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एक ऐसा शहर जिसका नामकरण देवी के नाम से हुआ, जानिए क्या है माता शूलिनी का इतिहास

शूलिनी माता का इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा है. माता शूलिनी बघाट रियासत के शासकों की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती है. वर्तमान में माता शूलिनी का मंदिर सोलन शहर के दक्षिण में शीली मार्ग पर स्थित है. शहर की अधिष्ठात्री देवी शूलिनी माता के नाम से ही इसका नाम सोलन पड़ा.

शूलिनी माता मंदिर
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Published : Jun 1, 2019, 5:48 PM IST

सोलनः सोलन एक ऐसा शहर जो शूलिनी माता की गोद मे बसा है. पूरी दुनिया में अपनी छाप छोड़ चुका सोलन माता शूलिनी के आशीर्वाद से दिन प्रतिदिन प्रगति कर रहा है. सोलन हिमाचल प्रदेश राज्य में सोलन जिले का जिला मुख्यालय है, जिसका अस्तित्व 1 सितंबर 1972 को हुआ. हिमाचल प्रदेश की सबसे बड़ी नगर परिषद, यह राज्य की राजधानी शिमला से 46 किलोमीटर दक्षिण में 1,600 मीटर (5,200 फीट) की औसत ऊंचाई पर स्थित है. सोलन शहर को “भारत के मशरूम शहर” के नाम से भी जाना जाता है, सोलन में टमाटर के थोक उत्पादन के चलते सोलन को “रेड गोल्ड” का नाम भी दिया गया है.

shoolini temple
शूलिनी माता मंदिर

शूलिनी माता का इतिहास

शूलिनी माता का इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा है. माता शूलिनी बघाट रियासत के शासकों की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती है. वर्तमान में माता शूलिनी का मंदिर सोलन शहर के दक्षिण में शीली मार्ग पर स्थित है. शहर की अधिष्ठात्री देवी शूलिनी माता के नाम से ही इसका नाम सोलन पड़ा, जो देश की स्वतंत्रता से पूर्व बघाट रियासत की राजधानी के रूप में जाना जाता था और यहां का नाम बघाट भी इसलिए पड़ा कि रियासत में 12 स्थानों का नामकरण घाट के साथ था.

माना जाता है कि बघाट रियासत के शासकों ने यहां आने के साथ ही अपनी कुलदेवी शूलिनी माता की स्थापना सोलन गांव में की और इसे रियासत की राजधानी बनाया. बघाट रियासत के शासक अपनी कुल देवी को खुश करने और उस समय अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए मेले का आयोजन करते थे, तब से लेकर आज तक यहां की अधिष्ठात्री देवी के नाम से ही हर वर्ष जून माह के तीसरे सप्ताह में शूलिनी मेले का आयोजन किया जाता है.

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शूलिनी माता मंदिर

पढ़ेंः 5 जिंदगियां बचाने के लिए 500 KM दौड़ेगा सुनील, इस दिन से द ग्रेट सिरमौर रन-3 का होगा आगाज

मां प्रसन्न हो तो दूर होते हैं प्रकोप

मान्यता है कि माता शूलिनी के प्रसन्न होने पर क्षेत्र में किसी प्रकार की प्राकृतिक आपदा या महामारी का प्रकोप नहीं होता है, बल्कि सुख-समृद्धि व खुशहाली आती है. मेले की यह परम्परा आज भी कायम है. कहा जाता है कि माता शूलिनी त्रिशूल धारी है, इसीलिए सोलन शहर को किसी भी तरह की आपदा का सामना नहीं करना पड़ता है.

जो कोई भी यहां मनोकामना करता है उसकी मनोकामना पूरी होती है. माना जाता है कि मां शूलिनी की शरण में आज तक कोई भी आया वो वहीं का होकर रह गया. मान्यता ये भी है कि जो कोई भी नया कारोबार शुरू करता है, या नव दम्पति, या फिर कोई नेता चुनावों में खड़ा होता तो वो सबसे पहले माता का आशीर्वाद लेने आते, ताकि उनकी मनोकामना पूरी हो जाये. जब उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है तब नारियल चढ़ाकर भक्त माता का आशीर्वाद लेने आते हैं.

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शूलिनी माता मंदिर

माता शूलिनी सात बहनों में से एक है

माता शूलिनी देवी का मंदिर हिमाचल प्रदेश के सोलन शहर के दक्षिण में शीली मार्ग के किनारे विराजमान है. इस मंदिर में माता शूलिनी के अतिरिक्त शिरगुल देवता, माली देवता इत्यादि की प्रतिमाएं मौजूद हैं. जनश्रुति के अनुसार माता शूलिनी सात बहनों में से एक थी. अन्य बहनें हिंगलाज देवी, जेठी ज्वाला जी, लुगासना देवी, नैना देवी और तारा देवी के नाम से विख्यात हैं. माता शूलिनी देवी के नाम से सोलन शहर का नामकरण हुआ था.

मां शूलिनी के नाम से ही मनाया जाता है सोलन का राज्यस्तरीय मेला

बघाट रियासत के शासक अपनी कुल देवी को खुश करने के लिए मेले का आयोजन करते थे, तब से लेकर आज तक यहां की अधिष्ठात्री देवी के नाम से ही हर वर्ष जून माह के तीसरे सप्ताह में शूलिनी मेले का आयोजन किया जाता है. माता शूलिनी के नाम से सोलन शहर में हर साल मेले का आयोजन किया जाता है, जो कि राज्यस्तरीय मेले के रूप में मनाया जाता है.

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शूलिनी माता मंदिर

ये भी पढ़ेंः कैबिनेट मीटिंग में इन्वेस्टर्स मीट पर चर्चा, केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसलों पर जताया आभार

क्या कहते हैं मंदिर के पुजारी

मंदिर के पुजारी की माने तो उनका परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी करीब 200 सालों से माता शूलिनी देवी की पूजा अर्चना करता आ रहा है. उन्होंने बताया कि माता शूलिनी दुर्गा माता का ही अवतार है. माता का नाम शूलिनी इसलिए पड़ा, क्योंकि माता त्रिशूल धारी है. उन्होंने कहा कि माता शूलिनी सोलन में बघाट रियासतों के राजाओं के समय से बसी है. जब बघाट रियासत के राजा सोलन में बसे थे तो वो मां शूलिनी को अपने साथ ही सोलन लेकर आये थे. कहा जाता है कि माता शूलिनी बघाट रियासत के राजाओं की कुलदेवी थी और उनके हर कामों को पूर्ण करने वाली थी. तब से लेकर आज तक मां शूलिनी की सोलन शहर पर आपार कृपा है.

शूलिनी माता मंदिर

क्या कहना है स्थानीय लोगों का

वहीं स्थानीय निवासी और दुकानदार की माने तो वो बचपन से ही मां शूलिनी का गुणगान देखते आये हैं, चाहे वो झांकी के माध्यम से हो या दन्तकथाओं के माध्यम से. उन्होंने बताया कि मां शूलिनी सबकी मनोकामना पूरी करती है, इसलिए हर कोई मां का आशीर्वाद लेने जरूर आता है.
ये भी पढ़ेंः गर्मी बढ़ते ही आग से दहकने लगे जंगल, लाखों की वन संपदा जलकर राख

सोलनः सोलन एक ऐसा शहर जो शूलिनी माता की गोद मे बसा है. पूरी दुनिया में अपनी छाप छोड़ चुका सोलन माता शूलिनी के आशीर्वाद से दिन प्रतिदिन प्रगति कर रहा है. सोलन हिमाचल प्रदेश राज्य में सोलन जिले का जिला मुख्यालय है, जिसका अस्तित्व 1 सितंबर 1972 को हुआ. हिमाचल प्रदेश की सबसे बड़ी नगर परिषद, यह राज्य की राजधानी शिमला से 46 किलोमीटर दक्षिण में 1,600 मीटर (5,200 फीट) की औसत ऊंचाई पर स्थित है. सोलन शहर को “भारत के मशरूम शहर” के नाम से भी जाना जाता है, सोलन में टमाटर के थोक उत्पादन के चलते सोलन को “रेड गोल्ड” का नाम भी दिया गया है.

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शूलिनी माता मंदिर

शूलिनी माता का इतिहास

शूलिनी माता का इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा है. माता शूलिनी बघाट रियासत के शासकों की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती है. वर्तमान में माता शूलिनी का मंदिर सोलन शहर के दक्षिण में शीली मार्ग पर स्थित है. शहर की अधिष्ठात्री देवी शूलिनी माता के नाम से ही इसका नाम सोलन पड़ा, जो देश की स्वतंत्रता से पूर्व बघाट रियासत की राजधानी के रूप में जाना जाता था और यहां का नाम बघाट भी इसलिए पड़ा कि रियासत में 12 स्थानों का नामकरण घाट के साथ था.

माना जाता है कि बघाट रियासत के शासकों ने यहां आने के साथ ही अपनी कुलदेवी शूलिनी माता की स्थापना सोलन गांव में की और इसे रियासत की राजधानी बनाया. बघाट रियासत के शासक अपनी कुल देवी को खुश करने और उस समय अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए मेले का आयोजन करते थे, तब से लेकर आज तक यहां की अधिष्ठात्री देवी के नाम से ही हर वर्ष जून माह के तीसरे सप्ताह में शूलिनी मेले का आयोजन किया जाता है.

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शूलिनी माता मंदिर

पढ़ेंः 5 जिंदगियां बचाने के लिए 500 KM दौड़ेगा सुनील, इस दिन से द ग्रेट सिरमौर रन-3 का होगा आगाज

मां प्रसन्न हो तो दूर होते हैं प्रकोप

मान्यता है कि माता शूलिनी के प्रसन्न होने पर क्षेत्र में किसी प्रकार की प्राकृतिक आपदा या महामारी का प्रकोप नहीं होता है, बल्कि सुख-समृद्धि व खुशहाली आती है. मेले की यह परम्परा आज भी कायम है. कहा जाता है कि माता शूलिनी त्रिशूल धारी है, इसीलिए सोलन शहर को किसी भी तरह की आपदा का सामना नहीं करना पड़ता है.

जो कोई भी यहां मनोकामना करता है उसकी मनोकामना पूरी होती है. माना जाता है कि मां शूलिनी की शरण में आज तक कोई भी आया वो वहीं का होकर रह गया. मान्यता ये भी है कि जो कोई भी नया कारोबार शुरू करता है, या नव दम्पति, या फिर कोई नेता चुनावों में खड़ा होता तो वो सबसे पहले माता का आशीर्वाद लेने आते, ताकि उनकी मनोकामना पूरी हो जाये. जब उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है तब नारियल चढ़ाकर भक्त माता का आशीर्वाद लेने आते हैं.

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शूलिनी माता मंदिर

माता शूलिनी सात बहनों में से एक है

माता शूलिनी देवी का मंदिर हिमाचल प्रदेश के सोलन शहर के दक्षिण में शीली मार्ग के किनारे विराजमान है. इस मंदिर में माता शूलिनी के अतिरिक्त शिरगुल देवता, माली देवता इत्यादि की प्रतिमाएं मौजूद हैं. जनश्रुति के अनुसार माता शूलिनी सात बहनों में से एक थी. अन्य बहनें हिंगलाज देवी, जेठी ज्वाला जी, लुगासना देवी, नैना देवी और तारा देवी के नाम से विख्यात हैं. माता शूलिनी देवी के नाम से सोलन शहर का नामकरण हुआ था.

मां शूलिनी के नाम से ही मनाया जाता है सोलन का राज्यस्तरीय मेला

बघाट रियासत के शासक अपनी कुल देवी को खुश करने के लिए मेले का आयोजन करते थे, तब से लेकर आज तक यहां की अधिष्ठात्री देवी के नाम से ही हर वर्ष जून माह के तीसरे सप्ताह में शूलिनी मेले का आयोजन किया जाता है. माता शूलिनी के नाम से सोलन शहर में हर साल मेले का आयोजन किया जाता है, जो कि राज्यस्तरीय मेले के रूप में मनाया जाता है.

shoolini temple
शूलिनी माता मंदिर

ये भी पढ़ेंः कैबिनेट मीटिंग में इन्वेस्टर्स मीट पर चर्चा, केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसलों पर जताया आभार

क्या कहते हैं मंदिर के पुजारी

मंदिर के पुजारी की माने तो उनका परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी करीब 200 सालों से माता शूलिनी देवी की पूजा अर्चना करता आ रहा है. उन्होंने बताया कि माता शूलिनी दुर्गा माता का ही अवतार है. माता का नाम शूलिनी इसलिए पड़ा, क्योंकि माता त्रिशूल धारी है. उन्होंने कहा कि माता शूलिनी सोलन में बघाट रियासतों के राजाओं के समय से बसी है. जब बघाट रियासत के राजा सोलन में बसे थे तो वो मां शूलिनी को अपने साथ ही सोलन लेकर आये थे. कहा जाता है कि माता शूलिनी बघाट रियासत के राजाओं की कुलदेवी थी और उनके हर कामों को पूर्ण करने वाली थी. तब से लेकर आज तक मां शूलिनी की सोलन शहर पर आपार कृपा है.

शूलिनी माता मंदिर

क्या कहना है स्थानीय लोगों का

वहीं स्थानीय निवासी और दुकानदार की माने तो वो बचपन से ही मां शूलिनी का गुणगान देखते आये हैं, चाहे वो झांकी के माध्यम से हो या दन्तकथाओं के माध्यम से. उन्होंने बताया कि मां शूलिनी सबकी मनोकामना पूरी करती है, इसलिए हर कोई मां का आशीर्वाद लेने जरूर आता है.
ये भी पढ़ेंः गर्मी बढ़ते ही आग से दहकने लगे जंगल, लाखों की वन संपदा जलकर राख


---------- Forwarded message ---------
From: Ricky Yogesh <rickyyogesh000@gmail.com>
Date: Sat, Jun 1, 2019, 3:34 PM
Subject: सुख समृद्धि और खुशहाली प्रदान करने वाली माँ : शूलिनी देवी
To: <rajneeshkumar@etvbharat.com>


एक ऐसा शहर जिसका नामकरण किसी देवी के नाम से हुआ हो:
एक ऐसा मंदिर जहां हर मनोकामना पूरी होती है, और इस मंदिर के आस पास सोलन शहर बसा है।

माना जाता है कि माँ शूलिनी की ऐसी कृपा है जो यहां जो आया वो यहीं का होकर रह गया,सोलन शहर चंडीगढ़ और शिमला के बीच कालका-शिमला राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है

लोकेशन:-सोलन:-योगेश शर्मा


सोलन एक ऐसा शहर जो शूलिनी माँ की गोद मे बसा है, पूरी दुनिया मे अपनी छाप छोड़ चुका सोलन माँ शूलिनी के आशीर्वाद से दिन प्रतिदिन प्रगति कर रहा है।

सोलन शहर
सोलन हिमाचल प्रदेश राज्य में सोलन जिले का जिला मुख्यालय है जिसका अस्तित्व 1 सितंबर 1 9 72 को हुआ,हिमाचल प्रदेश की सबसे बड़ी नगर परिषद, यह राज्य की राजधानी शिमला से 46 किलोमीटर दक्षिण में  1,600 मीटर (5,200 फीट) की औसत ऊंचाई पर स्थित है।सोलन शहर को “भारत केे मशरूम शहर”के नाम से भी जाना जाता है, सोलन में टमाटर के थोक उत्पादन के चलते सोलन को “रेड गोल्ड” का नाम भी दिया गया है।


जिस माँ की कृपा से सोलन आज विश्व भर में विख्यात हुआ है वो है माँ शूलिनी:-सुख समृद्धि और खुशहाली प्रदान करने वाली माँ : शूलिनी देवी



शूलिनी माता का इतिहास

शूलिनी माता का इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा है। माता शूलिनी बघाट रियासत के शासकों की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती है। वर्तमान में माता शूलिनी का मंदिर सोलन शहर के दक्षिण में शीली मार्ग पर स्थित है। शहर की अधिष्ठात्री देवी शूलिनी माता के नाम से ही इसका नाम सोलन पड़ा, जो देश की स्वतंत्रता से पूर्व बघाट रियासत की राजधानी के रूप में जाना जाता था और यहां का नाम बघाट भी इसलिए पड़ा कि रियासत में 12 स्थानों का नामकरण घाट के साथ था। माना जाता है कि बघाट रियासत के शासकों ने यहां आने के साथ ही अपनी कुलदेवी शूलिनी माता की स्थापना सोलन गांव में की और इसे रियासत की राजधानी बनाया। बघाट रियासत के शासक अपनी कुल देवी को खुश करने और उस समय अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए मेले का आयोजन करते थे, तब से लेकर आज तक यहां की अधिष्ठात्री देवी के नाम से ही हर वर्ष जून माह के तीसरे सप्ताह में शूलिनी मेले का आयोजन किया जाता है।

माँ दुर्गा सप्तशती में भी माँ शूलिनी का वर्णन है



मां प्रसन्न हो तो दूर होते हैं प्रकोप
मान्यता है कि माता शूलिनी के प्रसन्न होने पर क्षेत्र में किसी प्रकार की प्राकृतिक आपदा या महामारी का प्रकोप नहीं होता है, बल्कि सुख-समृद्धि व खुशहाली आती है। मेले की यह परंपरा आज भी कायम है। कहा जाता है कि माता शूलिनी त्रिशूल धारी है, इसीलिए सोलन शहर को किसी भी तरह की आपदा का सामना नही करना पड़ता है।



क्या है मान्यता
मान्यता है कि माता शूलिनी के प्रसन्न होने पर क्षेत्र में किसी प्रकार की प्राकृतिक आपदा या महामारी का प्रकोप नहीं होता है, बल्कि सुख-समृद्धि व खुशहाली आती है। मेले की यह परंपरा आज भी कायम है।जो कोई भी यहां मनोकामना करता है उसकी मनोकामना पूरी होती है,माना जाता है कि माँ शूलिनी की शरण मे आजतक कोई भी आया वो वहीं का होकर रह गया,मान्यता ये भी है की जो कोई भी नया कारोबार शुरू करता है, या नव दम्पति ,या फिर कोई नेता चुनावों में खड़ा होता तो तो वो सबसे पहले माता का आशीर्वाद लेने आते ताकि उनकी मनोकामना पूरी हो जाये, जब उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है तब नारियल चढ़ाकर भक्त माँ का आशीर्वाद लेने आते है।


माता शूलिनी सात बहनों में से एक है:-
कौन थी सात बहने :-
माता शूलिनी देवी का मंदिर हिमाचल प्रदेश के सोलन शहर के दक्षिण में शीली मार्ग के किनारे विराजमान है. इस मंदिर में माता शूलिनी के अतिरिक्त शिरगुल देवता, माली देवता इत्यादि की प्रतिमाएं मौजूद हैं. इस मंदिर में माता शूलिनी के अतिरिक्त शिरगुल देवता, माली देवता इत्यादि की प्रतिमाएं मौजूद हैं. जनश्रुति के अनुसार माता शूलिनी सात बहनों में से एक थी. अन्य बहनें हिंगलाज देवी, जेठी ज्वाला जी, लुगासना देवी, नैना देवी और तारा देवी के नाम से विख्यात हैं. माता शूलिनी देवी के नाम से सोलन शहर का नामकरण हुआ था।



माँ शूलिनी के नाम से ही मनाया जाता है सोलन का राज्यस्तरीय मेला
बघाट रियासत के शासक अपनी कुल देवी को खुश करने के लिए मेले का आयोजन करते थे, तब से लेकर आज तक यहां की अधिष्ठात्री देवी के नाम से ही हर वर्ष जून माह के तीसरे सप्ताह में शूलिनी मेले का आयोजन किया जाता है
माँ शूलिनी के नाम से सोलन शहर में हर साल मेले का आयोजन किया जाता है कि राज्यस्तरीय मेले के रूप में मनाया जाता है



क्या कहना है मंदिर के पुजारी राम स्वरूप का
वहीं मंदिर के पुजारी की माने उनका परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी करीब 200 सालों से माँ शूलिनी देवी की पूजा अर्चना करता आ रहा है, उन्होंने बताया की माता शूलिनी दुर्गा माता का ही अवतार है, माँ का नाम शूलीनी इसलिए पड़ा क्योंकि माता त्रिशूल धारी है,
उन्होंने बताया कि माँ शूलिनी सोलन में बघाट रियासतों के राजाओं के समय से बसी है, जब बघाट रियासत के राजा सोलन में बसे थे तो वो माँ शूलिनी को अपने साथ ही सोलन लेकर आये थे, कहा जाता है कि माँ शूलिनी बघाट रियासत के राजाओं की कुलदेवी थी, और उनके हर कामों को पूर्ण करने वाली थी। तब से लेकर आजतक माँ शूलिनी की सोलन शहर पर आपार कृपा है।


क्या कहना है स्थानीय लोगों का
वहीं स्थानीय निवासी और दुकानदार की माने तो वो बचपन से ही माँ शूलिनी का गुणगान देखते आये है, चाहे वो झांकी के माध्यम से हो या दन्तकथाओं के माध्यम से।उन्होंने बताया कि माँ शूलिनी सबकी मनोकामना पूरी करती है इसलिए हर कोई माँ का आशीर्वाद लेने जरूर आता है, चाहे वो नया कारोबार शुरू करने वाला हो, या फिर नव दम्पति जोड़ा हो, या फिर कोई नेता हर कोई माँ का आशीर्वाद लेने जरूर आता है।

बाइट:-पुजारी मंदिर राम स्वरूप, 
 स्थानीय निवासी और दुकानदार:-परमेन्द्र सिंह
स्पॉट वीडियो:-मंदिर,सोलन शहर
स्पॉट फोटो:- ओल्ड मन्दिर शूलिनी, न्यू मंदिर शूलिनी

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