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" समुदायों को नेतृत्व करने दें” थीम पर मनेगा विश्व एड्स दिवस

दुनियाभर में आमजन में एचआईवी एड्स के बारें में हर संभव जानकारी लोगों तक पहुंचाने, इसके कारण, जांच व उपचार को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने तथा इससे जुड़े भ्रमों व भ्रांतियों को दूर करने के उद्देश्य से 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है. World AIDS Day 2023, let communities lead, World AIDS Day.

World AIDS Day Theme let communities lead
विश्व एड्स दिवस
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 1, 2023, 12:02 AM IST

हैदराबाद : यूएन एड्स के अनुसार जानलेवा बीमारी एचआईवी एड्स से दुनिया को बचाना संभव है लेकिन ऐसा तभी हो सकता है जब सभी समुदाय मिलकर प्रयास करें. फंड की कमी, जरूरी व सही नीतियों के निर्माण की कमी, जो नीतियां व सुविधाएं पहले से उपलब्ध हैं उनके पालन व उपयोग में कमी सहित बहुत से मुद्दे व तथ्य हैं जो अभी भी एचआईवी की रोकथाम और उपचार सेवाओं की प्रगति में बाधा का कारण बन रहे है. ग़ौरतलब है कि एचआईवी एड्स को दुनिया भर में सबसे गंभीर तथा लाइलाज रोगों में से एक माना जाता है. जिसके कारण मृत्युदर के आंकड़े काफी ज्यादा माने जाते हैं. हालांकि चिकित्सकों का कहना है कि सही समय पर जांच व इलाज की मदद से इसके बढ़ने की रफ्तार को कम या नियंत्रित किया जा सकता है. लेकिन आमतौर पर देर से रोग के पकड़ में आने तथा कई बार समाज में एड्स रोगियों को लेकर रवैये के चलते पीड़ितों में इसके इलाज में देरी हो जाती है, जो पीड़ित की स्थिति के ज्यादा खराब होने तथा कई बार उसकी जान जाने का कारण भी बन जाती है.

ना सिर्फ एचआईवी एड्स के लक्षणों व उपचार के बारे जागरूकता फैलाने बल्कि इस संबंध में हर संभव जानकारी लोगों तक पहुंचाने व एड्स से जुड़े भ्रमों को दूर करने के उद्देश्य से हर साल एक नई थीम के साथ वैश्विक स्तर पर 1 दिसंबर को “विश्व एड्स दिवस” मनाया जाता है. इस वर्ष यह आयोजन एड्स को लेकर सामुदायिक प्रयासों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से " समुदायों को नेतृत्व करने दें” थीम पर मनाया जा रहा है.

क्या कहते हैं आंकड़े
एचआईवी एड्स का अभी तक पूर्ण इलाज नहीं मिल पाया है. हालांकि इस क्षेत्र में लगातार अनुसंधान व शोध किए जा रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद एक बार इस संक्रमण से पीड़ित होने के बाद इससे पूरी तरह से छुटकारा अभी तक संभव नहीं हो पाया है. ऐसे में बहुत जरूरी है इसके कारणों को लेकर सभी शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता फैलाने की कोशिश की जाय.

  • Efforts by communities, activists, governments & global health partners have resulted in extraordinary progress in the fight against HIV. In countries where @GlobalFund invests, AIDS-related deaths have dropped by 72% since 2002. #WorldAIDSDay pic.twitter.com/KSmazOefw2

    — The Global Fund (@GlobalFund) November 30, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

हालांकि लगभग सभी देशों में सरकारी तंत्रों व सरकारी व गैर सरकारी स्वास्थ्य संस्थाओं द्वारा इस क्षेत्र में प्रयास किए जा रहे हैं. लेकिन ऐसे बहुत से तथ्य है जो ना सिर्फ इस रोग के इलाज बल्कि लोगों में जांच व इलाज के लिए प्रयास करने में भी बाधा बनते हैं. यूएन एड्स (यूनिसेफ की शाखा) के आंकड़ों की माने तो वैश्विक स्तर पर, वर्ष 2021 में लगभग 14.6 लाख लोगों में एचआईवी के नए मामले सामने आए थे, जिनमें 13 लाख वयस्क थे और 1.6 लाख 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चे थे. वहीं वर्ष 2021 में लगभग 6.5 लाख एचआईवी रोगियों की मृत्यु के मामले संज्ञान में आए थे. सिर्फ भारत की बात करें तो यहां वर्ष 2019 में 58.96 हजार एड्स से संबंधित मौतें हुई थी और 69.22 हजार नए एचआईवी संक्रमण सामने आए थे.

यदि अब तक इस रोग के कुल पीड़ितों की संख्या की बात करें तो यूएन एड्स के अनुसार वर्ष 2021 तक कुल 3.84 करोड़ लोग एचआईवी संक्रमित बताए गए थे, जिनमें 3.67 करोड़ वयस्क थे वहीं 17 लाख 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चे थे. इनमें 54% महिलाएं और लड़कियां थी. इनमें से अधिकांश लोग निम्न स्तर का जीवन जी रहे हैं. हालांकि इस दिशा में जागरूकता व इलाज के क्षेत्र में लगातार हो रहे प्रयासों व उनके नतीजों को देखते हुए संगठन द्वारा अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2025 तक वैश्विक स्तर पर नए एचआईवी संक्रमण और एड्स से संबंधित मौतों में प्रति 100,000 जनसंख्या पर क्रमशः 4.4 और 3.9 की गिरावट आएगी. वहीं वर्ष 2030 तक दोनों में 90% तक की कमी आएगी. संगठन के अनुसार इस लक्ष्य को लेकर लगातार जागरूकता अभियान भी चलाए जा रहे हैं , वहीं एड्स से जुड़ी शिक्षा, उपचार और रोकथाम पर ध्यान केंद्रित करने के लिए वैश्विक पटल पर बड़े पैमाने पर अन्य योजनाओं को लागू करने की भी योजना है.

इतिहास
गौरतलब है कि एड्स का सबसे पहला मामला सन 1957 में अफ्रीका के कांगो में सामने आया था. इस रोग से पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु के बाद जब उसके खून की जांच की गई थी तो उसमें उसके एड्स से पीड़ित होने के बाद सामने आई थी. लेकिन इस बीमारी को “एड्स” के रूप में पहचान वर्ष 1980 में मिली थी. भारत की बात करें तो हमारे देश में वर्ष 1986 में मद्रास में सबसे पहला एड्स का मामला सामने आया था.

विश्व एड्स दिवस की शुरुआत की बात करें तो विश्व स्वास्थ्य संगठन के “ग्लोबल ऑन एड्स” कार्यक्रम के दो सूचना अधिकारियों जेम्स डब्ल्यू बुन और थॉमस नेटर ने वर्ष 1987 में सबसे पहले एड्स को लेकर इस तरह के आयोजन का विचार सबके सामने रखा था. जिसके बाद “ग्लोबल ऑन एड्स” के ही डायरेक्टर जॉनाथन मान ने 1 दिसंबर 1988 को विश्व एड्स दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था. इसके उपरांत वर्ष 1996 में संयुक्त राष्ट्र के कार्यक्रम “यूएन एड्स” द्वारा हर साल 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस के रूप में मनाए जाने का निर्णय लिया गया.

बाद में इस मुद्दे की संवेदनशीलता को देखते हुए वर्ष 2007 में व्हाइट हाउस में विश्व एड्स दिवस के लिए लाल रिबन को एक प्रतीक के रूप में मान्यता दी गई. इसलिए विश्व एड्स दिवस “रेड रिबन डे” के नाम से भी जाना जाता है. इस अवसर पर हर देश में हर उम्र व लिंग के लोगों के लिए विभिन्न जागरूकता आयोजनों, अभियानों, गोष्ठियों, सेमीनार तथा दौड़ जैसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है.

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हैदराबाद : यूएन एड्स के अनुसार जानलेवा बीमारी एचआईवी एड्स से दुनिया को बचाना संभव है लेकिन ऐसा तभी हो सकता है जब सभी समुदाय मिलकर प्रयास करें. फंड की कमी, जरूरी व सही नीतियों के निर्माण की कमी, जो नीतियां व सुविधाएं पहले से उपलब्ध हैं उनके पालन व उपयोग में कमी सहित बहुत से मुद्दे व तथ्य हैं जो अभी भी एचआईवी की रोकथाम और उपचार सेवाओं की प्रगति में बाधा का कारण बन रहे है. ग़ौरतलब है कि एचआईवी एड्स को दुनिया भर में सबसे गंभीर तथा लाइलाज रोगों में से एक माना जाता है. जिसके कारण मृत्युदर के आंकड़े काफी ज्यादा माने जाते हैं. हालांकि चिकित्सकों का कहना है कि सही समय पर जांच व इलाज की मदद से इसके बढ़ने की रफ्तार को कम या नियंत्रित किया जा सकता है. लेकिन आमतौर पर देर से रोग के पकड़ में आने तथा कई बार समाज में एड्स रोगियों को लेकर रवैये के चलते पीड़ितों में इसके इलाज में देरी हो जाती है, जो पीड़ित की स्थिति के ज्यादा खराब होने तथा कई बार उसकी जान जाने का कारण भी बन जाती है.

ना सिर्फ एचआईवी एड्स के लक्षणों व उपचार के बारे जागरूकता फैलाने बल्कि इस संबंध में हर संभव जानकारी लोगों तक पहुंचाने व एड्स से जुड़े भ्रमों को दूर करने के उद्देश्य से हर साल एक नई थीम के साथ वैश्विक स्तर पर 1 दिसंबर को “विश्व एड्स दिवस” मनाया जाता है. इस वर्ष यह आयोजन एड्स को लेकर सामुदायिक प्रयासों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से " समुदायों को नेतृत्व करने दें” थीम पर मनाया जा रहा है.

क्या कहते हैं आंकड़े
एचआईवी एड्स का अभी तक पूर्ण इलाज नहीं मिल पाया है. हालांकि इस क्षेत्र में लगातार अनुसंधान व शोध किए जा रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद एक बार इस संक्रमण से पीड़ित होने के बाद इससे पूरी तरह से छुटकारा अभी तक संभव नहीं हो पाया है. ऐसे में बहुत जरूरी है इसके कारणों को लेकर सभी शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता फैलाने की कोशिश की जाय.

  • Efforts by communities, activists, governments & global health partners have resulted in extraordinary progress in the fight against HIV. In countries where @GlobalFund invests, AIDS-related deaths have dropped by 72% since 2002. #WorldAIDSDay pic.twitter.com/KSmazOefw2

    — The Global Fund (@GlobalFund) November 30, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

हालांकि लगभग सभी देशों में सरकारी तंत्रों व सरकारी व गैर सरकारी स्वास्थ्य संस्थाओं द्वारा इस क्षेत्र में प्रयास किए जा रहे हैं. लेकिन ऐसे बहुत से तथ्य है जो ना सिर्फ इस रोग के इलाज बल्कि लोगों में जांच व इलाज के लिए प्रयास करने में भी बाधा बनते हैं. यूएन एड्स (यूनिसेफ की शाखा) के आंकड़ों की माने तो वैश्विक स्तर पर, वर्ष 2021 में लगभग 14.6 लाख लोगों में एचआईवी के नए मामले सामने आए थे, जिनमें 13 लाख वयस्क थे और 1.6 लाख 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चे थे. वहीं वर्ष 2021 में लगभग 6.5 लाख एचआईवी रोगियों की मृत्यु के मामले संज्ञान में आए थे. सिर्फ भारत की बात करें तो यहां वर्ष 2019 में 58.96 हजार एड्स से संबंधित मौतें हुई थी और 69.22 हजार नए एचआईवी संक्रमण सामने आए थे.

यदि अब तक इस रोग के कुल पीड़ितों की संख्या की बात करें तो यूएन एड्स के अनुसार वर्ष 2021 तक कुल 3.84 करोड़ लोग एचआईवी संक्रमित बताए गए थे, जिनमें 3.67 करोड़ वयस्क थे वहीं 17 लाख 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चे थे. इनमें 54% महिलाएं और लड़कियां थी. इनमें से अधिकांश लोग निम्न स्तर का जीवन जी रहे हैं. हालांकि इस दिशा में जागरूकता व इलाज के क्षेत्र में लगातार हो रहे प्रयासों व उनके नतीजों को देखते हुए संगठन द्वारा अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2025 तक वैश्विक स्तर पर नए एचआईवी संक्रमण और एड्स से संबंधित मौतों में प्रति 100,000 जनसंख्या पर क्रमशः 4.4 और 3.9 की गिरावट आएगी. वहीं वर्ष 2030 तक दोनों में 90% तक की कमी आएगी. संगठन के अनुसार इस लक्ष्य को लेकर लगातार जागरूकता अभियान भी चलाए जा रहे हैं , वहीं एड्स से जुड़ी शिक्षा, उपचार और रोकथाम पर ध्यान केंद्रित करने के लिए वैश्विक पटल पर बड़े पैमाने पर अन्य योजनाओं को लागू करने की भी योजना है.

इतिहास
गौरतलब है कि एड्स का सबसे पहला मामला सन 1957 में अफ्रीका के कांगो में सामने आया था. इस रोग से पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु के बाद जब उसके खून की जांच की गई थी तो उसमें उसके एड्स से पीड़ित होने के बाद सामने आई थी. लेकिन इस बीमारी को “एड्स” के रूप में पहचान वर्ष 1980 में मिली थी. भारत की बात करें तो हमारे देश में वर्ष 1986 में मद्रास में सबसे पहला एड्स का मामला सामने आया था.

विश्व एड्स दिवस की शुरुआत की बात करें तो विश्व स्वास्थ्य संगठन के “ग्लोबल ऑन एड्स” कार्यक्रम के दो सूचना अधिकारियों जेम्स डब्ल्यू बुन और थॉमस नेटर ने वर्ष 1987 में सबसे पहले एड्स को लेकर इस तरह के आयोजन का विचार सबके सामने रखा था. जिसके बाद “ग्लोबल ऑन एड्स” के ही डायरेक्टर जॉनाथन मान ने 1 दिसंबर 1988 को विश्व एड्स दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था. इसके उपरांत वर्ष 1996 में संयुक्त राष्ट्र के कार्यक्रम “यूएन एड्स” द्वारा हर साल 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस के रूप में मनाए जाने का निर्णय लिया गया.

बाद में इस मुद्दे की संवेदनशीलता को देखते हुए वर्ष 2007 में व्हाइट हाउस में विश्व एड्स दिवस के लिए लाल रिबन को एक प्रतीक के रूप में मान्यता दी गई. इसलिए विश्व एड्स दिवस “रेड रिबन डे” के नाम से भी जाना जाता है. इस अवसर पर हर देश में हर उम्र व लिंग के लोगों के लिए विभिन्न जागरूकता आयोजनों, अभियानों, गोष्ठियों, सेमीनार तथा दौड़ जैसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है.

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