़ी कोल परियोजना में लटका ताला, सैकड़ों मजदूर हुए बेरोजगार

अहम योगदान
जया ने विद्यालय की स्थापना के शुरुआती दौर में खुद विद्यालय में जाकर बच्चों को पढ़ाने की शुरुआत की. धीरे-धीरे उन्होंने स्कूल में तीन अन्य शिक्षकों को भी नियुक्त किया. विगत 5 वर्षों से इस नवजीवन शिशु विद्यालय से लगभग 200 बच्चों को निशुल्क शिक्षा देकर जया रानी ने यह सिद्ध कर दिया कि बिना धन के इंसान अकेले भी समाज में निशुल्क शिक्षा की ज्योत जलाकर समाज को रोशन कर सकता है और देश के विकास में अपना अहम योगदान दे सकता है.

चाईबासा: पश्चिम सिंहभूम जिले के नोवामुंडी प्रखंड अंतर्गत सारंडा स्थित किरीबुरू निवासी जया रानी पाडेया शिक्षित समाज के निर्माण के लिए निस्वार्थ भाव से अपनी अहम भूमिका निभाकर प्रेरणादायक संदेश दे रही हैं. जय रानी पाडेया पिछले 5 वर्षों से किरीबुरू क्षेत्र के ठेका मजदूर और गरीब तबके बच्चों को निशुल्क शिक्षा देकर शिक्षित बना रही हैं. 2015 में जया रानी ने स्कूल खोला जिसका नाम नवजीवन शिशु विद्यालय दिया गया.

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'शिक्षा से ही बच्चों को नवजीवन मिल सकता है'
जया रानी पाडेया की माने तो शिक्षा से ही बच्चों को नवजीवन मिल सकता है. बस इसी सोच के साथ उन्होंने स्कूल का नाम निशुल्क नवजीवन शिशु विद्यालय रखा. यहां किरीबुरू प्रोस्पेक्टिंग, बक्कल हाटिंग, गाढ़ा हाटिंग आदि के लगभग 70 से 80 बच्चे पढ़ते हैं. लेकिन अब स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ गई है.

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समाजसेवी के रूप में जानी जाती हैं जया
जया रानी पाडेया किरीबुरू सेल उप महाप्रबंधक यूएस पाडेया की पत्नी हैं. यूं तो जया रानी पाडेया की पहचान एक समाजसेवी के रूप में हमेशा से रही है. किरीबुरू में गरीब और निसहाय बच्चों को सड़क किनारे घूमते और भीख मांगते देख जया ने बच्चों के माता-पिता से मिलकर बातचीत कर उन्हें समझाया पर बच्चों के माता-पिता ने अपनी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की बात बताई. तभी जया ने उन बच्चों के लिए निशुल्क शिक्षा देने की ठान ली और स्कूल की स्थापना कर डाली.

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शुरुआती दौर में हुई परेशानी
बता दें कि स्कूल के शुरुआती दौर में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. स्कूल को सुचारू रूप से संचालित किए जाने और अन्य संसाधनों के लिए सेल खदान प्रबंधन से भी सहयोग की अपील की पर कहीं से कोई सहयोग नहीं मिल सका. जिसके बाद जय रानी ने खुद ही घर के खर्चों में से कुछ पैसे काट कर स्कूल को सुचारू रूप से अब तक संचालित रखा है. जया को अकेले ही स्कूल को संचालित करता देख कुछ महिला समिति की महिलाओं ने भी समय-समय पर मजदूर और गरीब तबके के बच्चों के बीच किताब-कॉपी, पेंसिल और उनके यूनिफॉर्म का वितरण करना शुरू किया.

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अहम योगदान
जया ने विद्यालय की स्थापना के शुरुआती दौर में खुद विद्यालय में जाकर बच्चों को पढ़ाने की शुरुआत की. धीरे-धीरे उन्होंने स्कूल में तीन अन्य शिक्षकों को भी नियुक्त किया. विगत 5 वर्षों से इस नवजीवन शिशु विद्यालय से लगभग 200 बच्चों को निशुल्क शिक्षा देकर जया रानी ने यह सिद्ध कर दिया कि बिना धन के इंसान अकेले भी समाज में निशुल्क शिक्षा की ज्योत जलाकर समाज को रोशन कर सकता है और देश के विकास में अपना अहम योगदान दे सकता है.

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