नाहनः हिमाचल प्रदेश में लोकसभा चुनाव की तैयारियां जोरों पर है. शिमला संसदीय क्षेत्र से बीजेपी प्रत्याशी सुरेश कश्यप और कांग्रेस प्रत्याशी धनीराम शांडिल सिरमौर के गिरीपार क्षेत्र में जाकर हाटी समुदाय के लोगों से वादा कर रहे हैं कि वो गिरीपार को जनजातीय हक दिलवा कर रहेंगे. बीजेपी हो या कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के उम्मीदवारों के लिए इस बार हाटी समुदाय के लोगों को मनाना काफी मुश्किल साबित हो रहा है. इस चुनावी फिजा में अब नेताओं ने इस हाटी जनजातीय मुद्दे को फिर से हवा दे दी है.
प्रत्याशी बोले-
भाजपा प्रत्याशी सुरेश कश्यप का कहना है कि गिरिपार को एसटी दर्जा देने का मुद्दा भाजपा सरकार ने गंभीरता से उठाया है. सांसद वीरेंद्र कश्यप ने मामले को केंद्र तक पहुंचाने के भरसक प्रयास किए. इतनी लंबी प्रक्रिया पूरी करने में सांसद का अहम योगदान रहा है. कांग्रेस प्रत्याशी जब सांसद थे तो उन्होंने कभी इस मुद्दे का जिक्र तक नहीं किया. उनहोंने कहा अगर वे सांसद बननते हैं तो संसद में मामला उठाएंगे. विधानसभा में भी वे मामला उठा चुके हैं. इस मांग को पूरा करने के हर संभव प्रयास होंगे.
कांग्रेस प्रत्याशी धनीराम शांडिल का कहना है कि प्रदेश की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने ही प्रस्ताव पारित कर मामला केंद्र को भेजा था. गिरीपार जनजाति दर्जा हासिल करने का हकदार है. जोंसार बाबर और गिरीपार की संस्कृति, रहन-सहन आदि एक समान है. इस मामले को गंभीरता से लिया जाएगा. चुनाव में जीत मिली तो वे गिरीपार को एसटी का दर्जा देने का मामला संसद में जोरशोर से उठाएंगे.
बता दें कि बीजेपी ने इस बार शिमला सीट से दो बार के सांसद वीरेन्द्र कश्यप का टिकट काटा है. उनके टिकट काटने के कई कारण है, हालांकि खुद वीरेन्द्र कश्यप ये मानते हैं कि बीजेपी नए चेहरों को मौका देती है इसलिए इस बार सुरेश कश्यप को उम्मीदावार बनाया गया है. अगर बात करें वीरेन्द्र कश्यप की तो वो दो बार इस संसदीय सीट से सांसद चुनकर लोकसभा पहुंच चुके हैं, लेकिन उनके कार्यकाल से गिरीपार की जनता उनसे नाराज दिखी. सिरमौर जिला के गिरपार हाटी समुदाय के लोगों ने तो इस बार ये नारा तक दे दिया था कि 'मोदी तुझसे बैर नहीं, कश्यप तेरी खैर नहीं'.
ये बात बीजेपी आला हाईकमान भी बखूबी जानती है कि हाटी समुदाय के मुद्दे पर विपक्षी नेता उन्हें जमकर कोसेंगे. 2014 के लोकसभा चुनाव में जब राजनाथ सिंह सिरमौर जिले के मुख्यालय नाहन में एक रैली करने पहुंचे थे तो उन्होंने हाटी के लोगों को ये वादा किया था कि अगर केन्द्र में बीजेपी की सरकार बनती है तो हाटी को उनका हक दिया जाएगा.
अब पांच साल केन्द्र में बीजेपी की सरकार के हो चुके हैं, लेकिन हाटी की ये मांग अब तक अधर में लटकी है. हाटी समुदाय के लोगों ने कई बार न केवल सांसद, सीएम, गृह मंत्री बल्कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी मुलाकात की और अपनी मांग व सरकार को उसका वादा याद दिलाया.
सितंबर 2018 में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने स्वयं हाटी मुद्दे को लेकर गृहमंत्री राजनाथ सिंह से चर्चा की. 6 दिसंबर 2018 को सांसद वीरेंद्र कश्यप के नेतृत्व में केंद्रीय हाटी समिति का एक प्रतिनिधिमंडल गृहमंत्री से मिला. आरजीआई को गृहमंत्री ने जल्द कार्रवाई के निर्देश दिए लेकिन, फाइल आगे नहीं बढ़ पाई. लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव नेताओं ने इस मुद्दे को खूब भुनाया, लेकिन चुनाव में जीतने के बाद इनकी किसी को याद नहीं आई. चुनावी फिजा में अब नेताओं ने इस मुद्दे को फिर हवा दे दी है. वोटर भी अब इस मुद्दे पर नेताओं से अपना स्पष्ट रुख चाह रहे हैं. गिरीपार का हाटी समुदाय उत्तराखंड के जोंसार बाबर क्षेत्र के जोंसारी समुदाय की तर्ज पर मांग कर रहा है.
लोकसभा चुनाव नजदीक आने पर जरूर सांसद वीरेन्द्र कश्यप ने हाटी समुदाय को जनजाति का दर्जा दिलाने के लिए प्रयास तेज किए. वो प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर दिल्ली के केंद्रीय मंत्री से मुलाकात करने पहुंचे. केंद्रीय जनजाति मंत्री जुएल उरांव से भी मिले. उन्होंने जिला सिरमौर के गिरीपार क्षेत्र के हाटी समुदाय को जनजाति का दर्जा दिलाने के लिए उनसे बात की और ताजा स्थिति की जानकारी मांगी.
इससे पहले गृह मंत्री से लेकर केंद्रीय जनजाति मंत्री भी हरिपुर धार में आकर हाटी समुदाय को जनजाति का दर्जा दिलाने का आश्वासन दे चुके हैं. फिर मामला आरजीआई के पास पहुंचा. सिर्फ बीजेपी नहीं, कांग्रेस सरकार भी इससे पहले इस दिशा में प्रयास कर चुकी है. हाटी समिति ने 21 फरवरी 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और 14 फरवरी 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात भी की. इससे पहले की सरकारों के प्रयास भी नाकाफी रहे.
किस तर्ज पर मांग कर रहा हाटी समुदाय
1299 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले गिरीपार में सवा लाख वोटर और पौने तीन लाख की आबादी है. सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बावजूद जनजातीय दर्जे का मामला महापंजीयक भारत सरकार (आरजीआई) के कार्यालय में अटका हुआ है. 1815 में सिरमौर रियासत से अलग होने वाला जोंसार बाबर को 1967 में केंद्र सरकार ने जनजाति का दर्जा दिया था. जोंसार बाबर और सिरमौर के गिरिपार की लोक संस्कृति, लोक परंपरा, रहन-सहन एक समान है. दोनों समुदायों में दाईचारे (भाईचारे) का रिश्ता है. दोनों के वंशज एक ही माने जाते हैं. इनके गांवों के नामों और भाषा में भी समानता है. गिरीपार को उतरोऊ और जोंसार बाबर का उतलेऊ इसके उदाहरण हैं.
सिरमौर जिले की कुल 25 पिछड़ी पंचायतों में से 23 पंचायतें गिरीपार क्षेत्र में आती हैं. हाटी समिति के अनुसार प्रतिव्यक्ति आय में जनजातीय जिला किन्नौर की 2,17993 रुपए के मुकाबले सिरमौर की प्रतिव्यक्ति आय महज 31,348 रुपए है, यदि पांवटा और नाहन को अलग किया जाए तो यहां की प्रतिव्यक्ति आय महज दस हजार रह जाती है. औद्योगिक क्षेत्र और उपजाऊ कृषि भूमि पांवटा और नाहन तहसीलों में ही पड़ती है.
तमाम शर्तें पूरी, फिर भी लंबित है मामला
लोकूर कमीशन के अनुसार जनजातीय शोध संस्थान शिमला ने दो अगस्त 2016 को अपनी रिपोर्ट हिमाचल सरकार को सौंपी. तीन अगस्त को हिमाचल मंत्रिमंडल ने सर्वे रिपोर्ट के साथ प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजा. जिस पर आरजीआई ने तीन सवालों के जवाब मांगे. इनमें गिरिपार क्षेत्र की पंचायतों के अनुसार जनसंख्या, गिरिपार और जोंसार बाबर क्षेत्र का साथ लगता भौगोलिक नक्शा और राज्यपाल की संस्तुति शामिल है. ये शर्तें राज्य सरकार पूरी कर चुकी है फिर भी मामला आरजीआई के पास लंबित है.