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आंखों की रोशनी छीन लेता है ग्लोकोमा रोग, इस उम्र में होता है ज्यादा खतरा

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग जिला ऊना ने आंगनवाड़ी केंद्र गलुआ में विश्व ग्लोकोमा सप्ताह के उपलक्ष्य पर जिला स्तरीय जागरूकता शिविर का आयोजन किया. मुख्य चिकित्सा अधिकारी डाॅ. रमण कुमार शर्मा ने बताया कि ग्लोकोमा आंखों की रोशनी के लिए खतरा पैदा करने वाला रोग है जो आंखों की नसों को खराब कर देता है.

World Glaucoma Week Awareness camp organized in una
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Published : Mar 12, 2021, 7:28 PM IST

ऊनाः स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग जिला ऊना ने आंगनवाड़ी केंद्र गलुआ में विश्व ग्लोकोमा सप्ताह के उपलक्ष्य पर जिला स्तरीय जागरूकता शिविर का आयोजन किया. इस संबंध में जानकारी देते हुए मुख्य चिकित्सा अधिकारी डाॅ. रमण कुमार शर्मा ने बताया कि प्रत्येक वर्ष मार्च माह में विश्व ग्लोकोमा सप्ताह मनाया जाता है.

सीएमओ ने बताया कि ग्लोकोमा आंखों की रोशनी के लिए खतरा पैदा करने वाला रोग है जो आंखों की नसों को खराब कर देता है. उन्होंने बताया कि इस रोग के कारण 40 साल की उम्र में ही आंखों में दिक्कत शुरू हो जाती है. ग्लोकोमा आमतौर पर 40 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों या विशेषकर उन्हें होता है जिनके परिवार में काला मोतिया का इतिहास रहा हो, जिन लोगों की आंख में चोट लगी हो या मधुमेह, गठिया, सांस की बीमारी व एलर्जी से पीड़ित लोग जिनका लम्बे समय से इलाज चल रहा है.

डाॅ. रमण शर्मा ने बताया कि इलाज में लापरवाही से आंखों की रोशनी भी समाप्त हो सकती है. ग्लूकोमा के मरीजों का इलाज नियमित दवा के उपयोग, लेजर या सर्जरी के जरिए केवल शुरूआती दौर में ही संभव है. उन्होंने बताया कि समय पर इलाज से आंखों को दृष्टिहीनता से बचाया जा सकता है.

जागरूकता शिविर में जिला कार्यक्रम अधिकारी रिचा कालिया ने लोगों को जानकारी देते हुए बताया कि आंखें हमारे शरीर के सबसे खास और नाजुक अंगों में से एक होती है. अगर इनका ख्याल न रखा जाए तो छोटी सी परेशानी जिन्दगी भर की तकलीफ बन सकती है. उन्होंने बताया कि यदि आंखों से बल्ब के चारों ओर रंगीन गोले नजर आयें, आंखों में दर्द महसूस हो, रोशनी कम लगे तो यह ग्लोकोमा हो सकता है. अगर चश्में का नंबर जल्दी-जल्दी बदल रहा हो या असामान्य सिरदर्द और नेत्र दर्द हो रहा हो तो यह ग्लोकोमा का संकेत है.

पढ़ें: शिमलाः होर्डिंग साइट नीलाम करेगा नगर निगम, तीन करोड़ की होगी आमदनी

ऊनाः स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग जिला ऊना ने आंगनवाड़ी केंद्र गलुआ में विश्व ग्लोकोमा सप्ताह के उपलक्ष्य पर जिला स्तरीय जागरूकता शिविर का आयोजन किया. इस संबंध में जानकारी देते हुए मुख्य चिकित्सा अधिकारी डाॅ. रमण कुमार शर्मा ने बताया कि प्रत्येक वर्ष मार्च माह में विश्व ग्लोकोमा सप्ताह मनाया जाता है.

सीएमओ ने बताया कि ग्लोकोमा आंखों की रोशनी के लिए खतरा पैदा करने वाला रोग है जो आंखों की नसों को खराब कर देता है. उन्होंने बताया कि इस रोग के कारण 40 साल की उम्र में ही आंखों में दिक्कत शुरू हो जाती है. ग्लोकोमा आमतौर पर 40 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों या विशेषकर उन्हें होता है जिनके परिवार में काला मोतिया का इतिहास रहा हो, जिन लोगों की आंख में चोट लगी हो या मधुमेह, गठिया, सांस की बीमारी व एलर्जी से पीड़ित लोग जिनका लम्बे समय से इलाज चल रहा है.

डाॅ. रमण शर्मा ने बताया कि इलाज में लापरवाही से आंखों की रोशनी भी समाप्त हो सकती है. ग्लूकोमा के मरीजों का इलाज नियमित दवा के उपयोग, लेजर या सर्जरी के जरिए केवल शुरूआती दौर में ही संभव है. उन्होंने बताया कि समय पर इलाज से आंखों को दृष्टिहीनता से बचाया जा सकता है.

जागरूकता शिविर में जिला कार्यक्रम अधिकारी रिचा कालिया ने लोगों को जानकारी देते हुए बताया कि आंखें हमारे शरीर के सबसे खास और नाजुक अंगों में से एक होती है. अगर इनका ख्याल न रखा जाए तो छोटी सी परेशानी जिन्दगी भर की तकलीफ बन सकती है. उन्होंने बताया कि यदि आंखों से बल्ब के चारों ओर रंगीन गोले नजर आयें, आंखों में दर्द महसूस हो, रोशनी कम लगे तो यह ग्लोकोमा हो सकता है. अगर चश्में का नंबर जल्दी-जल्दी बदल रहा हो या असामान्य सिरदर्द और नेत्र दर्द हो रहा हो तो यह ग्लोकोमा का संकेत है.

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