रांची: रामनवमी में राजधानी के डोरंडा स्थित तपोवन मंदिर आकर्षण का केंद्र होता है. इसी मंदिर परिसर पर 14 सौ से अधिक अखाड़ों के महावीरी पताका का मिलन होता है. रामनवमी की शोभायात्रा का समापन इसी मंदिर परिसर में होता है. इतना ही नहीं 6 दिन बाद भगवान राम की छठी भी इसी मंदिर में धूमधाम से मनाई जाती है.
तपोवन मंदिर के महंतों की माने तो यहां का इतिहास काफी पुराना है. दो महंतों की समाधि भी इस मंदिर परिसर में है. राजधानी रांची में हर साल रामनवमी के अवसर पर 14 सौ से अधिक अखाड़ों से महावीरी पताका निकलते हैं. डोरंडा के निवारणपुर स्थित तपोवन मंदिर का इतिहास भी सैकड़ों वर्ष पुराना है.
यहां के महंत कहते हैं कि जिस जगह पर तपोवन मंदिर स्थित है. उस जगह पर बैठ कर पहले साधु संन्यासी और महंत तप किया करते थे. इसी वजह से इस मंदिर का नाम तपोवन मंदिर पड़ा. पौराणिक कथा है कि अंग्रेजों द्वारा एक महंत के पाले हुए बाघ को मार डालने के बाद महंत के क्रोध को शांत करने के लिए अंग्रेजों ने यहां पहले शिव मंदिर बनवाया, फिर राम जानकी मंदिर की मूर्ति इसी भूमि से खुदाई कर बाहर निकली गई. जो आज भी इसी मंदिर परिसर में स्थापित है.
वहीं दो महंतों की समाधि भी इसी मंदिर परिसर में है. यहां हर साल रामनवमी के दौरान भक्तों का जनसैलाब उमड़ता है. इस तपोवन मंदिर से लोगों की आस्था जुड़ी हुई है. धार्मिक मान्यता ऐसी है कि यहां भगवान हनुमान की दक्षिणेश्वर प्रतिमा पर प्रसाद चढ़ा कर मांगी गई सभी मनोकामना पूरी होती है. इस मंदिर परिसर में आने मात्र से ही मन को शांति और सुकून मिलता है.