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सुप्रीम कोर्ट में फिर खुलेगा कैश फॉर वोट का मामला, 1993 में सरकार बचाने के लिए सांसदों को 40-40 लाख रुपए में खरीदने का आरोप

सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच अब नए सिरे से 1993 में हुए कैश फॉर वोट मामले की सुनवाई करेगी. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने इसे संविधान पीठ की सात जजों की बेंच को ट्रांसफर कर दिया है.

1993 Cash for Vote case afresh
1993 Cash for Vote case afresh
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 21, 2023, 5:31 PM IST

रांची: सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच अब नए सिरे से कैश फॉर वोट मामले की सुनवाई करेगी. यह मामला 1993 का है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 5 सदस्यीय सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इसे 7 जजों की बेंच को ट्रांसफर किया है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट अब नए सिरे से ये तय करेगा कि क्या सांसद या विधायक सदन में मतदान और भाषण के लिए रिश्वत लेते हैं तो उन पर मुकदमा चल सकता है.

ये भी पढ़ें: शिबू सोरेन का गढ़ विकास से महरूम, 20 सालों से नहीं बन पाई सड़क

1993 में नरसिम्हा राव की सरकार जब अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रही थी तो उस वक्त ये मामला सामने आया था. बीजेपी का आरोप है कि सरकार को बचाने के लिए सांसदों को 40-40 लाख रुपए दिए गए थे. हालांकि 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने ये मामला खारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 105(2) का हवाला देते हुए कहा था कि वोट देने के लिए सांसद या विधायक पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं. उन पर किसी भी अदालत में केस नहीं चल सकता है.

1993 Cash for Vote case afresh
कैश फॉर वोट का मामला

हेमंत सोरेन के पिता शिबू सोरेन को आदिवासियों को मसीहा माना जाता है. झारखंड के आदिवासियों के लिए उन्होंने काफी संघर्ष किया. हालांकि उनकी जिंदगी से भी कई विवाद जुड़े हुए हैं. 1993 में नरसिम्हा राव की सरकार चल रही थी तब 28 जुलाई 1993 को बीजेपी नरसिम्हा राव के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई. माना जा रहा था कि सरकार निश्चित रूप से गिर जाएगी. लेकिन जब संसद में वोटिंग हुई तो जेएमएम के सांसदों ने सरकार के पक्ष में वोट किया और कांग्रेस की सरकार बच गई. हालांकि इसके बाद नरसिम्हा राव सरकार पर अपनी सरकार बचाने ले लिए सांसदों को घूस देने का आरोप लगा. 1995 में अटल बिहारी वाजपेयी ने इस घूसकांड का संसद के भीतर खुलासा किया. कहा गया कि जेएमएम के सांसद शैलेंद्र महतो ने स्वीकार किया कि शिबू सोरेन समेत उनकी पार्टी के सांसदों ने कांग्रेस की सरकार को बचाने के लिए 40-40 लाख रुपए की घूस ली थी. हालांकि बाद में न्यायिक जांच में कोई भी दोषी नहीं पाया गया.

वहीं, इसी मामले में शशिनाथ झा हत्याकांड भी जुड़ा हुआ था, सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में कहा था कि 1993 में नरसिम्हा राव की सरकार को समर्थन के बदले उन्होंने पैसे लिए थे और उनके सेक्रेटरी शशिनाथ झा को गैर-कानूनी तरीके से किए गए सारे ट्रांजैक्शन की जानकारी थी. बताया जाता है कि झा भी उस काले पैसे में अपना हिस्सा मांग रहे थे, जिसके चलते उनकी हत्या हुई. हालांकि 23 अगस्त 2007 को दिल्ली हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलट दिया और शिबू सोरेन को इस मामले में बरी कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने भी दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा.

रांची: सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच अब नए सिरे से कैश फॉर वोट मामले की सुनवाई करेगी. यह मामला 1993 का है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 5 सदस्यीय सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इसे 7 जजों की बेंच को ट्रांसफर किया है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट अब नए सिरे से ये तय करेगा कि क्या सांसद या विधायक सदन में मतदान और भाषण के लिए रिश्वत लेते हैं तो उन पर मुकदमा चल सकता है.

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1993 में नरसिम्हा राव की सरकार जब अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रही थी तो उस वक्त ये मामला सामने आया था. बीजेपी का आरोप है कि सरकार को बचाने के लिए सांसदों को 40-40 लाख रुपए दिए गए थे. हालांकि 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने ये मामला खारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 105(2) का हवाला देते हुए कहा था कि वोट देने के लिए सांसद या विधायक पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं. उन पर किसी भी अदालत में केस नहीं चल सकता है.

1993 Cash for Vote case afresh
कैश फॉर वोट का मामला

हेमंत सोरेन के पिता शिबू सोरेन को आदिवासियों को मसीहा माना जाता है. झारखंड के आदिवासियों के लिए उन्होंने काफी संघर्ष किया. हालांकि उनकी जिंदगी से भी कई विवाद जुड़े हुए हैं. 1993 में नरसिम्हा राव की सरकार चल रही थी तब 28 जुलाई 1993 को बीजेपी नरसिम्हा राव के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई. माना जा रहा था कि सरकार निश्चित रूप से गिर जाएगी. लेकिन जब संसद में वोटिंग हुई तो जेएमएम के सांसदों ने सरकार के पक्ष में वोट किया और कांग्रेस की सरकार बच गई. हालांकि इसके बाद नरसिम्हा राव सरकार पर अपनी सरकार बचाने ले लिए सांसदों को घूस देने का आरोप लगा. 1995 में अटल बिहारी वाजपेयी ने इस घूसकांड का संसद के भीतर खुलासा किया. कहा गया कि जेएमएम के सांसद शैलेंद्र महतो ने स्वीकार किया कि शिबू सोरेन समेत उनकी पार्टी के सांसदों ने कांग्रेस की सरकार को बचाने के लिए 40-40 लाख रुपए की घूस ली थी. हालांकि बाद में न्यायिक जांच में कोई भी दोषी नहीं पाया गया.

वहीं, इसी मामले में शशिनाथ झा हत्याकांड भी जुड़ा हुआ था, सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में कहा था कि 1993 में नरसिम्हा राव की सरकार को समर्थन के बदले उन्होंने पैसे लिए थे और उनके सेक्रेटरी शशिनाथ झा को गैर-कानूनी तरीके से किए गए सारे ट्रांजैक्शन की जानकारी थी. बताया जाता है कि झा भी उस काले पैसे में अपना हिस्सा मांग रहे थे, जिसके चलते उनकी हत्या हुई. हालांकि 23 अगस्त 2007 को दिल्ली हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलट दिया और शिबू सोरेन को इस मामले में बरी कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने भी दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा.

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