चाईबासा: गुवा गोली कांड शहादत दिवस की पूर्व संध्या पर चक्रधरपुर के विधायक सुखराम उरांव ने पत्रकारों से वार्ता करते हुए कहा कि झारखंड के स्कूलों में गुवा गोली कांड के इतिहास को शामिल कराया जाएगा. अब झारखंड के अलग राज्य के लिए लड़ी गईं लड़ाइयां और बलिदानों को भी पाठ्यक्रम में जगह दी जाएगी.
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गुवा गोलीकांड एक दर्दनाक घटना
उन्होंने कहा कि इसके लिए निकट भविष्य में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, गुरूजी शिबू सोरेन और शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो समेत सभी मंत्री और विधायकों से मिलकर पाठ्यक्रम में आंदोलन, आंदोलनकारियों, शहीदों और उनके परिवार वालों को स्थान देने की अपील की जाएगी. उरांव ने कहा कि गुवा गोलीकांड एक दर्दनाक घटना है. जिसे सुनकर ही रेंगटे खड़े हो जाते हैं. निहत्थे आदिवासियों को पंक्ति में खड़ाकर बर्बतापूर्ण तरीके से गोली मार दिया जाना बुदजिली थी.
उन्होंने कहा कि झारखंड अलग राज्य आंदोलन के दौरान अनेक लड़ाई लड़ी गयीं और हजारों लोग शहीद हुए. हजारों ने बलिदान दिये तब झारखंड अलग राज्य का निर्माण हो सका. कोल्हान की धरती में बंदगांव के शहीद लाल सिंह मुंडा, नकटी के शहीद मछुआ गागराई, सेरेंगदा गोलीकांड के शहीद सोमनाथ लोमगा, लोपा बुढ़ और अन्य, बिला गोलीकांड के शहीद दिउ कोड़ा, ईचाहातु के शहीद महेश्वर जामुदा, इलीगाड़ा तांतनगर गोलीकांड के शहीद, उटूटुवा गोलीकांड के शहीद टिकुट लागुरी, शहीद देवेंद्र माझी, सेरेंगसिया घाटी के शहीद पोटो हो व उनके शहीद साथी, खरसावां गोली कांड के हजारों शहीदों, शहीद निर्मल महतो, शहीद सिद्धु-कान्हु, शहीद शेख भिखारी एवं शहीद बिरसा मुंडा समेत पूरे राज्य के शहीदों को इतिहास में जगह दी जाएगी.
बलिदान और सम्मानजनक इतिहास की मिलेगी जानकारी
विधायक ने कहा कि उनका मानना है कि झारखंड अलग राज्य आंदोलन की लंबी और संघर्षपूर्ण लड़ाई को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने से आने वाली नई नस्ल को बलिदान और सम्मानजनक इतिहास की जानकारी मिलेगी. इसलिए पूरे आंदोलन के इतिहास पर पुस्तक लिखी जानी चाहिए और दस्तावेजीकरण कर और डॉक्यूमेंट्री बनाकर नयी नस्ल को धरोहर के रूप में पेश करना जरूरी है.
इसकी शुरुआत गुवा गोली कांड, सेरेंगसिया घाटी और खरसावां गोलीकांड के इतिहास की डॉक्यूमेंट्री का निर्माण से कराना है. यह काम राज्य सरकार की सहमति से ही मुमकिन है. इसलिए सरकार के सभी मंत्री और विधायकों की रायशुमारी के बाद पुस्तक लिखने का काम शुरू होगा या फिर आंदोलन पर जो किताबें लिखी जा चुकी हैं, उसका अध्ययन कर पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाएगा.