चतरा: दिव्यांगता, जिसे अक्सर हमारे समाज के लोगों के द्वारा अभिशाप माना जाता है. यही कारण है कि समाज में दिव्यांगों को लोग एक अलग भावना से देखते हैं. लेकिन जब दिल में जज्बा हो तो यह दिव्यांगता भी वरदान साबित हो सकती है. इसी को सच कर दिखाया है चतरा जिले के टंडवा प्रखंड क्षेत्र चट्टीगाड़ीलौंग गांव निवासी सौरभ प्रसाद ने. बुलंद हौसलों की वजह से उन्हें माइक्रोसॉफ्ट में नौकरी मिली है (chatra resident Divyang Saurabh got job).
बचपन से ही सौरभ ग्लूकोमा नामक नेत्र रोग(glaucoma patients saurabh) से ग्रसित थे. जिसके कारण महज 11 साल की उम्र में ही सौरभ के आंखों की रेशनी चली गई. जिससे सौरभ अब देख नहीं पाते. लेकिन अपनी नेत्रहीनता को सौरभ ने अभिशाप के बदले वरदान मानकर मेहनत की. इसी का परिणाम है कि आज सौरभ ने माइक्रोसॉफ्ट जैसी नामी बड़ी साफ्टवेयर कंपनी में जॉब पाकर(chatra resident Divyang Saurabh got job) यह साबित कर दिया कि वे नेत्र से हीन तो जरूर हैं लेकिन हौसलों से नहीं. जिस दिव्यांगता और नेत्रहीनता के कारण जो बच्चे अथवा युवा ठीक से स्कूलिंग भी नहीं कर पाते उन बच्चों अथवा युवाओं के लिए अपने आत्मविश्वास और प्रतिभा से लबरेज सौरभ आज प्रेरणा के स्रोत बन गए हैं.
सौरभ बचपन से ही पढ़-लिखकर कुछ बनना चाहते थे, लेकिन बचपन में ही अपनी आंखों की रोशनी गंवा बैठे. जिसके बाद पिता की प्रेरणा और अपनी मेहनत के कारण सौरभ आखिरकार अपने लक्ष्य को हासिल करने में सफल रहे. सौरभ बचपन से ही ग्लूकोमा नामक बीमारी से पीड़ित(glaucoma patients saurabh) थे. जिसके कारण कक्षा 3 के बाद उनकी आंखों की रोशनी पूरी तरह चली गई. बावजूद सौरभ ने हार मानने के बजाय आगे की पढ़ाई ब्रेल लिपि में करने की ठान ली. जिसके बाद पिता महेश प्रसाद ने उनकी इच्छा को पूरा करने में पूरा साथ दिया. फिर सौरभ का नामांकन रांची के संत मिखाईल स्कूल में करा दिया. जहां से सौरभ ने सातवीं तक की पढ़ाई पूरी की.
लेकिन सातवीं कक्षा के बाद सौरभ की जिंदगी में बड़ी रुकावट सामने आ गई. क्योंकि ब्रेल लिपि से आठवीं से दसवीं तक की किताबें ही नहीं छपी थी. ऐसे में सौरभ के पिता को भी लगा कि हमारी सारी मेहनत अब बेकार चली गई. उन्होंने बताया कि बहुत आग्रह करने पर सरकार के द्वारा सौरभ के लिए आठवीं से दसवीं तक की किताबें छपाई गईं.जिसके बाद सौरव का नामांकन इन आईबीएस देहरादून स्कूल में करवाया गया. जहां से सौरभ ने 10वीं की परीक्षा में 97 प्रतिशत अंक लाकर टॉप किया. इतना ही नहीं 93 प्रतिशत रिकार्ड अंकों के साथ 12वीं भी पास की. जिसके बाद आईआईटी दिल्ली में सौरभ का सीएसई में नामांकन करवाया गया. जहां वर्तमान में सौरभ सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग के तीसरे वर्ष की पढ़ाई कर रहे हैं.
सौरभ के पिता बताते हैं कि सौरभ की आंखों की रौशनी जाना, एक पल के लिए हमारे हौसलों को भी तोड़ दिया था. लेकिन बेटे के हौसले के आगे मैंने भी हिम्मत नहीं हारी और उसके हर कदम पर साथ चला. इसी का परिणाम है कि आज सौरभ ने माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनी में जॉब पाकर घर परिवार के साथ पूरे प्रखंड व जिले का नाम रौशन किया है. वहीं मां बताती हैं कि हमें इस बात ने झकझोर कर रख दिया था कि आखिर सौरभ के जीवन का पहिया कैसे चलेगा. लेकिन शायद सौरभ ने कुछ और ही ठाना था. इसी का परिणाम है कि आज सौरभ माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनी में जॉब पा लिया है.
बहरहाल सौरभ उन युवाओं और माता-पिता के लिए प्रेरणा स्रोत है जो अपनी दिव्यांगता को अभिशाप मानकर अस्थिर पड़ जाते हैं. सौरभ की इस सफलता से उन्हें सीख लेनी चाहिए कि अगर हौसले बुलंद हो तो दिव्यांगता और नेत्रहीनता आपके सफलता के रास्ते का रोड़ा कभी नहीं बन सकती. दिव्यांग और नेत्रहीन बच्चे भी सामान्य बच्चों की तरह अपने मां-बाप का नाम रोशन कर सकते हैं. बस जरूरत है उन्हें सही दिशा और मौका दिये जाने की.