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9 अगस्त : वर्ल्ड इंडीजीनस डे, जानें इसे मनाने की क्या है वजह ? - संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह की पहली बैठक

स्वदेशी लोग एक विशेष स्थान पर रहने वाले मूल निवासी हैं, वे आदिवासी लोग जो उस क्षेत्र के सबसे पुराने ज्ञात निवासी होते हैं. वे परंपराओं और अन्य सांस्कृतिक पहलुओं को बनाए रखते हैं जो उस क्षेत्र से जुड़े होते हैं. अंटार्कटिका के अलावा, दुनिया के हर महाद्वीप में स्वदेशी लोग बसे हुए हैं.

विश्व स्वदेशी लोगों
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Published : Aug 9, 2021, 6:00 AM IST

हैदराबाद : विश्व स्वदेशी आबादी का अंतर्राष्ट्रीय दिवस हर साल नौ अगस्त को मनाया जाता है. इसे अंतर्राष्ट्रीय जनजातीय दिवस के रूप में भी जाना जाता है. यह दुनिया के स्वदेशी लोगों के बारे में जागरूकता पैदा करने और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए मनाया जाता है. इस साल का थीम- "किसी को पीछे न छोड़ना : स्वदेशी लोग और एक नए सामाजिक अनुबंध का आह्वान" है.

सामाजिक अनुबंध क्या है?

सामाजिक अनुबंध एक अलिखित समझौता है जो सामाजिक और आर्थिक लाभ के लिए समाज सहयोग करता है. कई देशों में, जहां स्वदेशी लोग अपनी जमीन छोड़ने को मजबूर हुए, उनकी संस्कृति और भाषा का अपमान किया गया और राजनीतिक और आर्थिक गतिविधियों से हाशिए पर रखा गया था, उन्हें शुरू से ही सामाजिक अनुबंध में शामिल नहीं किया गया. सामाजिक अनुबंध प्रमुख आबादी के बीच किया गया था.

नया सामाजिक अनुबंध वास्तविक भागीदारी और साझेदारी पर आधारित होना चाहिए, जो समान अवसरों को बढ़ावा दे और सभी के अधिकारों, गरिमा और स्वतंत्रता का सम्मान करता हो. स्वदेशी लोगों और राज्यों के बीच सुलह कराने के लिए उन लोगों के निर्णय लेने का अधिकार प्रमुख घटक है.

इतिहास

21वीं सदी की शुरुआत में, संयुक्त राष्ट्र ने पाया कि दुनिया भर में आदिवासी समूह बेरोजगारी, बाल श्रम और कई अन्य समस्याओं के शिकार हैं. ऐसे वक्त में संयुक्त राष्ट्र ने एक संगठन बनाने की आवश्यकता को महसूस किया और इसलिए UNWGIP (स्वदेशी जनसंख्या पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह) का गठन किया गया. अंतर्राष्ट्रीय जनजातीय दिवस पहली बार दिसंबर 1994 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा घोषित किया गया था, जो 1982 में स्वदेशी जनसंख्या पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह की पहली बैठक का दिन था. 23 दिसंबर 1994 के संकल्प 49/214 द्वारा, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने निर्णय लिया कि यह दिवस हर साल नौ अगस्त को मनाया जाएगा.

स्वदेशी लोग कौन हैं ?

स्वदेशी लोग एक विशेष स्थान पर रहने वाले मूल निवासी हैं, वे आदिवासी लोग जो उस क्षेत्र के सबसे पुराने ज्ञात निवासी होते हैं. वे परंपराओं और अन्य सांस्कृतिक पहलुओं को बनाए रखते हैं जो उस क्षेत्र से जुड़े होते हैं. अंटार्कटिका के अलावा, दुनिया के हर महाद्वीप में स्वदेशी लोग बसे हुए हैं.

चूंकि, स्वदेशी लोगों को अक्सर अत्याचार का सामना करना पड़ा है, इसलिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने उनके अधिकारों और संस्कृति की रक्षा के लिए कुछ उपाय किए हैं. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, हर दो सप्ताह में, एक स्वदेशी भाषा खत्म हो जाती है. इससे पता चलता है कि जनजातीय लोगों को कितनी जोखिम का सामना करना पड़ता है. इसलिए, अंतर्राष्ट्रीय जनजातीय दिवस उनके महत्व और पर्यावरण के संरक्षण में उनके योगदान को पहचान देने के उद्देश्य से मनाया जाता है.

भारत में जनजातियां

भारत के संविधान ने 'अनुसूची 5' के तहत भारत में आदिवासी समुदायों को मान्यता दी है. इसलिए संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त जनजातियों को 'अनुसूचित जनजाति' के रूप में जाना जाता है. भारत में लगभग 645 विशिष्ट जनजातियां हैं. हालांकि, इस लेख में, हम केवल प्रमुख नामों पर ध्यान केंद्रित करेंगे.

भारत के विभिन्न राज्यों में जनजातीय जनसंख्या-झारखंड- 26.2 प्रतिशत , पश्चिम बंगाल- 5.49 प्रतिशत, बिहार- 0.99 प्रतिशत, सिक्किम- 33.08 प्रतिशत, मेघालय- 86.0 प्रतिशत, त्रिपुरा- 31.08 प्रतिशत, मिजोरम- 94.04 प्रतिशत, मणिपुर- 35.01 प्रतिशत, नागालैंड- 86.05 प्रतिशत, असम- 12.04 प्रतिशत, अरुणाचल प्रदेश- 68.08 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश- 0.07 प्रतिशत है.

कोविड -19 और स्वदेशी लोग

महामारी में स्वदेशी लोगों की सुरक्षा अधिक महत्वपूर्ण है. उनके क्षेत्र दुनिया की 80 प्रतिशत जैव विविधता का घर हैं और वे हमें इस बारे में बहुत कुछ सिखा सकते हैं कि प्रकृति के साथ हमारे संबंधों को कैसे पुनर्संतुलित किया जाए और भविष्य की महामारियों के जोखिम को कम किया जाए.

स्वदेशी लोग इस महामारी में अपने समाधान खुद ही तलाश कर रहे हैं. वे लोग अपने तरीके से महामारी से निपटने के लिए पारंपरिक ज्ञान और प्रथाओं जैसे स्वैच्छिक पृथकवास और अपने क्षेत्रों को सील करने के साथ-साथ निवारक उपायों का उपयोग कर रहे हैं. एक बार फिर से उन्होंने स्वयं को अनुकूलन करने की क्षमता दिखाई है.

उनकी चुनौतियां हैं हमारी चुनौतियां

स्वदेशी समुदायों को पहले से ही स्वास्थ्य सेवा की कमी, बीमारियों के फैलने, आवश्यक सेवाओं तक पहुंच की कमी, अन्य प्रमुख निवारक उपायों जैसे साफ पानी, साबुन, कीटाणुनाशक, आदि की कमी की समस्या का सामना करना पड़ा है. इसी तरह, अधिकांश स्थानीय चिकित्सा सुविधाओं में कम कर्मचारियों या उपकरणों की कमी रहती है. यहां तक कि अगर स्वदेशी लोगों तक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हो भी जाती हैं, तो उन्हें अपमान और भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

स्वदेशी लोगों की पारंपरिक जीवन शैली उनके लचीलेपन का एक स्रोत है और संक्रमण के प्रसार को रोकने में विफल हो सकते हैं. उदाहरण के लिए, अधिकांश स्वदेशी समुदाय विशेष आयोजनों में पांरपरिक समारोहों का आयोजन करते हैं. ऐसे में कुछ स्वदेशी समुदाय पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही आवास में रहते हैं, जिससे बुजुर्गों से लेकर बच्चे तक को संक्रमण का खतरा हो सकता है.

जनजातीय समुदायों के प्रमुख मुद्दे

  • 'भारत में जनजातीय स्वास्थ्य - अंतर को पाटना और भविष्य के लिए एक रोडमैप' शीर्षक नीति के अनुसार भारतीय आदिवासी बीमारी का तिगुना दबाव झेल रहे हैं. ये नीति स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और जनजातीय मामलों के मंत्रालय, भारत सरकार (2018) द्वारा संयुक्त रूप से प्रकाशित है.
  • स्वास्थ्य सुविधाओं, COVID-19 की जानकारी और परीक्षण किट की कमी
  • खाद्य असुरक्षा, आजीविका का नुकसान और बेरोजगारी
  • लघु वनोपज (एमएफपी) और गैर इमारती लकड़ी वनोपज (एनटीएफपी) से आजीविका को नुकसान
  • काश्तकारी असुरक्षा और वन अधिकारों की गैर मान्यता

जनजातीय लोगों के कुछ रोचक तथ्य :

  • पृथ्वी में स्वदेशी लोगों की आबादी कुल मानव आबादी का लगभग 470 मिलियन हैं. साथ ही, दुनिया में 100 से अधिक असंबद्ध जनजातियां भी हैं.
  • विश्व में बोली जाने वाली सात हजार भाषाओं में से चार हजार भाषाएं आदिवासी लोगों की बोली है.
  • आदिवासी लोग प्रकृति की पूजा करते हैं. वे पहाड़ों, नदियों, पेड़ों, पक्षियों और जानवरों की पूजा करते हैं. इस प्रकार वे अपने प्राकृतिक परिवेश के साथ सद्भाव से रहते हैं और उनके पास अच्छा पारिस्थितिक ज्ञान है.
  • भारत में आदिवासी लोगों की कुल जनसंख्या का 8.6 प्रतिशत है. उन्हें भारत के संविधान में अनुसूचित जनजाति के रूप में दर्शाया गया है.
  • भारत के कुछ आदिवासी समूहों में गोंड, मुंडा, हो, बोडो, भील्स, सांथाल, खासी, गारो, ग्रेट अंडमानी, अंगामी, भूटिया, चेंचू, कोडवा, टोडा, मीना, बिरहोर और कई अन्य शामिल हैं.
  • आदिवासी समुदाय के लोग अपने घरों, खेतों और पूजा स्थलों पर झंडा लगाते हैं. ये अन्य समुदायों से भिन्न होते हैं और इनमें सूर्य, चंद्रमा, तारे आदि जैसे प्रतीक होते हैं.

राष्ट्रीय अवकाश की मांग

कुछ दिनों पहले आदिवासी समुदाय के कई लोगों और उनका समर्थन करने वालों ने अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने की मांग की थी. आदिवासी लोगों के प्रमुखों और महत्व को देखते हुए, हंसराज मीणा और जनजातीय सेना जैसे कई आदिवासी नेता सरकार से इसे राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने का आग्रह कर रहे हैं.

हैदराबाद : विश्व स्वदेशी आबादी का अंतर्राष्ट्रीय दिवस हर साल नौ अगस्त को मनाया जाता है. इसे अंतर्राष्ट्रीय जनजातीय दिवस के रूप में भी जाना जाता है. यह दुनिया के स्वदेशी लोगों के बारे में जागरूकता पैदा करने और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए मनाया जाता है. इस साल का थीम- "किसी को पीछे न छोड़ना : स्वदेशी लोग और एक नए सामाजिक अनुबंध का आह्वान" है.

सामाजिक अनुबंध क्या है?

सामाजिक अनुबंध एक अलिखित समझौता है जो सामाजिक और आर्थिक लाभ के लिए समाज सहयोग करता है. कई देशों में, जहां स्वदेशी लोग अपनी जमीन छोड़ने को मजबूर हुए, उनकी संस्कृति और भाषा का अपमान किया गया और राजनीतिक और आर्थिक गतिविधियों से हाशिए पर रखा गया था, उन्हें शुरू से ही सामाजिक अनुबंध में शामिल नहीं किया गया. सामाजिक अनुबंध प्रमुख आबादी के बीच किया गया था.

नया सामाजिक अनुबंध वास्तविक भागीदारी और साझेदारी पर आधारित होना चाहिए, जो समान अवसरों को बढ़ावा दे और सभी के अधिकारों, गरिमा और स्वतंत्रता का सम्मान करता हो. स्वदेशी लोगों और राज्यों के बीच सुलह कराने के लिए उन लोगों के निर्णय लेने का अधिकार प्रमुख घटक है.

इतिहास

21वीं सदी की शुरुआत में, संयुक्त राष्ट्र ने पाया कि दुनिया भर में आदिवासी समूह बेरोजगारी, बाल श्रम और कई अन्य समस्याओं के शिकार हैं. ऐसे वक्त में संयुक्त राष्ट्र ने एक संगठन बनाने की आवश्यकता को महसूस किया और इसलिए UNWGIP (स्वदेशी जनसंख्या पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह) का गठन किया गया. अंतर्राष्ट्रीय जनजातीय दिवस पहली बार दिसंबर 1994 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा घोषित किया गया था, जो 1982 में स्वदेशी जनसंख्या पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह की पहली बैठक का दिन था. 23 दिसंबर 1994 के संकल्प 49/214 द्वारा, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने निर्णय लिया कि यह दिवस हर साल नौ अगस्त को मनाया जाएगा.

स्वदेशी लोग कौन हैं ?

स्वदेशी लोग एक विशेष स्थान पर रहने वाले मूल निवासी हैं, वे आदिवासी लोग जो उस क्षेत्र के सबसे पुराने ज्ञात निवासी होते हैं. वे परंपराओं और अन्य सांस्कृतिक पहलुओं को बनाए रखते हैं जो उस क्षेत्र से जुड़े होते हैं. अंटार्कटिका के अलावा, दुनिया के हर महाद्वीप में स्वदेशी लोग बसे हुए हैं.

चूंकि, स्वदेशी लोगों को अक्सर अत्याचार का सामना करना पड़ा है, इसलिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने उनके अधिकारों और संस्कृति की रक्षा के लिए कुछ उपाय किए हैं. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, हर दो सप्ताह में, एक स्वदेशी भाषा खत्म हो जाती है. इससे पता चलता है कि जनजातीय लोगों को कितनी जोखिम का सामना करना पड़ता है. इसलिए, अंतर्राष्ट्रीय जनजातीय दिवस उनके महत्व और पर्यावरण के संरक्षण में उनके योगदान को पहचान देने के उद्देश्य से मनाया जाता है.

भारत में जनजातियां

भारत के संविधान ने 'अनुसूची 5' के तहत भारत में आदिवासी समुदायों को मान्यता दी है. इसलिए संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त जनजातियों को 'अनुसूचित जनजाति' के रूप में जाना जाता है. भारत में लगभग 645 विशिष्ट जनजातियां हैं. हालांकि, इस लेख में, हम केवल प्रमुख नामों पर ध्यान केंद्रित करेंगे.

भारत के विभिन्न राज्यों में जनजातीय जनसंख्या-झारखंड- 26.2 प्रतिशत , पश्चिम बंगाल- 5.49 प्रतिशत, बिहार- 0.99 प्रतिशत, सिक्किम- 33.08 प्रतिशत, मेघालय- 86.0 प्रतिशत, त्रिपुरा- 31.08 प्रतिशत, मिजोरम- 94.04 प्रतिशत, मणिपुर- 35.01 प्रतिशत, नागालैंड- 86.05 प्रतिशत, असम- 12.04 प्रतिशत, अरुणाचल प्रदेश- 68.08 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश- 0.07 प्रतिशत है.

कोविड -19 और स्वदेशी लोग

महामारी में स्वदेशी लोगों की सुरक्षा अधिक महत्वपूर्ण है. उनके क्षेत्र दुनिया की 80 प्रतिशत जैव विविधता का घर हैं और वे हमें इस बारे में बहुत कुछ सिखा सकते हैं कि प्रकृति के साथ हमारे संबंधों को कैसे पुनर्संतुलित किया जाए और भविष्य की महामारियों के जोखिम को कम किया जाए.

स्वदेशी लोग इस महामारी में अपने समाधान खुद ही तलाश कर रहे हैं. वे लोग अपने तरीके से महामारी से निपटने के लिए पारंपरिक ज्ञान और प्रथाओं जैसे स्वैच्छिक पृथकवास और अपने क्षेत्रों को सील करने के साथ-साथ निवारक उपायों का उपयोग कर रहे हैं. एक बार फिर से उन्होंने स्वयं को अनुकूलन करने की क्षमता दिखाई है.

उनकी चुनौतियां हैं हमारी चुनौतियां

स्वदेशी समुदायों को पहले से ही स्वास्थ्य सेवा की कमी, बीमारियों के फैलने, आवश्यक सेवाओं तक पहुंच की कमी, अन्य प्रमुख निवारक उपायों जैसे साफ पानी, साबुन, कीटाणुनाशक, आदि की कमी की समस्या का सामना करना पड़ा है. इसी तरह, अधिकांश स्थानीय चिकित्सा सुविधाओं में कम कर्मचारियों या उपकरणों की कमी रहती है. यहां तक कि अगर स्वदेशी लोगों तक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हो भी जाती हैं, तो उन्हें अपमान और भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

स्वदेशी लोगों की पारंपरिक जीवन शैली उनके लचीलेपन का एक स्रोत है और संक्रमण के प्रसार को रोकने में विफल हो सकते हैं. उदाहरण के लिए, अधिकांश स्वदेशी समुदाय विशेष आयोजनों में पांरपरिक समारोहों का आयोजन करते हैं. ऐसे में कुछ स्वदेशी समुदाय पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही आवास में रहते हैं, जिससे बुजुर्गों से लेकर बच्चे तक को संक्रमण का खतरा हो सकता है.

जनजातीय समुदायों के प्रमुख मुद्दे

  • 'भारत में जनजातीय स्वास्थ्य - अंतर को पाटना और भविष्य के लिए एक रोडमैप' शीर्षक नीति के अनुसार भारतीय आदिवासी बीमारी का तिगुना दबाव झेल रहे हैं. ये नीति स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और जनजातीय मामलों के मंत्रालय, भारत सरकार (2018) द्वारा संयुक्त रूप से प्रकाशित है.
  • स्वास्थ्य सुविधाओं, COVID-19 की जानकारी और परीक्षण किट की कमी
  • खाद्य असुरक्षा, आजीविका का नुकसान और बेरोजगारी
  • लघु वनोपज (एमएफपी) और गैर इमारती लकड़ी वनोपज (एनटीएफपी) से आजीविका को नुकसान
  • काश्तकारी असुरक्षा और वन अधिकारों की गैर मान्यता

जनजातीय लोगों के कुछ रोचक तथ्य :

  • पृथ्वी में स्वदेशी लोगों की आबादी कुल मानव आबादी का लगभग 470 मिलियन हैं. साथ ही, दुनिया में 100 से अधिक असंबद्ध जनजातियां भी हैं.
  • विश्व में बोली जाने वाली सात हजार भाषाओं में से चार हजार भाषाएं आदिवासी लोगों की बोली है.
  • आदिवासी लोग प्रकृति की पूजा करते हैं. वे पहाड़ों, नदियों, पेड़ों, पक्षियों और जानवरों की पूजा करते हैं. इस प्रकार वे अपने प्राकृतिक परिवेश के साथ सद्भाव से रहते हैं और उनके पास अच्छा पारिस्थितिक ज्ञान है.
  • भारत में आदिवासी लोगों की कुल जनसंख्या का 8.6 प्रतिशत है. उन्हें भारत के संविधान में अनुसूचित जनजाति के रूप में दर्शाया गया है.
  • भारत के कुछ आदिवासी समूहों में गोंड, मुंडा, हो, बोडो, भील्स, सांथाल, खासी, गारो, ग्रेट अंडमानी, अंगामी, भूटिया, चेंचू, कोडवा, टोडा, मीना, बिरहोर और कई अन्य शामिल हैं.
  • आदिवासी समुदाय के लोग अपने घरों, खेतों और पूजा स्थलों पर झंडा लगाते हैं. ये अन्य समुदायों से भिन्न होते हैं और इनमें सूर्य, चंद्रमा, तारे आदि जैसे प्रतीक होते हैं.

राष्ट्रीय अवकाश की मांग

कुछ दिनों पहले आदिवासी समुदाय के कई लोगों और उनका समर्थन करने वालों ने अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने की मांग की थी. आदिवासी लोगों के प्रमुखों और महत्व को देखते हुए, हंसराज मीणा और जनजातीय सेना जैसे कई आदिवासी नेता सरकार से इसे राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने का आग्रह कर रहे हैं.

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