मुंबई: तीन दिवसीय बैठक के बाद भारतीय रिजर्व बैंक(आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति ने रेपो दर में 25 आधार अंकों की कटौती कर 5.75% करने का फैसला किया है.
साथ ही तरलता समायोजन की सुविधा (एलएएफ) के तहत रिवर्स रेपो दर 5.50 प्रतिशत और सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 6.0 प्रतिशत परक समायोजित है.
अर्थव्यवस्था में मंदी की चिंताओं के बीच, केंद्रीय बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के पूर्वानुमान को मौजूदा वित्त वर्ष के लिए 7 प्रतिशत तक कम कर दिया, जो पहले अनुमानित 7.2 प्रतिशत था.
एमपीसी ने मौद्रिक नीति के रुख को तटस्थ से बदलकर समायोजन करने का भी फैसला किया.
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ये निर्णय उपभोक्ता समर्थन सूचकांक (सीपीआई) के लिए मध्यम अवधि के लक्ष्य को प्राप्त करने के उद्देश्य से हैं, जो विकास का समर्थन करते हुए +/- 2 प्रतिशत के एक बैंड के भीतर 4 प्रतिशत है.
आरबीआई ने अप्रैल-सितंबर के लिए मुद्रास्फीति का अनुमान 3-3.1 प्रतिशत और वर्ष की दूसरी छमाही के लिए 3.4% -3.7% बढ़ा दिया है.
आरबीआई ने आरटीजीएस और एनईएफटी लेनदेन पर शुल्क को भी हटाने का फैसला किया है, जिसका लाभ बैंकों को अपने ग्राहकों को देना होगा.
आरबीआई ने एटीएम शुल्क की जांच करने के लिए सभी हितधारकों को शामिल कर एक समिति के गठन का निर्णय किया है, जिसकी अध्यक्षता भारतीय बैंक्स एसोशिएसन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी करेंगे. समिति अपनी पहली बैठक के दो महीनों के भीतर अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करेगी.
रेपो दर को कम करने के पीछे मुख्य कारण घरेलू औद्योगिक गतिविधि और वैश्विक मोर्चे पर व्यापार में धीमा होना है.
नीति संकल्प के अनुसार, "एमपीसी (मौद्रिक नीति समिति) नोट करता है कि विकास आवेग काफी कमजोर हो गए हैं. निजी उपभोग वृद्धि में निरंतर वृद्धि के साथ निवेश गतिविधि में तेज मंदी चिंता का विषय है."
यह फरवरी और अप्रैल 2019 नीति समीक्षा के बाद रेपो दर में लगातार तीसरी कटौती है.
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता में छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति ने 2019-20 के लिए दूसरी द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक 3 जून को शुरू हुई थी.
2019 लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद यह पहली मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक थी.
रेपो दर क्या है
रेपो दर वह दर है जिस पर केंद्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों को कर्ज देता है. बैक टू बैक कटौती से बैंक ग्राहकों को कम ब्याज दर पर व्यक्तिगत, ऑटो और होम लोन दे सकेंगे. नतीजतन, समान मासिक किस्तों (ईएमआई) में कमी आ सकती है.