पांवटा साहिब: भारत एक कृषि प्रधान देश है. जहां आबादी का एक बड़ा हिस्सा खेती बाड़ी के कामों में लगा हुआ है. देश भर में खेतों की सिंचाई के लिए नहरों की व्यवस्था की गई थी. इन नहरों के जरिये खेतों को जरूरी पानी मिलता है, लेकिन बीतते वक्त के साथ नहरें बदहाल होती रही इसके लिए सरकार से लेकर प्रशासन और आम जनता तक हर कोई जिम्मेदार है.
कभी जमीन और इंसान दोनों की बुझती थी प्यास
इन नहरों का निर्माण भले सिंचाई के लिए किया गया था, लेकिन एक वक्त था जब इन नहरों का पानी इंसानों की भी प्यास बुझाता था. इन नहरों में बहने वाला पानी इतना स्वच्छ था कि लोग इस पानी का इस्तेमाल पीने के अलावा रोजमर्रा की दूसरी जरूरतें पूरा करने के लिए भी करते थे.
पांवटा साहिब की भूमि को कभी 7 नहरें सींचा करती थी, लेकिन अनदेखी के कारण 3 नहरें बंद पड़ी है. बाकी बची हुई 4 नहरों की हालत भी खस्ता है. स्थानीय लोगों के मुताबिक उनके बुजुर्ग बताते हैं कि कभी इन नहरों का पानी पीने के लिए भी इस्तेमाल होता था, लेकिन आज ये पानी इतना गंदा है कि लोग इससे सिंचाई करने में भी हिचकते हैं.
पांवटा की 4 नहरें
पांवटा साहिब में कभी 7 नहरें थी, लेकिन फिलहाल लेफ्ट बैंक कैनाल, राइट बैंक कैनाल, रामपुर गिरी कैनाल और गिरी पुरुवाला कैनाल में ही पानी आता है. इन चारों नहरों से इलाके की कई पंचायतों की भूमि पर सिंचाई होती है.
-लेफ्ट बैंक कैनाल से 5 पंचायतों की भूमि की सिंचाई होती है. इससे इलाके की 1970 हैक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है.
-राइट बैंक कैनाल से 6 पंचायतों के किसानों को राहत मिलती है. इस नहर से इलाके के 1920 हेक्टेयर जमीन की प्यास बुझती है.
- रामपुर गिरी कैनाल से इलाके की 810 हैक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है. इससे रामपुर घाट और गिरी के साथ लगते गांवों के खेतों में सिंचाई होती है.
-गिरी पुरुवाला नहर से इलाके की 532 हैक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है जिसमें सालवाला, पुरुवाला, गोरखुवाला आदि पंचायत की ज़मीन शामिल है.
कुल मिलाकर पांवटा सब-डिवीजन में मौजूद ये 4 नहरें इलाके की 5232 हैक्टेयर भूमि को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध करवाती है. खरीफ और रबी की फसलों के लिए पांवटा साहिब की कई पंचायतों को सिंचाई के लिए इन्हीं 4 नहरों से पानी मिलता है.
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क्या कहते हैं स्थानीय लोग?
पांवटा साहिब के स्थानीय लोगों की मानें तो इलाके में 7 में से 3 नहरें तो बंद हो चुकी है और जो बची हैं वो भी समय के साथ दम तोड़ देंगी. जिन नहरों में पानी है भी वो दिन-ब-दि मैला हो रहा है.
स्थानीय युवक बताते हैं कि एक वक्त था कि उनके बुजुर्ग अपने खेतों में इस पानी से सिंचाई, रोपाई करते थे और खेतों में ही भोजन के साथ नहरों के पानी का इस्तेमाल पीने के लिए करते थे लेकिन आज नहरों का पानी हाथ धोने लायक भी नहीं बचा है.
एक किसान ने बताया कि नहर में रोजाना गंदगी पहुंच रही है सड़कों की सारी मिट्टी नहर में पहुंच रही है. एक अन्य युवक ने बताया कि नहरों में कपड़े धोए जाते हैं या बच्चे नहाते हैं इसका असर भी पानी की गुणवत्ता पर पड़ता है.
स्थानीय लोगों की मानें तो इन नहरों का निर्माण खेतों तक सिंचाई का पानी पहुंचाने के लिे किया गया था ताकि फसलें अच्छी हो. लेकिन आज जो हालत इन नहरों और इसके पानी की है उससे सिंचाई करने से फसलों के खराब होने की संभावना ज्यादा है.
क्या कहते हैं अधिकारी ?
जल शक्ति विभाग के अधिशासी अभियंता जगबीर सिंह वर्मा का कहना है कि इलाके में मौजूद नहरों की समय समय पर मरम्मत की जाती है. नहरों के रख रखाव के लिए विभाग की टीम लगी हुई है जो पानी को दूषित करने वालों के खिलाफ कार्रवाई भी करती है.
जल शक्ति विभाग के मुताबिक नहरों का पानी सिंचाई के लिए बिल्कुल उपयुक्त है. और जहां तक पीने के पानी की बात है तो इसके लिए विभाग की तरफ से अलग से नल-कूप, हैंडपंप आदि लगाए गए हैं.
नहरें क्यों हो रही बर्बाद ?
शहरों से होकर गांवों तक पहुंचती सिंचाई नहरें बीतते वक्त के साथ बदहाल होती गईं. देखरेख की कमी के कारण नहरों का हाल बेहाल हुआ और वक्त के साथ पानी की गुणवत्ता का स्तर भी गिरता रहा. नहरों के आस-पास रिहायशी इलाकों के बसना इसकी सबसे बड़ी वजह है.
नहरों के आस-पास बसती इंसानी बस्तियों से निकलने वाला कूड़ा, कचरा, मल, मूत्र ने इन नहरों के पानी को खराब किया और कई इलाकों में फैक्ट्रियों, उद्योगों से निकलते कचरे ने इस पानी को जहर बना दिया है. जिसके चलते देश के कई इलाकों में इन नहरों का पानी सिंचाई के लिए भी ठीक नहीं है, उल्टे इस पानी से सिंचाई करने पर फसल की बर्बादी के साथ जमीन की गुणवत्ता भी भी असर पड़ता है.
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