नाहन: वेलेंटाइन डे यानि प्रेम का दिन, इस दिन या हफ्ते ने 21वीं सदी के कैलेंडर में प्यार को एक दिन या हफ्ते में बांध दिया है. वेलेंटाइन वीक या वेलेंटाइन डे का चलन पश्चिमी देशों से होता हुआ भारत तक भी काफी पहले पहुंच चुका है. इन दिनों बाजार प्यार के त्योहार के नाम पर फूल, चॉकलेट और गिफ्ट्स से अटा रहता है. लेकिन इन सबके बीच प्यार के किस्से और प्रेम कहानियों में आज भी लैला मजनू, हीर रांझा या फिर ताजमहल की बात होती है. फिल्मी पर्दे से लेकर किताबों की हकीकत तक में कई प्रेम कहानियां इस वेलेंटाइन डे के मौके पर गेस्ट अपीयरेंस की तरह याद की जाती हैं. लेकिन कुछ प्रेम कहानियां ऐसी हैं जिन्हें वो मुकाम हासिल नहीं हुआ कि प्यार के कसमें खाते हुए उनका जिक्र हो. ऐसी ही एक कहानी है एक राजा की, जिसने प्यार की एक नई परिभाषा लिख दी.
एक था राजा, एक थी रानी- हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों में एक राजा और रानी की मोहब्बत की ऐसी एक अमर और अद्भुत प्रेम कहानी दर्ज है, जिसके बारे में बहुत कम ही लोग जानते है. वेलेंटाइन डे पर ईटीवी भारत सिरमौर रियासत के इतिहास के पन्नों में दर्ज एक राजा और रानी की प्रेम कहानी से आपको रू-ब-रू करवाएगा. जो आज भले आज किस्सों का हिस्सा है लेकिन उसके निशान आज भी मौजूद हैं. ये कहानी है सिरमौर के महाराजा शमशेर प्रकाश की, जिनके प्यार की मिसाल आज सिरमौर जिले के नाहन शहर में बेजुबान खड़ी है. महाराजा शमशेर प्रकाश सिरमौर रियासत के 44वें राजा थे उन्होंने 1857 से 1898 तक राज किया था.
राजा की शादी और प्यार- 18वीं सदी का ये वो दौर था जब 12 या 13 साल का राजकुमार सिरमौर की रियासत के राजा बन गया. शाही परिवार के सदस्य कंवर अजय बहादुर बताते हैं कि उस वक्त बाल अवस्था में ही उनकी शादी क्युंथल (जुन्गा) की दो राजकुमारियों के साथ हुई. शादी के 2 साल बाद ही छोटी रानी का बीमारी के चलते निधन हो गया. इस बीच बड़ी रानी से राजा शमशेर प्रकाश को लगाव और फिर प्यार हो गया. कुछ साल बाद मौत उनके प्यार के बीच विलेन बनकर आ गई. रानी की देहांत हो गया. साल 1879 में बड़ी रानी का भी देहांत हो गया और फिर राजा ने वो फैसला लिया, जिसने इस प्रेम कहानी को जगजाहिर कर दिया.
राजा ने छोड़ दिया महल- कंवर अजय बहादुर बताते हैं कि रानी के निधन के बाद महाराज शमशेर प्रकाश इतने आहत हुए कि उन्होंने राजमहल त्याग दिया, जो आज भी नाहन शहर की शान है और जिसे महलात कहते हैं. इसके बाद महाराजा शमशेर प्रकाश ने नाहन में ही अपने लिए सन् 1889 में मुख्य राजमहल से अलग एक आवास बनवाया. जो यूरोपियन स्टाइल में तैयार किया गया था. महाराजा शमशेर प्रकाश ने अपने नाम के साथ अंग्रेजी शब्द विला शब्द जोड़कर इसे शमशेर विला नाम दिया था. अपनी प्रिय रानी क्युंथल (जुन्गा) की मृत्यु के बाद वो यहीं आकर रहते थे. शायद वो रानी की यादों के साथ राजमहल में नहीं रहना चाहते थे. मुख्य महल के प्रमुख गेट पर लगे दो शेर भी शमशेर विला आवास पर ही लगे हुए थे. सिरमौरी रियासत पर कंवर रजौर सिंह की लिखी किताब तारीख-ए-रियासत सिरमौर में राजा शमशेर प्रकाश की कहानी अब भी जीवंत है.
फिर हुई शादी लेकिन राजमहल नहीं गए- राजा शमशेर प्रकाश ने अपनी रानी के साथ जिस महल में जिंदगी के सबसे खूबसूरत पल बिताए थे उस महल को रानी की मौत के बाद राजा ने त्याग दिया. कुछ वक्त बाद उनके रिश्तेदार और सलाहकारों ने महाराजा का विवाह कुनिहार की राज कुमारी से भी करवाया, लेकिन तब भी महाराज महल में नहीं आए और अंतिम सांस तक वो शमशेर विला में ही रहे. बता दें कि महाराजा शमशेर प्रकाश के समय तैयार की गई शमशेर विला नाम की इमारत को यूरोपियन स्टाइल में भव्य तरीके से बनाया गया था. कंवर अजय बहादुर सिंह बताते है कि अपनी पत्नी के गम में ही महाराजा शमशेर प्रकाश अपना मुख्य महल त्याग कर अंतिम सांस तक शमशेर विला में ही रहे. लिहाजा ये एक जीता जागता उदाहरण है, जो महाराजा का अपनी प्रिय पत्नी के अटूट प्रेम को दर्शाता है.
शमशेर विला जलकर खाक- महाराजा शमशेर प्रकाश की मृत्यु के पश्चात शमशेर विला आवास को यूरोपियन गेस्ट हाउस के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा. इसके बाद जितने भी ब्रिटिश मेहमान आएं, उनके ठहरने का इंतजाम इसी इमारत में किया गया था. बाद में 1947-48 में शमशेर विला में आग लग गई थी, जिसमें ये शमशेर विला जलकर नष्ट हो गया था. जिस जंगल में ये विला बनवाया गया था, वहां महाराज के लिए सैरगाह भी थी. जहां आज भी शहर के लोग सुबह-शाम घूमने जाते हैं. इस सैरगाह में के जीर्णद्धार के लिए प्रशासन भी कई कदम उठा रहा है, ताकि एक राजा की प्रेम कहानी किसी ना किसी रूप में जिंदा रहे.
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