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माओवाद से राजनीति में आए कामेश्वर बोले- पहले से अधिक लूट, पर स्वरूप अलग

28 वर्षों तक माओवादी आंदोलन के हथियारबंद संघर्ष से जुड़े रहे कामेश्वर बैठा 15वीं लोकसभा के सदस्य चुने गए थे. 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में कामेश्वर बैठा ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर पलामू संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीता था. देश में पहली बार कोई माओवादी सांसद चुना गया था. जिस वक्त कामेश्वर बैठा चुनाव जीते थे उस दौरान वह बिहार के सासाराम जेल में बंद थे. ईटीवी भारत से उन्होंने खास बातचीत की.

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Published : Feb 27, 2021, 9:15 PM IST

पलामू : चुनाव के दौरान कामेश्वर बैठा बिहार के सासाराम जेल में बंद थे. कामेश्वर बैठा पर उस दौरान 48 मामले दर्ज थे. जिसमें कई गंभीर धाराओं में थे. हालांकि, अधिकतर मामलों में कामेश्वर बैठा को दोषी नहीं पाया गया है. इससे पहले 2005 में कामेश्वर बैठा बिहार के सासाराम से गिरफ्तार हुए थे. 2013 में वे जेल से बाहर निकले थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में कामेश्वर बैठा हार गए.

कामेश्वर बैठा मूल रूप से पलामू के पांडु थाना क्षेत्र के ढांचाबार गांव के रहने वाले हैं. फिलहाल वे विश्रामपुर में अपने पूरे परिवार के साथ रह रहे हैं. वे तृणमूल कांग्रेस से जुड़े हुए हैं. पूर्व सांसद कामेश्वर बैठा का कहना है जिन्हें लोग या मीडिया जंगल समझती है, वह उनकी कर्मभूमि रही है. वे गांव, जंगल के हक और अधिकार की लड़ाई लड़े, जिसके कारण वे सांसद बने थे. वे संघर्ष नहीं करते तो पलामू की जनता उन्हें सांसद के रूप में नहीं चुनती. देश में पहली बार हुआ था कि कोई माओवादी जेल में रहकर सांसद का चुनाव जीता था. कामेश्वर बैठा जिस आंदोलन से जुड़े हुए थे वह आंदोलन भारतीय लोकतंत्र में विश्वास नहीं करता है.

पूर्व सांसद कामेश्वर बैठा से खास बातचीत.

संसदीय व्यवस्था पर जगी आस्था

कामेश्वर बैठा बताते हैं कि जेल में अध्ययन के दौरान संसदीय व्यवस्था पर उनकी आस्था जगी. उनका कहना है कि जमीन, मजदूरी, भुखमरी समेत कई जन मुद्दों को लेकर वे माओवादी आंदोलन में शामिल हुए थे. 80 के दशक के बाद उन्होंने गांव-गांव जाकर आंदोलन को खड़ा किया था. उस दौरान कई संगठन बने थे और लीगल तरीके से आंदोलन की शुरुआत हुई थी. उस दौरान हुए उत्पीड़न को भुलाया नहीं जा सकता.

पूर्व सांसद कामेश्वर बैठा से खास बातचीत.

भारत अब आधुनिक हो चुका

कामेश्वर बैठा 1980 के दशक के माता-पिता और अब के दौर के परिजनों की तुलना करते हुए कहते हैं कि देश के हालात बदले हैं. माओवादी परिवर्तन की बात करते हैं लेकिन चार लोगों के बल पर परिवर्तन नहीं हो सकता. वह बताते हैं कि माओवादी लाल इलाका, मुक्तांचल, गुरिल्ला बेस, गुरिल्ला बेस जोन की बात करते हैं. लेकिन, ये संभव नहीं है. बदलाव के लिए हर क्षेत्र, हर तबके के सहयोग की जरूरत होती है. दुनिया में रूस और चीन की क्रांति माओवाद के लिए आदर्श माना जाती है. लेकिन, भारत के हालात अलग हैं. भारत आज आधुनिक हो चुका है. भारत टेक्नोलॉजी से परिपूर्ण हो गया है. यहां शस्त्रों की जरूरत नहीं है.

यह भी पढ़ें-निजी अस्पतालों में कोरोना वैक्सीन की एक डोज की कीमत ₹ 250

भारत की गलत व्याख्या कर रहे माओवादी

कामेश्वर बैठा माओवादियों के कमजोर होने के विषय पर खुलकर बोलते हैं. वे कहते हैं कि माओवादी वर्तमान में भारत की व्यवस्था की गलत व्याख्या कर रहे हैं. कमजोर व्याख्या के कारण माओवादी बेहद कमजोर हो गए हैं. वे बताते हैं कि देश की व्यवस्था में बदलाव हुआ है. अब सामंतवाद वह नहीं है जो पहले क्रूरतम रूप में था. वर्तमान हालात में सामंतवाद बदल गया है. अब वह उसी रूप में है जिस रूप में सभी रहे हैं. पहले से अधिक लूट है, लेकिन स्वरूप अलग है.

पलामू : चुनाव के दौरान कामेश्वर बैठा बिहार के सासाराम जेल में बंद थे. कामेश्वर बैठा पर उस दौरान 48 मामले दर्ज थे. जिसमें कई गंभीर धाराओं में थे. हालांकि, अधिकतर मामलों में कामेश्वर बैठा को दोषी नहीं पाया गया है. इससे पहले 2005 में कामेश्वर बैठा बिहार के सासाराम से गिरफ्तार हुए थे. 2013 में वे जेल से बाहर निकले थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में कामेश्वर बैठा हार गए.

कामेश्वर बैठा मूल रूप से पलामू के पांडु थाना क्षेत्र के ढांचाबार गांव के रहने वाले हैं. फिलहाल वे विश्रामपुर में अपने पूरे परिवार के साथ रह रहे हैं. वे तृणमूल कांग्रेस से जुड़े हुए हैं. पूर्व सांसद कामेश्वर बैठा का कहना है जिन्हें लोग या मीडिया जंगल समझती है, वह उनकी कर्मभूमि रही है. वे गांव, जंगल के हक और अधिकार की लड़ाई लड़े, जिसके कारण वे सांसद बने थे. वे संघर्ष नहीं करते तो पलामू की जनता उन्हें सांसद के रूप में नहीं चुनती. देश में पहली बार हुआ था कि कोई माओवादी जेल में रहकर सांसद का चुनाव जीता था. कामेश्वर बैठा जिस आंदोलन से जुड़े हुए थे वह आंदोलन भारतीय लोकतंत्र में विश्वास नहीं करता है.

पूर्व सांसद कामेश्वर बैठा से खास बातचीत.

संसदीय व्यवस्था पर जगी आस्था

कामेश्वर बैठा बताते हैं कि जेल में अध्ययन के दौरान संसदीय व्यवस्था पर उनकी आस्था जगी. उनका कहना है कि जमीन, मजदूरी, भुखमरी समेत कई जन मुद्दों को लेकर वे माओवादी आंदोलन में शामिल हुए थे. 80 के दशक के बाद उन्होंने गांव-गांव जाकर आंदोलन को खड़ा किया था. उस दौरान कई संगठन बने थे और लीगल तरीके से आंदोलन की शुरुआत हुई थी. उस दौरान हुए उत्पीड़न को भुलाया नहीं जा सकता.

पूर्व सांसद कामेश्वर बैठा से खास बातचीत.

भारत अब आधुनिक हो चुका

कामेश्वर बैठा 1980 के दशक के माता-पिता और अब के दौर के परिजनों की तुलना करते हुए कहते हैं कि देश के हालात बदले हैं. माओवादी परिवर्तन की बात करते हैं लेकिन चार लोगों के बल पर परिवर्तन नहीं हो सकता. वह बताते हैं कि माओवादी लाल इलाका, मुक्तांचल, गुरिल्ला बेस, गुरिल्ला बेस जोन की बात करते हैं. लेकिन, ये संभव नहीं है. बदलाव के लिए हर क्षेत्र, हर तबके के सहयोग की जरूरत होती है. दुनिया में रूस और चीन की क्रांति माओवाद के लिए आदर्श माना जाती है. लेकिन, भारत के हालात अलग हैं. भारत आज आधुनिक हो चुका है. भारत टेक्नोलॉजी से परिपूर्ण हो गया है. यहां शस्त्रों की जरूरत नहीं है.

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भारत की गलत व्याख्या कर रहे माओवादी

कामेश्वर बैठा माओवादियों के कमजोर होने के विषय पर खुलकर बोलते हैं. वे कहते हैं कि माओवादी वर्तमान में भारत की व्यवस्था की गलत व्याख्या कर रहे हैं. कमजोर व्याख्या के कारण माओवादी बेहद कमजोर हो गए हैं. वे बताते हैं कि देश की व्यवस्था में बदलाव हुआ है. अब सामंतवाद वह नहीं है जो पहले क्रूरतम रूप में था. वर्तमान हालात में सामंतवाद बदल गया है. अब वह उसी रूप में है जिस रूप में सभी रहे हैं. पहले से अधिक लूट है, लेकिन स्वरूप अलग है.

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