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लखीमपुर हिंसा : SC ने सरकार से पूछा, क्या आरोपी गिरफ्तार हुआ ? - lakhimpur kheri incident

उत्तर प्रदेश सरकार ने लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा के मामले में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया है.

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Published : Oct 7, 2021, 1:03 PM IST

Updated : Oct 7, 2021, 2:02 PM IST

नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा (lakhimpur kheri violence) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है. इस मामले की सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि एक एसआईटी का गठन किया गया है और एक एकल सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया गया है, ताकि स्थिति रिपोर्ट भी दाखिल की जा सके.

इसके पहले, उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से बृहस्पतिवार को यह बताने के लिए कहा कि तीन अक्टूबर की लखीमपुर खीरी हिंसा के सिलसिले में किन आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है और उन्हें गिरफ्तार किया गया है या नहीं. इस घटना में आठ लोगों की मौत हो गई थी.

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से पेश हुए वकील को इस बारे में स्थिति रिपोर्ट में जानकारी देने का निर्देश दिया.

शीर्ष अदालत ने मामले में अगली सुनवाई शुक्रवार को तय की है.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश प्रदीप कुमार श्रीवास्तव को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है जिन्हें दो महीने के भीतर जांच पूरी करने का निर्देश दिया गया है. उन्होंने कहा कि जांच आयोग अधिनियम, 1952 (1952 की अधिनियम संख्या 60) की धारा 3 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, राज्यपाल ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) प्रदीप कुमार श्रीवास्तव को आयोग के एकल सदस्य के रूप में नियुक्त किया है.

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि पत्र को जनहित याचिका (पीआईएल) के तौर पर पंजीकृत किया जाना था और कुछ गलतफहमी की वजह से इसे स्वत: संज्ञान के मामले के तौर पर सूचीबद्ध कर दिया गया.

पीठ ने कहा, कोई फर्क नहीं पड़ता, हम तब भी इसपर सुनवाई करेंगे.

पीठ ने अदालत के अधिकारियों से कहा कि वे दो वकीलों - शिव कुमार त्रिपाठी और सी एस पांडा को पेश होने के लिए सूचित करें और मामले में बाद में सुनवाई तय की.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, यह पत्र दो वकीलों द्वारा लिखा गया था। हमने रजिस्ट्री को इसे पीआईएल के तौर पर पंजीकृत करने को कहा था लेकिन किसी गलतफहमी की वजह से यह स्वत: संज्ञान वाले मामले के रूप में पंजीकृत हो गया....पत्र लिखने वाले दोनों वकीलों को मौजूद रहने के लिए सूचित करें.

यह भी पढ़ें- लखीमपुर खीरी की घटना पर किस दल ने क्या दी प्रतिक्रिया, एक नजर

बता दें कि पत्र में मांग की गई है कि लखीमपुर मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को शामिल करते हुए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में न्यायिक जांच होनी चाहिए. लखीमपुर खीरी मामले में पत्र लिखने वाले वकील शिव कुमार त्रिपाठी और सीएस पांडा ने कहा है कि किसानों की मौत एक गंभीर मामला है, और इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना ही चाहिए.

गौरतलब है कि लखीमपुर में रविवार को हुई हिंसा मे चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत हो गई थी.

यह भी पढ़ें- लखीमपुर खीरी विवाद : विपक्ष हमलावर, राहुल बोले- यह देखकर जो चुप है पहले ही मर चुका

यह भी पढ़ें- भयावह: लखीमपुर खीरी में किसानों के कुचलने का वीडियो वायरल

यह भी पढ़ें- लखीमपुर खीरी हिंसा पर बवाल, जानें पूरा घटनाक्रम

नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा (lakhimpur kheri violence) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है. इस मामले की सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि एक एसआईटी का गठन किया गया है और एक एकल सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया गया है, ताकि स्थिति रिपोर्ट भी दाखिल की जा सके.

इसके पहले, उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से बृहस्पतिवार को यह बताने के लिए कहा कि तीन अक्टूबर की लखीमपुर खीरी हिंसा के सिलसिले में किन आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है और उन्हें गिरफ्तार किया गया है या नहीं. इस घटना में आठ लोगों की मौत हो गई थी.

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से पेश हुए वकील को इस बारे में स्थिति रिपोर्ट में जानकारी देने का निर्देश दिया.

शीर्ष अदालत ने मामले में अगली सुनवाई शुक्रवार को तय की है.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश प्रदीप कुमार श्रीवास्तव को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है जिन्हें दो महीने के भीतर जांच पूरी करने का निर्देश दिया गया है. उन्होंने कहा कि जांच आयोग अधिनियम, 1952 (1952 की अधिनियम संख्या 60) की धारा 3 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, राज्यपाल ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) प्रदीप कुमार श्रीवास्तव को आयोग के एकल सदस्य के रूप में नियुक्त किया है.

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि पत्र को जनहित याचिका (पीआईएल) के तौर पर पंजीकृत किया जाना था और कुछ गलतफहमी की वजह से इसे स्वत: संज्ञान के मामले के तौर पर सूचीबद्ध कर दिया गया.

पीठ ने कहा, कोई फर्क नहीं पड़ता, हम तब भी इसपर सुनवाई करेंगे.

पीठ ने अदालत के अधिकारियों से कहा कि वे दो वकीलों - शिव कुमार त्रिपाठी और सी एस पांडा को पेश होने के लिए सूचित करें और मामले में बाद में सुनवाई तय की.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, यह पत्र दो वकीलों द्वारा लिखा गया था। हमने रजिस्ट्री को इसे पीआईएल के तौर पर पंजीकृत करने को कहा था लेकिन किसी गलतफहमी की वजह से यह स्वत: संज्ञान वाले मामले के रूप में पंजीकृत हो गया....पत्र लिखने वाले दोनों वकीलों को मौजूद रहने के लिए सूचित करें.

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बता दें कि पत्र में मांग की गई है कि लखीमपुर मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को शामिल करते हुए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में न्यायिक जांच होनी चाहिए. लखीमपुर खीरी मामले में पत्र लिखने वाले वकील शिव कुमार त्रिपाठी और सीएस पांडा ने कहा है कि किसानों की मौत एक गंभीर मामला है, और इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना ही चाहिए.

गौरतलब है कि लखीमपुर में रविवार को हुई हिंसा मे चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत हो गई थी.

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Last Updated : Oct 7, 2021, 2:02 PM IST
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