नई दिल्ली : फ्री बिजली, फ्री राशन, हर महीने पेंशन, हरेक छात्र को लैपटॉप, हर युवाओं को रोजगार ....अब आप ये तो समझ ही गए होंगे कि इस तरह के वादे चुनाव आते ही शुरू हो जाते हैं. कौन सी पार्टी मतदाताओं को बेहतर 'सपने' दिखा सकती है, इसको लेकर रेस बनी रहती है. उनका एक मात्र मकसद चुनाव जीतना होता है. चुनाव खत्म होने के बाद, इन वादों का क्या हुआ, क्या ये वादे पूरे हो सकते हैं, इसका कोई भी हिसाब-किताब लगाने वाला नहीं है. कोई नहीं पूछने आ रहा है कि आपने चुनावी सभाओं में जो वादे किए, उनका क्या हुआ. दरअसल, तब तक जिन राजनीतिक दलों को फायदा मिलना होता है, वे उसकी फसल काट चुके होते हैं. अब तो पांच साल बाद ही जनता के सामने जाने की बारी होगी.
जब तक मतदाताओं को लगता है कि उन्हें छला गया है, तब तक वे कुछ करने की स्थिति में नहीं होते हैं. संभवतः यही वजह है कि निर्वाचन आयोग ने ऐसी प्रवृत्तियों पर रोक लगाने का फैसला किया है. चुनाव आयोग ने साफ तौर पर कह दिया है कि आप अगर कोई भी वादे करते हैं, तो आपको साफ-साफ बताना होगा कि इन्हें आप कैसे पूरा करेंगे. यानी इनके लिए धन कहां से आएगा, यह भी बताना होगा.
मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट का हिस्सा होगा नया फॉर्म - चुनाव आयोग का यह नया फॉर्म मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट का हिस्सा होगा, जिसमें तमाम दलों को बताना होगा कि उनके चुनावी वादे को पूरा करने के लिए धन कहां से आएगा. राजनीतिक दलों के बीच इस पर आम सहमति बन जाती है तो इसे लागू किया जा सकता है. नए नियम लागू हो जाने के बाद राजनीतिक दलों को अपने चुनावी वादे पूरा करने का स्रोत और इसे लागू करने से राज्य के खजाने पर पड़ने वाले वित्तीय प्रभाव के बारे में बताना होगा.
चुनाव आयोग के नए प्रस्ताव से क्या होगा ---
मतदाता जानें कि राज्य के आर्थिक हालात कैसे हैं - चुनाव आयोग के सूत्रों का कहना है कि मतदाताओं को राजनीतिक दलों की तुलना करने और यह समझने में मदद मिलेगी क्या चुनावी वादे हकीकत में तब्दील किए जा सकते हैं. आयोग ने यह भी प्रस्ताव दिया है कि जब भी या कहीं भी चुनाव हों, उस राज्य के मुख्य सचिव या केंद्र के वित्त सचिव एक तय फॉर्मैट में टैक्स और खर्चों का विवरण प्रदान करें. इसका मतलब ये हुआ कि उन्हें यह बताना होगा कि राज्य की वित्तीय स्थिति कैसी है. राज्य के पास कितना संसाधन है, कितना पैसा सरप्लस है, कितना कर्ज उसके पास है.
सभी राजनीतिक दलों को देना है जवाब - आपको बता दें कि मुफ्त चुनावी सौगातों को लेकर देश में जारी बहस के बीच निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों के समक्ष आदर्श चुनाव संहिता में संशोधन का एक प्रस्ताव रखा है. आयोग ने इसके तहत चुनावी वादों की वित्तीय व्यवहार्यता के बारे में मतदाताओं को प्रामाणिक जानकारी देने को लेकर राजनीतिक दलों की राय मांगी है. सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों को लिखे गए एक पत्र में आयोग ने उनसे 19 अक्टूबर तक उनके विचार साझा करने को कहा है.
चुनावी वादों का औचित्य दिखना चाहिए - निर्वाचन आयोग ने कहा कि वह चुनावी वादों पर अपर्याप्त सूचना और वित्तीय स्थिति पर अवांछित प्रभाव की अनदेखी नहीं कर सकता है, क्योंकि खोखले चुनावी वादों के दूरगामी प्रभाव होंगे. आयोग के अनुसार, 'चुनावी घोषणा पत्रों में स्पष्ट रूप से यह संकेत मिलना चाहिए कि वादों की पारदर्शिता, समानता और विश्वसनीयता के हित में यह पता लगना चाहिए कि किस तरह और किस माध्यम से वित्तीय आवश्यकता पूरी की जाएगी.' आयोग के आदर्श चुनाव संहिता में प्रस्तावित संशोधन के अनुसार चुनाव घोषणा पत्रों में चुनावी वादों का औचित्य दिखना चाहिए.
राजनीतिक दलों ने नहीं दिया जवाब तो क्या होगा ... आयोग ने कहा है कि यदि निर्धारित समयसीमा के भीतर राजनीतिक दलों का जवाब नहीं आता है, तो यह मान लिया जाएगा कि उनके पास इस विषय पर कहने के लिए कुछ विशेष नहीं है. आयोग ने कहा है कि निर्धारित प्रारूप, सूचना की प्रकृति और सूचनाओं की तुलना के लिए मानकीकरण हेतु आवश्यक है. निर्वाचन आयोग ने यह भी कहा कि किए गए वादों के वित्तीय प्रभाव पर पर्याप्त सूचना मिल जाने से मतदाता विकल्प चुन सकेंगे. आयोग ने यह भी कहा कि वह चुनावी वादों पर अपर्याप्त सूचना और वित्तीय स्थिति पर अवांछित प्रभाव की अनदेखी नहीं कर सकता. आयोग ने कहा कि ज्यादातर राजनीतिक दल चुनावी घोषणाओं का ब्योरा समय पर उसे उपलब्ध नहीं कराते.
विपक्षी पार्टियों ने चुनाव आयोग पर ही उठा दिए सवाल - कांग्रेस ने कहा कि आदर्श संहिता में बदलाव संबंधी निर्वाचन आयोग का हालिया प्रस्ताव प्रतिस्पर्धी राजनीति की भावना के खिलाफ है और यह 'लोकतंत्र के ताबूत में और एक कील' साबित होगा. इस घटनाक्रम के संबंध में सवाल करने पर कांग्रेस में संचार विभाग के प्रभारी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि यह निर्वाचन आयोग का काम नहीं है. उन्होंने कहा, 'यह प्रतिस्पर्धी राजनीति की भावना के खिलाफ है और यह भारत के लोकतंत्र के ताबूत में और एक कील साबित होगा.' रमेश ने कहा कि अगर ऐसी नौकरशाही वाली सोच होती तो पिछले दशकों में कल्याण और सामाजिक विकास की कोई योजना धरातल पर उतर कर सफल नहीं हुई होती.
निर्वाचन आयोग का प्रस्ताव अनुचित - वाम दलों ने चुनावी वादों की वित्तीय व्यवहार्यता के बारे में मतदाताओं को प्रामाणिक जानकारी मुहैया कराने के लिए राजनीतिक दलों से कहने के वास्ते आदर्श आचार संहिता में बदलाव के निर्वाचन आयोग के प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि नीति घोषणाओं को 'विनियमित' करना निर्वाचन आयोग का काम नहीं है. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने एक बयान में कहा, 'संविधान निर्वाचन आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने का आदेश देता है. यह निर्वाचन आयोग का काम नहीं है कि वह नीतिगत घोषणाओं और कल्याणकारी उपायों को विनियमित करे जिनका राजनीतिक दल लोगों से वादा करते हैं. यह पूरी तरह से लोकतंत्र में राजनीतिक दलों का विशेषाधिकार है.' पार्टी ने कहा, 'हम लोगों की चिंताओं और उनकी समस्याओं को दूर करने के लिए नीतिगत उपायों की पेशकश करने के राजनीतिक दलों के अधिकार को सीमित करने या विनियमित करने के किसी भी प्रयास का कड़ा विरोध करते हैं. निर्वाचन आयोग का प्रस्ताव एक अनुचित कदम है.'
निर्वाचन आयोग के प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देते हुए आम आदमी पार्टी (आप) ने कहा कि सरकारों को करदाताओं का पैसा नेताओं, उनके परिवार के सदस्यों और मित्रों को लाभ पहुंचाने के लिए नहीं बल्कि जनता को सुविधाएं प्रदान करने के लिए खर्च करना चाहिए. पार्टी ने कहा कि लोगों को बिजली, पानी, स्कूल और अन्य सुविधाएं मुहैया कराना किसी भी सरकार की 'मुख्य जिम्मेदारी' होती है. आयोग के प्रस्ताव पर पार्टी की राय के बारे में पूछे जाने पर पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता आतिशी ने कहा, 'आम आदमी पार्टी (निर्वाचन आयोग के समक्ष) अपना विचार रखेगी.'
'रेवड़ी' संस्कृति पर उठाए थे सवाल - आपको बता दें कि आयोग ने यह पत्र ऐसे समय में लिखा है, जब कुछ दिन पूर्व ही प्रधानमंत्री ने 'रेवड़ी संस्कृति' का उल्लेख करते हुए कुछ राजनीतिक दलों पर कटाक्ष किया था. इसके बाद भारतीय जनता पार्टी और विपक्षी दलों के बीच इसे लेकर वाद-विवाद आरंभ हो गया था. इस संबंध में पहचान गुप्त रखने की शर्त पर एक पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने कहा कि मुफ्त उपहार बनाम कल्याणकारी कदम वाले मुकदमे पर उच्चतम न्यायालय का फैसला आने के बाद यह प्रस्ताव लाया जाना चाहिए था. उच्चतम न्यायालय ने अगस्त में कहा था कि इस मुद्दे पर विस्तृत सुनवाई की आवश्यकता है और इसे तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए. पूर्व चुनाव आयुक्त ने कहा, 'उसके बाद, निर्वाचन आयोग को उच्चतम न्यायालय के फैसले को आगे बढ़ाने के लिए कदम उठाना चाहिए था.'
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