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पुराने वाहनों पर ग्रीन टैक्स कितना वाजिब ?

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Published : Jan 28, 2021, 9:57 PM IST

केंद्र सरकार ने पुरानी गाड़ियों पर ग्रीन टैक्स लगाने का प्रस्ताव दिया है. सरकार चाहती है कि लोग इलेक्ट्रिक वाहन अधिक से अधिक खरीदें. इसे ग्रीन टैक्स से मुक्त रखा गया है. हालांकि, भारत जैसे देश में जहां वाहन खरीदना जीवनभर की कमाई का निवेश होता है, पुराने वाहनों पर टैक्स लगाना कितना वाजिब होगा, यह विश्लेषण का विषय जरूर है. विस्तार से पढ़ें पूरी खबर..

पुराने वाहनों पर ग्रीन टैक्स
पुराने वाहनों पर ग्रीन टैक्स

हैदराबाद : केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय ने 15 साल पुराने व्यावसायिक वाहनों (ट्रक, टैक्सी और निजी वाहन) पर ग्रीन टैक्स लगाने का प्रस्ताव दिया है. इसका मुख्य उद्देश्य है लोग पुरानी गाड़ियों की जगह नई गाड़ियों को खरीदने के लिए प्रोत्साहित हों. राज्य सरकारों से परामर्श के बाद इस प्रस्ताव को अधिसूचित किया जा सकता है. उसके बाद इसे एक अप्रैल लागू किया जाएगा.

नए टैक्स प्रस्ताव के मुताबिक फिटनेस सर्टिफिकेट हासिल करते समय रोड टैक्स अभी जितना लगता है, उसमें 10 से 25 फीसदी तक अतिरिक्त भरना होगा. अतिरिक्त भुगतान 50 फीसदी तक भी हो सकता है.

इलेक्ट्रिक पावर, सीएनजी, इथेनॉल और एलपीजी से चलने वाली गाड़ियों को इस टैक्स से मुक्त रखा गया है. सिटी बस, ट्रैक्टर और टिलर्स पर भी ग्रीन टैक्स नहीं लगेगा.

सरकार ने 15 साल से अधिक पुराने सभी सरकारी वाहनों को स्क्रैप में बदलने की नीति को भी मंजूरी दे दी है. पिछले अनुभवों के मद्देनजर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इस तरह के उपाय को निजी वाहनों के लिए भी बढ़ाया जा सकता है.

निस्संदेह, वाहनों के प्रदूषण पर नियंत्रण लगाए जाने की जरूरत है. हालांकि, प्रदूषण को रोकने की कार्ययोजना अपने उद्देश्य से भटकना नहीं चाहिए. ऐसे समय में जब देश की अर्थव्यवस्था महामारी के कारण जर्जर स्थिति में है, क्या लोग नए वाहन खरीदने के लिए अपने पुराने वाहनों को अलग करने का जोखिम उठा सकते हैं ? वर्तमान स्थिति में वाहनों को स्क्रैप करने की प्रस्तावित नीति पूरी तरह से निरर्थक मालूम पड़ती है.

इससे पहले, उन लोगों को नकद प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए प्रस्ताव दिए गए थे, जो अपने दस या अधिक वर्ष पुराने वाहनों को कबाड़ करना चाहते थे. यह प्रस्ताव ब्रिटेन, फ्रांस, अमेरिका, जर्मनी, मलेशिया और अन्य देशों में लोगों के अनुसरण के तरीकों के अनुरूप था. विदेशों में कुछ वर्षों के लिए इसका उपयोग करने के बाद पुराने वाहन को छोड़ना आम है. भारत में, स्थिति काफी विपरीत है. इस देश के लोगों के लिए वाहन खरीदने के लिए खर्च की जाने वाली राशि, चाहे वह कार हो या भारी वाहन, जीवन भर का निवेश है. वाहन उपयोगिता की अवधि के बहाने एक नया कर लगाने का कोई भी प्रयास अच्छा नहीं माना जाएगा. विशेष रूप से कोवि़ड महामारी की पृष्ठभूमि में.

यह भी पढ़ें-पुराने वाहनों के निर्यात से वायु गुणवत्ता और सड़क सुरक्षा को खतरा

किसी भी वाहन कितना किलोमीटर चल चुका है, इस पर उसका लाइफ निर्भर करता है. यह प्रोडक्शन ईयर पर निर्भर नहीं करता है. अगर सरकार की नीति के कारण बड़ी संख्या में टैक्सियों, वैन और ऑटो रिक्शा को छोड़ना पड़ा, तो उनके आधार पर बड़ी संख्या में लोग अपनी आजीविका का स्रोत खो देंगे.

जब प्रशासन ने पहले से बंद वाहनों पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव दिया था, तो दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे शहरों में लोगों में भारी आक्रोश देखा गया था. कुछ साल पूरे होने के बाद वाहनों पर पाबंदी लगाने के बजाए, सरकार को इस बात पर शोध को प्रोत्साहित करना चाहिए कि वाहनों की लाइफ को कैसे लंबा किया जाए. साथ ही इसे पर्यावरण के अनुकूल रखा जाए. उस चेतना के बिना डिजाइन की गई नीतियां केवल उन असहाय प्राणियों पर पड़ने वाली गड़गड़ाहट की तरह काम करेंगी, जो पहले से ही आर्थिक मंदी और कोविड महामारी के दोहरे प्रभाव से पीड़ित हैं.

हैदराबाद : केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय ने 15 साल पुराने व्यावसायिक वाहनों (ट्रक, टैक्सी और निजी वाहन) पर ग्रीन टैक्स लगाने का प्रस्ताव दिया है. इसका मुख्य उद्देश्य है लोग पुरानी गाड़ियों की जगह नई गाड़ियों को खरीदने के लिए प्रोत्साहित हों. राज्य सरकारों से परामर्श के बाद इस प्रस्ताव को अधिसूचित किया जा सकता है. उसके बाद इसे एक अप्रैल लागू किया जाएगा.

नए टैक्स प्रस्ताव के मुताबिक फिटनेस सर्टिफिकेट हासिल करते समय रोड टैक्स अभी जितना लगता है, उसमें 10 से 25 फीसदी तक अतिरिक्त भरना होगा. अतिरिक्त भुगतान 50 फीसदी तक भी हो सकता है.

इलेक्ट्रिक पावर, सीएनजी, इथेनॉल और एलपीजी से चलने वाली गाड़ियों को इस टैक्स से मुक्त रखा गया है. सिटी बस, ट्रैक्टर और टिलर्स पर भी ग्रीन टैक्स नहीं लगेगा.

सरकार ने 15 साल से अधिक पुराने सभी सरकारी वाहनों को स्क्रैप में बदलने की नीति को भी मंजूरी दे दी है. पिछले अनुभवों के मद्देनजर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इस तरह के उपाय को निजी वाहनों के लिए भी बढ़ाया जा सकता है.

निस्संदेह, वाहनों के प्रदूषण पर नियंत्रण लगाए जाने की जरूरत है. हालांकि, प्रदूषण को रोकने की कार्ययोजना अपने उद्देश्य से भटकना नहीं चाहिए. ऐसे समय में जब देश की अर्थव्यवस्था महामारी के कारण जर्जर स्थिति में है, क्या लोग नए वाहन खरीदने के लिए अपने पुराने वाहनों को अलग करने का जोखिम उठा सकते हैं ? वर्तमान स्थिति में वाहनों को स्क्रैप करने की प्रस्तावित नीति पूरी तरह से निरर्थक मालूम पड़ती है.

इससे पहले, उन लोगों को नकद प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए प्रस्ताव दिए गए थे, जो अपने दस या अधिक वर्ष पुराने वाहनों को कबाड़ करना चाहते थे. यह प्रस्ताव ब्रिटेन, फ्रांस, अमेरिका, जर्मनी, मलेशिया और अन्य देशों में लोगों के अनुसरण के तरीकों के अनुरूप था. विदेशों में कुछ वर्षों के लिए इसका उपयोग करने के बाद पुराने वाहन को छोड़ना आम है. भारत में, स्थिति काफी विपरीत है. इस देश के लोगों के लिए वाहन खरीदने के लिए खर्च की जाने वाली राशि, चाहे वह कार हो या भारी वाहन, जीवन भर का निवेश है. वाहन उपयोगिता की अवधि के बहाने एक नया कर लगाने का कोई भी प्रयास अच्छा नहीं माना जाएगा. विशेष रूप से कोवि़ड महामारी की पृष्ठभूमि में.

यह भी पढ़ें-पुराने वाहनों के निर्यात से वायु गुणवत्ता और सड़क सुरक्षा को खतरा

किसी भी वाहन कितना किलोमीटर चल चुका है, इस पर उसका लाइफ निर्भर करता है. यह प्रोडक्शन ईयर पर निर्भर नहीं करता है. अगर सरकार की नीति के कारण बड़ी संख्या में टैक्सियों, वैन और ऑटो रिक्शा को छोड़ना पड़ा, तो उनके आधार पर बड़ी संख्या में लोग अपनी आजीविका का स्रोत खो देंगे.

जब प्रशासन ने पहले से बंद वाहनों पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव दिया था, तो दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे शहरों में लोगों में भारी आक्रोश देखा गया था. कुछ साल पूरे होने के बाद वाहनों पर पाबंदी लगाने के बजाए, सरकार को इस बात पर शोध को प्रोत्साहित करना चाहिए कि वाहनों की लाइफ को कैसे लंबा किया जाए. साथ ही इसे पर्यावरण के अनुकूल रखा जाए. उस चेतना के बिना डिजाइन की गई नीतियां केवल उन असहाय प्राणियों पर पड़ने वाली गड़गड़ाहट की तरह काम करेंगी, जो पहले से ही आर्थिक मंदी और कोविड महामारी के दोहरे प्रभाव से पीड़ित हैं.

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