न्यूयॉर्क : अमेरिका की एक फॉरेंसिक फर्म ने मंगलवार को दावा किया कि भीमा-कोरेगांव मामले में स्टैन स्वामी को गिरफ्तार करने के लिए मानवाधिकार कार्यकर्ता रोना विल्सन और सुरेंद्र गाडलिंग की तरह डिजिटल सबूत को उनके कंप्यूटर की हार्ड ड्राइव में 'प्लांट' किया गया था. एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी 84 वर्षीय स्वामी की जुलाई 2021 में चिकित्सा आधार पर अंतरिम जमानत की प्रतीक्षा करते हुए मृत्यु हो गई.
मैसाचुसेट्स स्थित डिजिटल फॉरेंसिक फर्म, आर्सेनल कंसल्टिंग द्वारा स्वामी के कंप्यूटर की एक इलेक्ट्रॉनिक कॉपी की जांच ने निष्कर्ष निकाला कि एक हैकर ने उनके उपकरण में घुसपैठ की और सबूत 'प्लांट' किए. अखबार 'द वाशिंगटन पोस्ट' के मुताबिक फर्म ने अपनी नयी रिपोर्ट में कहा कि इससे पूर्व अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं रोना विल्सन और सुरेंद्र गाडलिंग के उपकरणों पर लगाए गए डिजिटल साक्ष्य का दस्तावेजीकरण किया गया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वामी के कंप्यूटर की हार्ड ड्राइव पर 50 से अधिक फाइल बनाई गईं, जिनमें उन दस्तावेजों को भी शामिल किया गया, जो मिथ्या रूप से उनके और माओवादी उग्रवाद के बीच संबंध को दिखाते थे. रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वामी के खिलाफ छापे से एक हफ्ते पहले 5 जून, 2019 को अंतिम आपत्तिजनक दस्तावेज उनके कंप्यूटर पर प्लांट किया गया था.
इन दस्तावेजों के आधार पर ही स्वामी को भीमा कोरेगांव मामले में पहली बार गिरफ्तार किया गया था, जबकि विशेषज्ञों ने दस्तावेजों की प्रामाणिकता पर संदेह जताया था. एल्गार मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस ने दावा किया कि शहर के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास अगले दिन हिंसा भड़क गई. पुणे पुलिस ने दावा किया कि सम्मेलन को माओवादियों का समर्थन प्राप्त था.
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स्वामी की मृत्यु के बाद, विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा था कि उनकी हिरासत के लिए कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किया गया. पिछले साल फादर स्टैन स्वामी की मृत्यु के संबंध में मीडिया के सवालों के जवाब में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि उनके खिलाफ आरोपों की विशिष्ट प्रकृति के कारण अदालतों ने उनकी जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया था.
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(पीटीआई-भाषा)