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अनछुआ हिमाचलः टौंस और यमुना नदी के संगम पर बसा है ये खूबसूरत मंदिर, पांडवों ने बिताया था एक साल

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Published : Jan 18, 2020, 3:13 PM IST

ईटीवी भारत की खास सीरीज 'अनछुआ हिमाचल' में हम आपको ऐसे पर्यटन स्थलों की जानकारी देते हैं, जिनपर सरकार की नजर नहीं गई हो. इसी कड़ी में आज हम आपको लेकर चलेंगे हिमाचल और उत्तराखंड को बांटने वाली टौंस और यमुना नदी के संगम पर बसे गुप्त सहस्त्रधारा मंदिर में.

untouched places of himachal
अनछुआ हिमाचल गुप्त सहस्त्रधारा मंदिर

हिमाचल प्रदेश में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं. यहां कई अनछुए पर्यटन स्थल हैं. जिन्हें सिर्फ प्रदेश के पर्यटन मानचित्र पर लाने की जरुरत है. ऐसे ही अनछुए पर्यटन स्थलों को न केवल प्रदेश बल्कि देश के मानचित्र में लाने का बेड़ा उठाया है, ईटीवी भारत ने.

ईटीवी भारत की खास सीरीज 'अनछुआ हिमाचल' में हम ऐसे ही पर्यटन स्थलों की जानकारी लेकर आते हैं, जिनपर सरकार की नजर नहीं गई हो. इसी कड़ी में आज हम आपको लेकर चलेंगे हिमाचल और उत्तराखंड को बांटने वाली टौंस और यमुना नदी के संगम पर बसे गुप्त सहस्त्रधारा मंदिर में.

वीडियो रिपोर्ट.

क्या है मान्यताएं
गुप्त सहस्त्रधारा मंदिर पांडवो के समय से प्रचलित है. एक समय था जब यहां न केवल हिमाचल, उत्तराखंड बल्कि दिल्ली- हरियाणा सहित कई राज्यों से श्रद्धालु पहुंचते थे. गुप्त मंदिर को प्राचीनतम मंदिरों में से एक है. मंदिर पुजारी की माने तो पांडवों ने यहां पर 1 साल का समय बिताया था. इस मंदिर में एक प्राचीन गुफा भी है.

कहा जाता है कि पांडव इस गुप्त गुफा के अंदर रहते थे, ताकि किसी को भी उनके बारे में जानकारी न मिल पाए. इसके अलावा श्री श्री 1008 धोलीढांग वाले गुरुजी ने यहां 12 साल तक तपस्या की. बताया जाता टरोज सुबह इस गुफा से होकर हरिद्धर जाते थे और स्नान लोटते थे. यहां से हरिद्धार की दूरी करीब 117 किलोमीटर है. गुफा के अंदर पानी के साथ धाराएं भी नजर आती थी. गुप्त गुफा और पानी की धाराओं के दोनों नामों को जोड़कर इस मंदिर का नाम गुप्त सहस्त्रधारा पड़ा.

इस मंदिर में एक सैकड़ों वर्ष पुराना एक बरगद का वृक्ष भी है. जो बहुत बड़ी जगह में फैला हुआ है. इस वृक्ष में टहनियों की आकृति ऐसे बनी हुई है, जैसे महल का आकार बना होता है. कहा जाता है कि इस मंदिर में भोले शिव शंकर का वास है. मान्यता के अनुसार सच्चे मन से मन्नत मांगने पर यहां मनोकामना पूरी होती है.

मंदिर पुजारी की माने तो गुप्त सहस्त्रधारा मंदिर को भी रेणुका जी की तर्ज पर बनाया जाना चाहिए, ताकि बच्चे और पर्यटक यहां घूमने आ सके और यहां की प्राकृतिक खूबसूरती का लुत्फ ले सकें.
आज भी यहां कई हरिद्वार ऋषिकेश से कई साधु-संत पहुंचते थे, लेकिन इन दिनों मंदिर बहुत कम लोग नजर आते हैं. शिवरात्रि के मौके पर यहां श्रद्धालु का तांता लगता है.

अनदेखी का शिकार गुप्त सहस्त्रधारा
श्रद्धालुओं व पर्यटकों के लिए बनी सराय की दीवारें टूटने की कगार पर है. खिड़कियां दरवाजे बिल्कुल टूट चुके हैं. इसके चलते बारिश का पानी भी इस प्राचीन मंदिर में अंदर जाने के कारण प्राचीन मूर्तियों को नुकसान पहुंच रहा है.

स्थानीय लोगों की मांग
शिलाता जंगल के बीचों-बीच शांत वातावरण में बसे इस मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती है. मंदिर से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर शराब का ठेका होने की वजह से इस जंगल की और शरारती तत्वों को आना भी लगा रहता है. स्थानीय लोंगो ने कई बार डीसी और उपायुक्त सिरमौर से यहां पुलिस की गश्त लगाने की भी मांग रखी लेकिन पुलिस जवानों की कमी की बात कहकर हमेशा टाल मटोल करती नजर आई.

मंदिर में मनाई जाती है शिवरात्री
स्थानीय गांव किल्लौड़ और खोदरी के लोग यहां शिवरात्रि के मौके पर एक जागरण का आयोजन भी करते हैं. शिवरात्री के दौरान यहां एक दिन पहले ही श्रद्धालुओं का आना शुरू हो जाता है. उस दिन पूरी रात भजन-कीर्तन होता है और अगले दिन एक भंडारे का आयोजन भी होता है.

कैसे पहुंचे गुप्त सहस्त्रधारा
उपमंडल पांवटा साहिब से करीब 28 किलोमीटर दूर गुप्त सहस्त्रधारा में पहुंचने लिए पांवटा साहिब से हर एक घंटे में प्राईवेट बस सेवा उपल्बध है. इसके अलावा उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से करीब 50 किलोमीटर का सफर हो जो प्राईवेट या उत्तराखंड परिवहन की बस से पूरा किया जा सकता है. जिसमें करीब 1 से ढेड घंटे का समय लगता है. और ये बस उत्तराखंड के डाकपत्थर तक चलती है जहां से आप डाकपत्थर बांध का सुंदर दृश्य देखते हुए हिमाचल में प्रवेश कर सकते हो.

ये भी पढ़ें: मौसम में बदलाव के चलते गेहूं में हो सकता है येलो रस्ट, बचाव के लिए कृषि विभाग ने दी ये सलाह

हिमाचल प्रदेश में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं. यहां कई अनछुए पर्यटन स्थल हैं. जिन्हें सिर्फ प्रदेश के पर्यटन मानचित्र पर लाने की जरुरत है. ऐसे ही अनछुए पर्यटन स्थलों को न केवल प्रदेश बल्कि देश के मानचित्र में लाने का बेड़ा उठाया है, ईटीवी भारत ने.

ईटीवी भारत की खास सीरीज 'अनछुआ हिमाचल' में हम ऐसे ही पर्यटन स्थलों की जानकारी लेकर आते हैं, जिनपर सरकार की नजर नहीं गई हो. इसी कड़ी में आज हम आपको लेकर चलेंगे हिमाचल और उत्तराखंड को बांटने वाली टौंस और यमुना नदी के संगम पर बसे गुप्त सहस्त्रधारा मंदिर में.

वीडियो रिपोर्ट.

क्या है मान्यताएं
गुप्त सहस्त्रधारा मंदिर पांडवो के समय से प्रचलित है. एक समय था जब यहां न केवल हिमाचल, उत्तराखंड बल्कि दिल्ली- हरियाणा सहित कई राज्यों से श्रद्धालु पहुंचते थे. गुप्त मंदिर को प्राचीनतम मंदिरों में से एक है. मंदिर पुजारी की माने तो पांडवों ने यहां पर 1 साल का समय बिताया था. इस मंदिर में एक प्राचीन गुफा भी है.

कहा जाता है कि पांडव इस गुप्त गुफा के अंदर रहते थे, ताकि किसी को भी उनके बारे में जानकारी न मिल पाए. इसके अलावा श्री श्री 1008 धोलीढांग वाले गुरुजी ने यहां 12 साल तक तपस्या की. बताया जाता टरोज सुबह इस गुफा से होकर हरिद्धर जाते थे और स्नान लोटते थे. यहां से हरिद्धार की दूरी करीब 117 किलोमीटर है. गुफा के अंदर पानी के साथ धाराएं भी नजर आती थी. गुप्त गुफा और पानी की धाराओं के दोनों नामों को जोड़कर इस मंदिर का नाम गुप्त सहस्त्रधारा पड़ा.

इस मंदिर में एक सैकड़ों वर्ष पुराना एक बरगद का वृक्ष भी है. जो बहुत बड़ी जगह में फैला हुआ है. इस वृक्ष में टहनियों की आकृति ऐसे बनी हुई है, जैसे महल का आकार बना होता है. कहा जाता है कि इस मंदिर में भोले शिव शंकर का वास है. मान्यता के अनुसार सच्चे मन से मन्नत मांगने पर यहां मनोकामना पूरी होती है.

मंदिर पुजारी की माने तो गुप्त सहस्त्रधारा मंदिर को भी रेणुका जी की तर्ज पर बनाया जाना चाहिए, ताकि बच्चे और पर्यटक यहां घूमने आ सके और यहां की प्राकृतिक खूबसूरती का लुत्फ ले सकें.
आज भी यहां कई हरिद्वार ऋषिकेश से कई साधु-संत पहुंचते थे, लेकिन इन दिनों मंदिर बहुत कम लोग नजर आते हैं. शिवरात्रि के मौके पर यहां श्रद्धालु का तांता लगता है.

अनदेखी का शिकार गुप्त सहस्त्रधारा
श्रद्धालुओं व पर्यटकों के लिए बनी सराय की दीवारें टूटने की कगार पर है. खिड़कियां दरवाजे बिल्कुल टूट चुके हैं. इसके चलते बारिश का पानी भी इस प्राचीन मंदिर में अंदर जाने के कारण प्राचीन मूर्तियों को नुकसान पहुंच रहा है.

स्थानीय लोगों की मांग
शिलाता जंगल के बीचों-बीच शांत वातावरण में बसे इस मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती है. मंदिर से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर शराब का ठेका होने की वजह से इस जंगल की और शरारती तत्वों को आना भी लगा रहता है. स्थानीय लोंगो ने कई बार डीसी और उपायुक्त सिरमौर से यहां पुलिस की गश्त लगाने की भी मांग रखी लेकिन पुलिस जवानों की कमी की बात कहकर हमेशा टाल मटोल करती नजर आई.

मंदिर में मनाई जाती है शिवरात्री
स्थानीय गांव किल्लौड़ और खोदरी के लोग यहां शिवरात्रि के मौके पर एक जागरण का आयोजन भी करते हैं. शिवरात्री के दौरान यहां एक दिन पहले ही श्रद्धालुओं का आना शुरू हो जाता है. उस दिन पूरी रात भजन-कीर्तन होता है और अगले दिन एक भंडारे का आयोजन भी होता है.

कैसे पहुंचे गुप्त सहस्त्रधारा
उपमंडल पांवटा साहिब से करीब 28 किलोमीटर दूर गुप्त सहस्त्रधारा में पहुंचने लिए पांवटा साहिब से हर एक घंटे में प्राईवेट बस सेवा उपल्बध है. इसके अलावा उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से करीब 50 किलोमीटर का सफर हो जो प्राईवेट या उत्तराखंड परिवहन की बस से पूरा किया जा सकता है. जिसमें करीब 1 से ढेड घंटे का समय लगता है. और ये बस उत्तराखंड के डाकपत्थर तक चलती है जहां से आप डाकपत्थर बांध का सुंदर दृश्य देखते हुए हिमाचल में प्रवेश कर सकते हो.

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Intro:समय के साथ-साथ लुप्त हो रही है हजारों साल पुराना मंदिर का इतिहास


Body:हजारों साल ऐतिहासिक भोले शिव शंकर का मंदिर जहां की हजारों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं मंदिर पुजारी निक्कू शास्त्री ने बताया कि जहां पर ढोलकी भांग के गुरुजी मैं सैकड़ों साल अपना जीवन व्यतीत किया था इसी गुफा के माध्यम से ही हरिद्वार और धोलीडांग जाते थे


Conclusion:
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