सोलनः सोलन एक ऐसा शहर जो शूलिनी माता की गोद मे बसा है. पूरी दुनिया में अपनी छाप छोड़ चुका सोलन माता शूलिनी के आशीर्वाद से दिन प्रतिदिन प्रगति कर रहा है. सोलन हिमाचल प्रदेश राज्य में सोलन जिले का जिला मुख्यालय है, जिसका अस्तित्व 1 सितंबर 1972 को हुआ. हिमाचल प्रदेश की सबसे बड़ी नगर परिषद, यह राज्य की राजधानी शिमला से 46 किलोमीटर दक्षिण में 1,600 मीटर (5,200 फीट) की औसत ऊंचाई पर स्थित है. सोलन शहर को “भारत के मशरूम शहर” के नाम से भी जाना जाता है, सोलन में टमाटर के थोक उत्पादन के चलते सोलन को “रेड गोल्ड” का नाम भी दिया गया है.
शूलिनी माता का इतिहास
शूलिनी माता का इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा है. माता शूलिनी बघाट रियासत के शासकों की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती है. वर्तमान में माता शूलिनी का मंदिर सोलन शहर के दक्षिण में शीली मार्ग पर स्थित है. शहर की अधिष्ठात्री देवी शूलिनी माता के नाम से ही इसका नाम सोलन पड़ा, जो देश की स्वतंत्रता से पूर्व बघाट रियासत की राजधानी के रूप में जाना जाता था और यहां का नाम बघाट भी इसलिए पड़ा कि रियासत में 12 स्थानों का नामकरण घाट के साथ था.
माना जाता है कि बघाट रियासत के शासकों ने यहां आने के साथ ही अपनी कुलदेवी शूलिनी माता की स्थापना सोलन गांव में की और इसे रियासत की राजधानी बनाया. बघाट रियासत के शासक अपनी कुल देवी को खुश करने और उस समय अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए मेले का आयोजन करते थे, तब से लेकर आज तक यहां की अधिष्ठात्री देवी के नाम से ही हर वर्ष जून माह के तीसरे सप्ताह में शूलिनी मेले का आयोजन किया जाता है.
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मां प्रसन्न हो तो दूर होते हैं प्रकोप
मान्यता है कि माता शूलिनी के प्रसन्न होने पर क्षेत्र में किसी प्रकार की प्राकृतिक आपदा या महामारी का प्रकोप नहीं होता है, बल्कि सुख-समृद्धि व खुशहाली आती है. मेले की यह परम्परा आज भी कायम है. कहा जाता है कि माता शूलिनी त्रिशूल धारी है, इसीलिए सोलन शहर को किसी भी तरह की आपदा का सामना नहीं करना पड़ता है.
जो कोई भी यहां मनोकामना करता है उसकी मनोकामना पूरी होती है. माना जाता है कि मां शूलिनी की शरण में आज तक कोई भी आया वो वहीं का होकर रह गया. मान्यता ये भी है कि जो कोई भी नया कारोबार शुरू करता है, या नव दम्पति, या फिर कोई नेता चुनावों में खड़ा होता तो वो सबसे पहले माता का आशीर्वाद लेने आते, ताकि उनकी मनोकामना पूरी हो जाये. जब उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है तब नारियल चढ़ाकर भक्त माता का आशीर्वाद लेने आते हैं.
माता शूलिनी सात बहनों में से एक है
माता शूलिनी देवी का मंदिर हिमाचल प्रदेश के सोलन शहर के दक्षिण में शीली मार्ग के किनारे विराजमान है. इस मंदिर में माता शूलिनी के अतिरिक्त शिरगुल देवता, माली देवता इत्यादि की प्रतिमाएं मौजूद हैं. जनश्रुति के अनुसार माता शूलिनी सात बहनों में से एक थी. अन्य बहनें हिंगलाज देवी, जेठी ज्वाला जी, लुगासना देवी, नैना देवी और तारा देवी के नाम से विख्यात हैं. माता शूलिनी देवी के नाम से सोलन शहर का नामकरण हुआ था.
मां शूलिनी के नाम से ही मनाया जाता है सोलन का राज्यस्तरीय मेला
बघाट रियासत के शासक अपनी कुल देवी को खुश करने के लिए मेले का आयोजन करते थे, तब से लेकर आज तक यहां की अधिष्ठात्री देवी के नाम से ही हर वर्ष जून माह के तीसरे सप्ताह में शूलिनी मेले का आयोजन किया जाता है. माता शूलिनी के नाम से सोलन शहर में हर साल मेले का आयोजन किया जाता है, जो कि राज्यस्तरीय मेले के रूप में मनाया जाता है.
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क्या कहते हैं मंदिर के पुजारी
मंदिर के पुजारी की माने तो उनका परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी करीब 200 सालों से माता शूलिनी देवी की पूजा अर्चना करता आ रहा है. उन्होंने बताया कि माता शूलिनी दुर्गा माता का ही अवतार है. माता का नाम शूलिनी इसलिए पड़ा, क्योंकि माता त्रिशूल धारी है. उन्होंने कहा कि माता शूलिनी सोलन में बघाट रियासतों के राजाओं के समय से बसी है. जब बघाट रियासत के राजा सोलन में बसे थे तो वो मां शूलिनी को अपने साथ ही सोलन लेकर आये थे. कहा जाता है कि माता शूलिनी बघाट रियासत के राजाओं की कुलदेवी थी और उनके हर कामों को पूर्ण करने वाली थी. तब से लेकर आज तक मां शूलिनी की सोलन शहर पर आपार कृपा है.
क्या कहना है स्थानीय लोगों का
वहीं स्थानीय निवासी और दुकानदार की माने तो वो बचपन से ही मां शूलिनी का गुणगान देखते आये हैं, चाहे वो झांकी के माध्यम से हो या दन्तकथाओं के माध्यम से. उन्होंने बताया कि मां शूलिनी सबकी मनोकामना पूरी करती है, इसलिए हर कोई मां का आशीर्वाद लेने जरूर आता है.
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