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सौमित्र चटर्जी : सत्यजीत रे थे जिनके कायल, अमिताभ भी लेते थे प्रेरणा

मशहूर बांग्ला अभिनेता सौमित्र चटर्जी नहीं रहे. 85 साल की अवस्था में आज उनका निधन हो गया. फिल्म जगत उनके निधन से स्तब्ध है. चटर्जी ऐसे अभिनेता थे, जिनकी फिल्मों से अमिताभ बच्चन भी प्रेरणा लेते थे. उनकी भूमिका की छाप अमिताभ की कई फिल्मों में देखी जा सकती है. सौमित्र चटर्जी को सत्यजीत रे जैसी हस्ती ने तराशा था.

सौमित्र चटर्जी
सौमित्र चटर्जी
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Published : Nov 15, 2020, 3:33 PM IST

Updated : Nov 15, 2020, 5:44 PM IST

कोलकाता : 'अपुर संसार' सौमित्र चटर्जी की पहली फिल्म थी. यह सत्यजीत रे की फिल्म थी. रे ने ही चटर्जी की प्रतिभा को पहचाना था. उन्होंने कहा था कि यह बहुत ही आगे जाने वाला शख्स है.

उस दौर में बंगाली सिनेमा में उत्तम कुमार का जलवा था. उनके सामने सौमित्र चटर्जी को अपनी छाप छोड़़नी थी. यह उनके लिए कठिन चुनौती थी. चटर्जी अपने लुक को लेकर बहुत ही सजग रहते थे.

उन्होंने अभिनेता उत्तम कुमार के साथ कई फिल्में कीं. लेकिन उस समय वे इन फिल्मों में लीड रोल में नहीं थे.

सौमित्र चटर्जी ने सत्यजीत रे की 'देवी' (1960) और 'तीन कन्या' (1961) में बेहतरीन भूमिका निभाई. वैसे, इन फिल्मों को लीड एक्ट्रेस शर्मिला टैगोर और अपर्णा सेन की भूमिका के लिए याद किया जाता है. इसके बावजूद सौमित्र चटर्जी ने अपनी अलग पहचान बना ली. तीन कन्या में उनका किरदार एक भ्रमित पति की थी. वे अपने पिता के भय के साए में थे. सत्यजीत रे ने तब कहा था कि उन्हें चटर्जी के साथ काम करने का अलग ही आनंद मिलता है.

सौमित्र चटर्जी का सफर
सौमित्र चटर्जी का सफर

1961 में तपन सिन्हा की फिल्म 'झिंडर बोंडी' में उनका निगेटिव कैरेक्टर था. उत्तम कुमार के अपोजिट उनकी भूमिका थी. उस समय उत्तम कुमार अपनी लोकप्रियता के शिखर पर थे. इस समय चटर्जी के लिए निगेटिव रोल का रिस्क लेना बहुत बड़ी बात थी, क्योंकि उनका करियर धीरे-धीरे ही सही, लेकिन ऊपर जा रहा था. इसके बावजूद उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया.

बाद में चटर्जी ने तपन सिन्हा के साथ 'आंतक' और 'व्हीलचेयर' जैसी यादगार फिल्में बनाईं.

कहा जाता है कि मशहूर फिल्म निर्माता और निर्देशक सत्यजीत रे चटर्जी की हर भूमिका से उनके प्रशंसक बनते जा रहे थे. वे कहा करते थे कि चटर्जी उन्हें हर फिल्स से मोह लेता है.

सौमित्र चटर्जी का सफर
सौमित्र चटर्जी का सफर

अपर्णा सेन के साथ 'सात पाके बाधा' में बेपरवाह पति की भूमिका निभाई थी.

मृणाल सेन की फिल्म 'आकाश कुसुम' में एक ऐसे किरदार को निभाया, जिसे अपने गलत निर्णय की वजह से हर बार नुकसान उठाना पड़ता था.

ऐसा कहा जाता है कि अमिताभ बच्चन की फिल्म 'मंजिल' का किरदार चटर्जी से ही प्रभावित था.

पढ़ें - सौमित्र चटर्जी के निधन से फिल्म जगत में शोक की लहर

इतनी फिल्में करने के बावजूद सौमित्र चटर्जी की पहली सबसे बड़ी सफल और हिट फिल्म थी 1969 की 'तीन भुबनेर पारे'. उनके अपोजिट थीं तनुजा. तनुजा काजोल की मां हैं. यह एक रोमांटिक फिल्म थी. इसमें चटर्जी ने एक ऐसे युवक की भूमिका निभाई थी, जिसके पास नौकरी नहीं थी. व्यवस्था से उब चुका था. मोंटू के इस किरदार का असर अमिताभ की कई फिल्मों में देखा गया.

इसी साल उऩ्होंने 'अपरिचित' नाम की फिल्में कीं. इसमें अपर्णा सेन और उत्तम कुमार भी थे. लेकिन इस फिल्म में सबसे ज्यादा चर्चा चटर्जी की हुई.

'अशनि संकेत' में ब्राह्मण पुजारी की यादगार भूमिका निभाई.

1984 में बनी फिल्म 'कोनी' में उनका अभिनय शानदार था. उनकी भूमिका ने सबका दिल मोह लिया था. उन्होंने इस फिल्म में एक सख्त स्वीमिंग कोच की भूमिका निभाई थी. इसी कॉन्सेप्ट पर बाद में 'चक दे इंडिया' और 'दंगल' जैसी फिल्में बनीं.

1986 में तपन सिन्हा की फिल्म 'आतंक' में उन्होंने एक स्कूल शिक्षक का रोल अदा किया था. उनके सामने राजनीतिक हत्या हुई थी, जिसके बारे में उन्हें रिपोर्ट करना था. जिसने हत्या की थी, जैसे ही उसे जानकारी मिली, उसने उस शिक्षका को आतंकित करना शुरू कर दिया. चटर्जी की यह भूमिका यादगार है.

कुछ प्रमुख बातें

प. बंगाल के एकमात्र बांग्ला अभिनेता, जिन्हें दादा साहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया. उन्हें पद्म भूषण से नवाजा गया था.

फ्रांस में कलाकारों को दिया जाने वाला सर्वोच्च अवार्ड कमांडर (डि ले-ऑर्डर डिस आर्ट्स एट डिस लेटर्स) से सम्मानित. अमिताभ बच्चन और शाहरूख खान भी इस अवार्ड से पुरस्कृत हो चुके हैं.

अमर्त्य सेन, रविशंकर, जुबिन मेहता, लता मांगेशकर, जेआरडी टाटा और रतन टाटा को भी यह अवार्ड मिल चुका है.

इससे पहले सत्यजीत रे को यह अवार्ड दिया गया था.

वह बहुत बड़े नाटककार थे. रविन्द्र नाथ टैगोर की कविताएं उन्हें मुंहजबानी याद थी. वे कई मौकों पर इसका पाठ भी करते थे.

थियेटर में उनकी गहरी रूचि थी. वे एक बेहतरीन थियेटर निर्देशक भी थे.

करीब 60 साल के फिल्मी करियर के दौरान उन्होंने 200 से ज्यादा फिल्में कीं.

1959 में अपुर संसार से उनका करियर शुरू हुआ था.

14 फिल्मों का निर्देशन किया. इनमें चारूलता (1964), अरन्येर दिन रात्रि (1969), सोनार केल्ला (1974) भी शामिल है. उनकी अन्य फिल्में हैं - आकाश कुसुम (1965), क्षुधिता पाशन (1960), झिंडर बोंडी (1961), परिणीता (1969), संसार सिमंते (1975) और गणदेवता (1978).

सौमित्र चटर्जी ने कई कविताएं भी लिखी हैं. 'टू स्टैंड बाय द वाटरफॉल' नाम से उनकी कविता संग्रह प्रकाशित हुई. खलिल गिब्रान की किताब द प्रोफेट का अनुवाद द्रोष्ट के नाम से प्रकाशित किया गया. शेक्सपियर की किंग लियर का अनुवाद राजा लियर के रूप में उन्होंने प्रकाशित की थी.

एक थिएटर निर्देशक और अभिनेता के रूप में, सौमित्र चटर्जी दर्शकों को परफॉर्मेंस के दौरान दर्शकों को अपने में शामिल कर लेते थे. पूरे मंच पर लगता था कि केंद्र में सिर्फ वही हैं. रिवोल्विंग चेयर को व्हीलचेयर में बदलने का प्रयोग वही कर सकते थे.

सौमित्र चटर्जी शायद, देश की सबसे बहुआयामी प्रतिभाओं में से एक थे. बीबीसी ने उनपर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई थी, जिसका नाम था गाछ यानी 'ट्री'.

कोलकाता : 'अपुर संसार' सौमित्र चटर्जी की पहली फिल्म थी. यह सत्यजीत रे की फिल्म थी. रे ने ही चटर्जी की प्रतिभा को पहचाना था. उन्होंने कहा था कि यह बहुत ही आगे जाने वाला शख्स है.

उस दौर में बंगाली सिनेमा में उत्तम कुमार का जलवा था. उनके सामने सौमित्र चटर्जी को अपनी छाप छोड़़नी थी. यह उनके लिए कठिन चुनौती थी. चटर्जी अपने लुक को लेकर बहुत ही सजग रहते थे.

उन्होंने अभिनेता उत्तम कुमार के साथ कई फिल्में कीं. लेकिन उस समय वे इन फिल्मों में लीड रोल में नहीं थे.

सौमित्र चटर्जी ने सत्यजीत रे की 'देवी' (1960) और 'तीन कन्या' (1961) में बेहतरीन भूमिका निभाई. वैसे, इन फिल्मों को लीड एक्ट्रेस शर्मिला टैगोर और अपर्णा सेन की भूमिका के लिए याद किया जाता है. इसके बावजूद सौमित्र चटर्जी ने अपनी अलग पहचान बना ली. तीन कन्या में उनका किरदार एक भ्रमित पति की थी. वे अपने पिता के भय के साए में थे. सत्यजीत रे ने तब कहा था कि उन्हें चटर्जी के साथ काम करने का अलग ही आनंद मिलता है.

सौमित्र चटर्जी का सफर
सौमित्र चटर्जी का सफर

1961 में तपन सिन्हा की फिल्म 'झिंडर बोंडी' में उनका निगेटिव कैरेक्टर था. उत्तम कुमार के अपोजिट उनकी भूमिका थी. उस समय उत्तम कुमार अपनी लोकप्रियता के शिखर पर थे. इस समय चटर्जी के लिए निगेटिव रोल का रिस्क लेना बहुत बड़ी बात थी, क्योंकि उनका करियर धीरे-धीरे ही सही, लेकिन ऊपर जा रहा था. इसके बावजूद उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया.

बाद में चटर्जी ने तपन सिन्हा के साथ 'आंतक' और 'व्हीलचेयर' जैसी यादगार फिल्में बनाईं.

कहा जाता है कि मशहूर फिल्म निर्माता और निर्देशक सत्यजीत रे चटर्जी की हर भूमिका से उनके प्रशंसक बनते जा रहे थे. वे कहा करते थे कि चटर्जी उन्हें हर फिल्स से मोह लेता है.

सौमित्र चटर्जी का सफर
सौमित्र चटर्जी का सफर

अपर्णा सेन के साथ 'सात पाके बाधा' में बेपरवाह पति की भूमिका निभाई थी.

मृणाल सेन की फिल्म 'आकाश कुसुम' में एक ऐसे किरदार को निभाया, जिसे अपने गलत निर्णय की वजह से हर बार नुकसान उठाना पड़ता था.

ऐसा कहा जाता है कि अमिताभ बच्चन की फिल्म 'मंजिल' का किरदार चटर्जी से ही प्रभावित था.

पढ़ें - सौमित्र चटर्जी के निधन से फिल्म जगत में शोक की लहर

इतनी फिल्में करने के बावजूद सौमित्र चटर्जी की पहली सबसे बड़ी सफल और हिट फिल्म थी 1969 की 'तीन भुबनेर पारे'. उनके अपोजिट थीं तनुजा. तनुजा काजोल की मां हैं. यह एक रोमांटिक फिल्म थी. इसमें चटर्जी ने एक ऐसे युवक की भूमिका निभाई थी, जिसके पास नौकरी नहीं थी. व्यवस्था से उब चुका था. मोंटू के इस किरदार का असर अमिताभ की कई फिल्मों में देखा गया.

इसी साल उऩ्होंने 'अपरिचित' नाम की फिल्में कीं. इसमें अपर्णा सेन और उत्तम कुमार भी थे. लेकिन इस फिल्म में सबसे ज्यादा चर्चा चटर्जी की हुई.

'अशनि संकेत' में ब्राह्मण पुजारी की यादगार भूमिका निभाई.

1984 में बनी फिल्म 'कोनी' में उनका अभिनय शानदार था. उनकी भूमिका ने सबका दिल मोह लिया था. उन्होंने इस फिल्म में एक सख्त स्वीमिंग कोच की भूमिका निभाई थी. इसी कॉन्सेप्ट पर बाद में 'चक दे इंडिया' और 'दंगल' जैसी फिल्में बनीं.

1986 में तपन सिन्हा की फिल्म 'आतंक' में उन्होंने एक स्कूल शिक्षक का रोल अदा किया था. उनके सामने राजनीतिक हत्या हुई थी, जिसके बारे में उन्हें रिपोर्ट करना था. जिसने हत्या की थी, जैसे ही उसे जानकारी मिली, उसने उस शिक्षका को आतंकित करना शुरू कर दिया. चटर्जी की यह भूमिका यादगार है.

कुछ प्रमुख बातें

प. बंगाल के एकमात्र बांग्ला अभिनेता, जिन्हें दादा साहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया. उन्हें पद्म भूषण से नवाजा गया था.

फ्रांस में कलाकारों को दिया जाने वाला सर्वोच्च अवार्ड कमांडर (डि ले-ऑर्डर डिस आर्ट्स एट डिस लेटर्स) से सम्मानित. अमिताभ बच्चन और शाहरूख खान भी इस अवार्ड से पुरस्कृत हो चुके हैं.

अमर्त्य सेन, रविशंकर, जुबिन मेहता, लता मांगेशकर, जेआरडी टाटा और रतन टाटा को भी यह अवार्ड मिल चुका है.

इससे पहले सत्यजीत रे को यह अवार्ड दिया गया था.

वह बहुत बड़े नाटककार थे. रविन्द्र नाथ टैगोर की कविताएं उन्हें मुंहजबानी याद थी. वे कई मौकों पर इसका पाठ भी करते थे.

थियेटर में उनकी गहरी रूचि थी. वे एक बेहतरीन थियेटर निर्देशक भी थे.

करीब 60 साल के फिल्मी करियर के दौरान उन्होंने 200 से ज्यादा फिल्में कीं.

1959 में अपुर संसार से उनका करियर शुरू हुआ था.

14 फिल्मों का निर्देशन किया. इनमें चारूलता (1964), अरन्येर दिन रात्रि (1969), सोनार केल्ला (1974) भी शामिल है. उनकी अन्य फिल्में हैं - आकाश कुसुम (1965), क्षुधिता पाशन (1960), झिंडर बोंडी (1961), परिणीता (1969), संसार सिमंते (1975) और गणदेवता (1978).

सौमित्र चटर्जी ने कई कविताएं भी लिखी हैं. 'टू स्टैंड बाय द वाटरफॉल' नाम से उनकी कविता संग्रह प्रकाशित हुई. खलिल गिब्रान की किताब द प्रोफेट का अनुवाद द्रोष्ट के नाम से प्रकाशित किया गया. शेक्सपियर की किंग लियर का अनुवाद राजा लियर के रूप में उन्होंने प्रकाशित की थी.

एक थिएटर निर्देशक और अभिनेता के रूप में, सौमित्र चटर्जी दर्शकों को परफॉर्मेंस के दौरान दर्शकों को अपने में शामिल कर लेते थे. पूरे मंच पर लगता था कि केंद्र में सिर्फ वही हैं. रिवोल्विंग चेयर को व्हीलचेयर में बदलने का प्रयोग वही कर सकते थे.

सौमित्र चटर्जी शायद, देश की सबसे बहुआयामी प्रतिभाओं में से एक थे. बीबीसी ने उनपर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई थी, जिसका नाम था गाछ यानी 'ट्री'.

Last Updated : Nov 15, 2020, 5:44 PM IST
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