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सोलन में ऑटो चालकों का हाल बेहाल, कोरोना कर्फ्यू ने एक बार फिर रोकी पहियों की रफ्तार

ऑटो रिक्शा चालकों पर रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो चुका है. धीरे-धीरे प्रदेश में ऑटो रिक्शा चालकों की आर्थिक स्थिति पटरी पर लौटी रही थी लेकिन प्रदेश सरकार द्वारा फिर से कोरोना की चेन को तोड़ने के लिए कर्फ़्यू लगा दिया गया. ऐसे में ऑटो चालकों का घर चलाना भी मुश्किल हो चुका है. पिछले वर्ष भी ऑटो चालक लॉकडाउन में करीब 84 दिनों के बाद सड़कों पर उतरे थे. उससे नुकसान उभरना शुरू हुआ था लेकिन फिर पाबंदियां लग गई. ऑटो चालकों की आर्थिक स्थिति बिल्कुल कमजोर हो चुकी है.

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Published : Jun 2, 2021, 10:09 PM IST

सोलन: ऑटो रिक्शा चालकों पर कोरोना की दोहरी मार पड़ी है. ऑटो रिक्शा किसी भी शहर के लोगों की यात्रा का सामान्य साधन है. यह सुविधाजनक भी हैं और ज्यादातर उन रास्तों को कवर करते हैं जहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं पहुंच पाता. सोलन शहर में भी लोग इधर-उधर जाने के लिए ऑटो रिक्शा का इस्तेमाल करते हैं. कोरोना की दूसरी लहर के चलते ऑटो चालकों पर दोहरी आर्थिक मार पड़ रही है.

ऑटो चालकों के सामने आर्थिक संकट

ऑटो रिक्शा चालकों पर रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो चुका है. धीरे-धीरे प्रदेश में ऑटो रिक्शा चालकों की आर्थिक स्थिति पटरी पर लौटी रही थी लेकिन प्रदेश सरकार द्वारा फिर से कोरोना की चेन को तोड़ने के लिए कर्फ़्यू लगा दिया गया. ऐसे में ऑटो चालकों का घर चलाना भी मुश्किल हो चुका है. पिछले वर्ष भी ऑटो चालक लॉकडाउन में करीब 84 दिनों के बाद सड़कों पर उतरे थे. उससे नुकसान उभरना शुरू हुआ था लेकिन फिर पाबंदियां लग गई. ऑटो चालकों की आर्थिक स्थिति बिल्कुल कमजोर हो चुकी है.

वीडियो.

कोरोना कर्फ्यू ने फिर बढ़ाई मुश्किलें

शूलिनी ऑटो यूनियन के महासचिव वेद प्रकाश का कहना है कि पिछले साल जून में जब ऑटो चलने शुरू हुए थे तो धीरे-धीरे पटरी पर कामकाज लौटना शुरू हो चुका था. इस साल जैसे ही सरकार ने मई महीने में लॉकडाउन और कर्फ्यू लगाने की बात कही, तब से घर का खर्च चलाना मुश्किल हो चुका है. बैंक की किस्तें, बच्चों की फीस और परिवार चलाने में ऑटो चालकों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि कुछ लोग गांव से आकर यहां पर ऑटो चला कर अपने घर का गुजर-बसर करते हैं लेकिन कोरोना के लिए लगाए गए कर्फ्यू के कारण सब कुछ बंद पड़ा है. ऐसे में ऑटो चालक आर्थिक मंदी का सामना कर रहे हैं.

ऑटो चालकों की ओर ध्यान देने की मांग

हिमाचल ऑटो फेडरेशन के संगठन सचिव मोहन लाल का कहना है कि वह लोग ऑटो चलाकर ही अपने परिवार का गुजर-बसर करते हैं. पिछले साल भी लॉकडाउन के बाद उन्हें शहर में ऑटो चलाने की परमिशन प्रशासन द्वारा मिली थी. धीरे-धीरे व्यवसाय भी रफ्तार पकड़ने लगा था लेकिन जब से कर्फ्यू लगा है तब से घर चलाना मुश्किल हो चुका है. उनका कहना है कि खाद्य पदार्थ महंगे हो चुके हैं, पेट्रोल-डीजल के दाम दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं, ऐसे में खर्चे निकाल पाना बहुत मुश्किल हो चुका है. उन्होंने सरकार से मांग की है कि ऑटो चालकों की ओर ध्यान दिया जाए ताकि उनकी भी आर्थिक स्थिति मजबूत हो सके.

दिल्ली की तर्ज पर करें ऑटो चालकों की मदद

हिमाचल ऑटो फेडरेशन के प्रधान दिनेश का कहना है कि पिछले साल लॉकडाउन में 78 दिनों तक बेरोजगार रहे थे. लॉकडाउन के पहले से ही ऑटो चालक घाटे में चल रहे थे, धीरे-धीरे व्यवसाय आगे बढ़ रहा था लेकिन फिर वही समय लौट आया जब ऑटो चालकों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि पूरे प्रदेश में 4,350 ऑटो चलते हैं. इन दिनों सभी ऑटो चालकों को खाने के लाले पड़ चुके हैं. दिनेश ठाकुर का कहना है कि बंद सिर्फ व्यवसाय हुआ है, खर्चे वैसे ही हैं, चाहे वह घर का खर्च हो, बच्चों की फीस हो या फिर बैंकों की किस्तें. इन सबका खर्च उन्हें उठाना पड़ रहा है. उन्होंने सरकार से मांग की है कि दिल्ली की तर्ज पर उन्हें भी 2 महीने तक 5-5 हजार रुपए दिए जाएं और ऑटो चालकों को राशन मुहैया करवाया जाए.

ये भी पढ़ें: 'बीजेपी कार्यकर्ता किसी भी समय चुनावों के लिए तैयार, विकास कार्यों पर लड़ेंगे चुनाव'

सोलन: ऑटो रिक्शा चालकों पर कोरोना की दोहरी मार पड़ी है. ऑटो रिक्शा किसी भी शहर के लोगों की यात्रा का सामान्य साधन है. यह सुविधाजनक भी हैं और ज्यादातर उन रास्तों को कवर करते हैं जहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं पहुंच पाता. सोलन शहर में भी लोग इधर-उधर जाने के लिए ऑटो रिक्शा का इस्तेमाल करते हैं. कोरोना की दूसरी लहर के चलते ऑटो चालकों पर दोहरी आर्थिक मार पड़ रही है.

ऑटो चालकों के सामने आर्थिक संकट

ऑटो रिक्शा चालकों पर रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो चुका है. धीरे-धीरे प्रदेश में ऑटो रिक्शा चालकों की आर्थिक स्थिति पटरी पर लौटी रही थी लेकिन प्रदेश सरकार द्वारा फिर से कोरोना की चेन को तोड़ने के लिए कर्फ़्यू लगा दिया गया. ऐसे में ऑटो चालकों का घर चलाना भी मुश्किल हो चुका है. पिछले वर्ष भी ऑटो चालक लॉकडाउन में करीब 84 दिनों के बाद सड़कों पर उतरे थे. उससे नुकसान उभरना शुरू हुआ था लेकिन फिर पाबंदियां लग गई. ऑटो चालकों की आर्थिक स्थिति बिल्कुल कमजोर हो चुकी है.

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कोरोना कर्फ्यू ने फिर बढ़ाई मुश्किलें

शूलिनी ऑटो यूनियन के महासचिव वेद प्रकाश का कहना है कि पिछले साल जून में जब ऑटो चलने शुरू हुए थे तो धीरे-धीरे पटरी पर कामकाज लौटना शुरू हो चुका था. इस साल जैसे ही सरकार ने मई महीने में लॉकडाउन और कर्फ्यू लगाने की बात कही, तब से घर का खर्च चलाना मुश्किल हो चुका है. बैंक की किस्तें, बच्चों की फीस और परिवार चलाने में ऑटो चालकों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि कुछ लोग गांव से आकर यहां पर ऑटो चला कर अपने घर का गुजर-बसर करते हैं लेकिन कोरोना के लिए लगाए गए कर्फ्यू के कारण सब कुछ बंद पड़ा है. ऐसे में ऑटो चालक आर्थिक मंदी का सामना कर रहे हैं.

ऑटो चालकों की ओर ध्यान देने की मांग

हिमाचल ऑटो फेडरेशन के संगठन सचिव मोहन लाल का कहना है कि वह लोग ऑटो चलाकर ही अपने परिवार का गुजर-बसर करते हैं. पिछले साल भी लॉकडाउन के बाद उन्हें शहर में ऑटो चलाने की परमिशन प्रशासन द्वारा मिली थी. धीरे-धीरे व्यवसाय भी रफ्तार पकड़ने लगा था लेकिन जब से कर्फ्यू लगा है तब से घर चलाना मुश्किल हो चुका है. उनका कहना है कि खाद्य पदार्थ महंगे हो चुके हैं, पेट्रोल-डीजल के दाम दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं, ऐसे में खर्चे निकाल पाना बहुत मुश्किल हो चुका है. उन्होंने सरकार से मांग की है कि ऑटो चालकों की ओर ध्यान दिया जाए ताकि उनकी भी आर्थिक स्थिति मजबूत हो सके.

दिल्ली की तर्ज पर करें ऑटो चालकों की मदद

हिमाचल ऑटो फेडरेशन के प्रधान दिनेश का कहना है कि पिछले साल लॉकडाउन में 78 दिनों तक बेरोजगार रहे थे. लॉकडाउन के पहले से ही ऑटो चालक घाटे में चल रहे थे, धीरे-धीरे व्यवसाय आगे बढ़ रहा था लेकिन फिर वही समय लौट आया जब ऑटो चालकों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि पूरे प्रदेश में 4,350 ऑटो चलते हैं. इन दिनों सभी ऑटो चालकों को खाने के लाले पड़ चुके हैं. दिनेश ठाकुर का कहना है कि बंद सिर्फ व्यवसाय हुआ है, खर्चे वैसे ही हैं, चाहे वह घर का खर्च हो, बच्चों की फीस हो या फिर बैंकों की किस्तें. इन सबका खर्च उन्हें उठाना पड़ रहा है. उन्होंने सरकार से मांग की है कि दिल्ली की तर्ज पर उन्हें भी 2 महीने तक 5-5 हजार रुपए दिए जाएं और ऑटो चालकों को राशन मुहैया करवाया जाए.

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