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इमरजेंसी को याद कर आज भी रूह कांप जाती है: बिंदल

इमरजेंसी के 46 साल पूरे होने पर पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. राजीव बिंदल ने प्रतिक्रिया दी है. डॉ. राजीव बिंदल ने कहा कि इमरजेंसी यानि आपातकाल एक ऐसी घटना थी, जिसने भारत जैसे महान लोकतांत्रिक देश का गला घोंट दिया था. 26 जून, 1975 को न अखबार आया, न रेडियो चला, जिसने किसी चौराहे पर चर्चा की उसे पुलिस उठा कर ले गई.

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Published : Jun 25, 2021, 1:49 PM IST

Updated : Jul 15, 2021, 10:20 PM IST

नाहनः आज आपातकाल को 46 साल पूरे हो गए हैं. आज ही दिन 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आंतरिक सुरक्षा का हवाला देकर देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी.

पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. राजीव बिंदल ने आपातकाल से जुड़ी कुछ यादें साझा की है. डॉ. राजीव बिंदल ने कहा कि इमरजेंसी यानि आपातकाल एक ऐसी घटना थी, जिसने भारत जैसे महान लोकतांत्रिक देश का गला घोंट दिया था. एक ऐसी काली रात जिसने हजारों, लाखों स्वतंत्रता सैनानियों द्वारा दिए गए बलिदानों को सत्ता लोलुपता की आग में झोंक दिया. एक ऐसा राजनीतिक षड्यंत्र जिसने राज सत्ता में बने रहने के लिए लाखों लोगों को जेल की काली कोठडी में बंद कर दिया, जिसने अखबारों के मुंह पर ताला लगा दिया. रेडियो को महिमा गान, गुणगान का हथियार बना कर तानाशाही लागू कर दी गई.

25 जून 1975 अर्धरात्रि में लगा आपातकाल

बिंदल ने कहा कि 25 जून 1975 की अर्धरात्रि को जब सारा देश सो रहा था, तो लोकतंत्र तानाशाही में बदल चुका था. देश के करोड़ों लोगों की आजादी समाप्त हो चुकी थी. बोलने की आजादी, लिखने की आजादी, मौलिक अधिकारों की आजादी, सब इमरजेंसी की भेंट चढ़ चुकी थी. आधी रात के समय एक लाख के लगभग नेताओं को पूरे देश में अरेस्ट कर लिया गया. देश के सारे थाने भर गए, जेलें भर गई, कोई पूछ नहीं सकता था कि क्यों अरेस्ट किया जा रहा है.

वीडियो.

झूठे मुकदमे बनाकर लोगों को डाला गया जेल

विधायक ने कहा कि 26 जून, 1975 को न अखबार आया, न रेडियो चला, जिसने किसी चौराहे पर चर्चा की उसे पुलिस उठा कर ले गई. पता चला कि 'मिसा' लग गई है. कुछ महत्वपूर्ण अखबारों ने लिखने की हिम्मत की, उनके छापेखाने बंद करवा दिए गए, संपादकों को जेल में डाल दिया गया. बिंदल ने बताया कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के आदेश पर हमने समाचार पत्र छापने का काम शुरू किया. बहुत छोटे स्तर पर साइक्लोस्टाइल मशीन से छोटा अखबार निकालना, उसे रातों रात महत्ववपूर्ण लोगों के घरों में डालना, बहुत बड़ा जोखिम भरा काम था.

झूठे मुकदमे बनाकर लोगों को जेल में डाल दिया गया. अन्तोगत्वा मेरी भी बारी आ ही गई. शायद किसी कार्यकर्ता ने अपनी जान बचाने के लिए सारा राज उगल दिया था. पुलिस ने मुझे प्रिंटिंग मशीन, अखबार के बंडलों के साथ धर दबोचा, फिर क्या था जमकर 15 दिन थाना कुरूक्षेत्र में धुनाई हुई और 'डीआईआर' में झूठा मुकदमा बनाकर करनाल जेल में डाल दिया गया. ऐसा एक लाख लोगों के साथ हुआ. देश जेल में बदल गया था. पर सवाल खड़ा होता है ऐसा क्यूं हुआ..? सिर्फ अपनी राज सत्ता को बचाने के लिए कांग्रेस पार्टी की नेता व पंडित जवाहर लाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी ने लोकतंत्र की हत्या कर दी.

बोलने की आजादी नहीं थी

लखनऊ उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी का चुनाव अयोग्य घोषित करार दे दिया था. उन्हें गद्दी छोड़नी पड़ती. देश बर्बाद हो जाए, हजारों लाखों देश भक्तों की त्याग तपस्या बलिदान समाप्त हो जाए, लेकिन इंदिरा गांधी को गद्दी न जाए. इसके लिए मेरा देश 21 महीने कारागार में बंद रहा. करोड़ों देशवासी अपने घरों में थे, परन्तु गुलाम थे. बोलने की आजादी नहीं थी, दीवारों के भी कान थे. देश को गुलाम बना दिया गया था. बिंदल ने कहा कि 25 जून 1975 की वह काली रात मेरे देश में दोबारा कभी न आए.

ये भी पढ़ेः- थप्पड़ कांड: एसपी गौरव सिंह और सीएम के पीएसओ बलवंत सिंह सस्पेंड

नाहनः आज आपातकाल को 46 साल पूरे हो गए हैं. आज ही दिन 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आंतरिक सुरक्षा का हवाला देकर देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी.

पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. राजीव बिंदल ने आपातकाल से जुड़ी कुछ यादें साझा की है. डॉ. राजीव बिंदल ने कहा कि इमरजेंसी यानि आपातकाल एक ऐसी घटना थी, जिसने भारत जैसे महान लोकतांत्रिक देश का गला घोंट दिया था. एक ऐसी काली रात जिसने हजारों, लाखों स्वतंत्रता सैनानियों द्वारा दिए गए बलिदानों को सत्ता लोलुपता की आग में झोंक दिया. एक ऐसा राजनीतिक षड्यंत्र जिसने राज सत्ता में बने रहने के लिए लाखों लोगों को जेल की काली कोठडी में बंद कर दिया, जिसने अखबारों के मुंह पर ताला लगा दिया. रेडियो को महिमा गान, गुणगान का हथियार बना कर तानाशाही लागू कर दी गई.

25 जून 1975 अर्धरात्रि में लगा आपातकाल

बिंदल ने कहा कि 25 जून 1975 की अर्धरात्रि को जब सारा देश सो रहा था, तो लोकतंत्र तानाशाही में बदल चुका था. देश के करोड़ों लोगों की आजादी समाप्त हो चुकी थी. बोलने की आजादी, लिखने की आजादी, मौलिक अधिकारों की आजादी, सब इमरजेंसी की भेंट चढ़ चुकी थी. आधी रात के समय एक लाख के लगभग नेताओं को पूरे देश में अरेस्ट कर लिया गया. देश के सारे थाने भर गए, जेलें भर गई, कोई पूछ नहीं सकता था कि क्यों अरेस्ट किया जा रहा है.

वीडियो.

झूठे मुकदमे बनाकर लोगों को डाला गया जेल

विधायक ने कहा कि 26 जून, 1975 को न अखबार आया, न रेडियो चला, जिसने किसी चौराहे पर चर्चा की उसे पुलिस उठा कर ले गई. पता चला कि 'मिसा' लग गई है. कुछ महत्वपूर्ण अखबारों ने लिखने की हिम्मत की, उनके छापेखाने बंद करवा दिए गए, संपादकों को जेल में डाल दिया गया. बिंदल ने बताया कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के आदेश पर हमने समाचार पत्र छापने का काम शुरू किया. बहुत छोटे स्तर पर साइक्लोस्टाइल मशीन से छोटा अखबार निकालना, उसे रातों रात महत्ववपूर्ण लोगों के घरों में डालना, बहुत बड़ा जोखिम भरा काम था.

झूठे मुकदमे बनाकर लोगों को जेल में डाल दिया गया. अन्तोगत्वा मेरी भी बारी आ ही गई. शायद किसी कार्यकर्ता ने अपनी जान बचाने के लिए सारा राज उगल दिया था. पुलिस ने मुझे प्रिंटिंग मशीन, अखबार के बंडलों के साथ धर दबोचा, फिर क्या था जमकर 15 दिन थाना कुरूक्षेत्र में धुनाई हुई और 'डीआईआर' में झूठा मुकदमा बनाकर करनाल जेल में डाल दिया गया. ऐसा एक लाख लोगों के साथ हुआ. देश जेल में बदल गया था. पर सवाल खड़ा होता है ऐसा क्यूं हुआ..? सिर्फ अपनी राज सत्ता को बचाने के लिए कांग्रेस पार्टी की नेता व पंडित जवाहर लाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी ने लोकतंत्र की हत्या कर दी.

बोलने की आजादी नहीं थी

लखनऊ उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी का चुनाव अयोग्य घोषित करार दे दिया था. उन्हें गद्दी छोड़नी पड़ती. देश बर्बाद हो जाए, हजारों लाखों देश भक्तों की त्याग तपस्या बलिदान समाप्त हो जाए, लेकिन इंदिरा गांधी को गद्दी न जाए. इसके लिए मेरा देश 21 महीने कारागार में बंद रहा. करोड़ों देशवासी अपने घरों में थे, परन्तु गुलाम थे. बोलने की आजादी नहीं थी, दीवारों के भी कान थे. देश को गुलाम बना दिया गया था. बिंदल ने कहा कि 25 जून 1975 की वह काली रात मेरे देश में दोबारा कभी न आए.

ये भी पढ़ेः- थप्पड़ कांड: एसपी गौरव सिंह और सीएम के पीएसओ बलवंत सिंह सस्पेंड

Last Updated : Jul 15, 2021, 10:20 PM IST
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