सोलनः देशभर को मशरुम का स्वाद चखाने वाली मशरूम सिटी सोलन के खुम्भ अनुसंधान केंद्र में हर साल मशरूम की नई प्रजाति देखने को मिलती है. आज तक केवल प्राकृतिक रुप से जंगलों में पाई जाने वाली गुच्छी को अब खुम्भ अनुसंधान निदेशालय सोलन ने कृत्रिम रुप से नियंत्रित परिस्थितियों में उगाने में सफलता हासिल की है.
साल 1983 से ही चल रहा गुच्छी मशरूम पर कार्य
भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र के निदेशालय की स्थापना 1983 में हुई थी. तब से ही गुच्छी के कृत्रिम उत्पादन को लेकर कोशिशें की जा रही थी, लेकिन इतने सालों तक असफलता मिलने के बाद खुम्भ अनुसन्धान निदेशालय के वैज्ञानिकों को सफलता हासिल हुई है. इससे भारत भी उन देशों की सूची में शामिल हो गया है, जो कृत्रिम तौर पर गुच्छी को उगाने का दावा करते हैं.
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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ा भारत का मान
इससे पहले चीन, अमेरिका और फ्रांस जैसे देश गुच्छी को कृत्रिम रूप में उगाने का दावा करते थे. देव भूमि हिमाचल के वैज्ञानिकों की मेहनत से गुच्छी उत्पादन के शोध में भारत का मान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ा है. साथ ही वह मिथ्या भी गलत साबित हो गई है, जिसमें केवल आसमानी बिजली कड़कने के दौरान ही जंगलों में गुच्छी प्राकृतिक रुप से निकलने की बात की जाती रही है.
खुम्भ अनुसंधान निदेशालय के प्रयासों को जिस तरह से सफलता हासिल हुई है, उससे यही लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब किसान भी गुच्छी मशरूम को अपने खेतों में उगा सकेंगे. साल 2019 में खुम्भ अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. वी.पी. शर्मा ने गुच्छी उत्पादन शोध के लिए डॉ. अनिल कुमार को इसकी जिम्मेदारी दी. इसके बाद प्रोजेक्ट पर कार्य शुरू किया गया.
निदेशालय ने कृत्रिम रुप से तैयार की गुच्छी
खुम्भ अनुसंधान निदेशालय ने ठीक उसी तरह नियंत्रित परिस्थितियों में गुच्छी मशरूम को तैयार किया, जिस तरह गुच्छी कुदरती तौर पर तैयार होती है. बेजोड़ स्वाद के साथ कई औषधीय गुणों से भरपूर गुच्छी मशरूम लोगों के लिए बेहद फायदेमंद है.
शोध कार्य में करना पड़ा मुश्किलों का सामना
शोधकर्ता डॉ. अनिल ने बताया कि उन्होंने साल 2017 में इस मशरूम पर कार्य करना शुरू किया था. उन्होंने कहा कि शुरुआत दिनों में उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा, क्योंकि भारत में काफी समय से इस मशरूम को लेकर शोध चल रहा था जिसमें सफलता मिलती नजर नहीं आ रही थी. लोग मानते थे कि इस मशरूम को उगा पाना बहुत मुश्किल है. उन्होंने कहा कि शुरुआती दिनों में इसके लिए जंगल से नमूने एकत्रित किए गए. साल 2019 में इसकी पहली बार इसकी फ्रूट बॉडी मिली. इसके बाद निरंतर इस मशरूम को लेकर सफलता मिल रही. उन्होंने कहा कि अन्य मशरूम से इस मशरूम की खेती अलग है. इसके लिए एक आर्टिफिशियल स्ट्रक्चर तैयार किया गया. इसके बाद गुच्छी को लेकर सफलता मिली. शोधकर्ता डॉ. अनिल का कहना है कि जल्द ही गुच्छी को उगाने का प्रशिक्षण किसानों को दिया जाएगा.
कई बीमारियों पर असरदार गुच्छी
गुच्छी का सेवन सब्जी के रूप में किया जाता है. इसमें बी-कॉम्प्लेक्स विटामिन, विटामिन-डी और कई जरूरी एमीनो एसिड होते हैं. इसे खाने से दिल का दौरा पड़ने की संभावना कम हो जाती है. गुच्छी की मांग सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि बाहरी देशों में भी है. गुच्छी 30 हजार रुपये प्रति किलो तक बाजारों में मिलती है. बताया जाता है कि पीएम मोदी भी गुच्छी के शौकीन हैं.
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