ETV Bharat / state

World Prematurity Day: हिमाचल में हो रही 60% प्रीमैच्योर डिलीवरी, जानिए क्या है वजह

World Prematurity Day 2023: आज 17 नवंबर को वर्ल्ड प्रीमैच्योर डे मनाया जा रहा है. प्रीमैच्योर बेबी अपने तय समय से पहले ही पैदा हो जाते हैं. जिससे उनका सही से विकास नहीं होता. ऐसे में इन बच्चों को स्पेशल केयर की जरूरत होती है. प्रीमैच्योर डिलीवरी के कई कारण हो सकते हैं.

World Prematurity Day 2023
वर्ल्ड प्रीमैच्योर डे 2023
author img

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Nov 17, 2023, 12:44 PM IST

शिमला: 17 नवंबर, शुक्रवार को विश्व प्रीमैच्योर दिवस मनाया जा रहा है. प्रीमैच्योर बेबी वे शिशु होते हैं, जिनका जन्म समय से पहले ही हो जाता है. जैसे की प्रेगनेंसी के सातवें या आठवें महीने में इन बच्चों का जन्म हो जाता है. इन प्रीमैच्योर शिशुओं की इम्यूनिटी नौ महीने में पैदा हुए बच्चों की इम्यूनिटी की तुलना में बहुत कमजोर होती है. इसलिए प्रीमैच्योर बच्चों को स्पेशल केयर की जरूरत होती है. वहीं, अक्सर प्रीमैच्योर बेबी में बीमारियों का खतरा भी बना रहता है.

हिमाचल प्रदेश के के एक मात्र महिला अस्पताल कमला नेहरू अस्पताल (केएनएच) में स्पेशलिस्ट डॉक्टर अशोक गर्ग ने बताया कि प्रेगनेंसी के 37वें स्पताह से पहले पैदा हुए बच्चों को प्री-टर्म बेबी या प्रीमैच्योर बेबी कहा जाता है. इन बच्चों में इंफेक्शन फैलने का खतरा ज्यादा रहता है. ये बच्चे फुल-टर्म बेबी की तरह पूरी तरह से विकसित भी नहीं हुए होते हैं. यही सबसे बड़ा कारण हे कि प्रीमैच्योर बेबी को ज्यादा समय तक अस्पताल में डॉक्टरों की देखरेख में रखना पड़ता है, क्योंकि इन बच्चों का अभी तक गर्भ में पूरा विकास नहीं हुआ होता है. इसलिए इन बच्चों के स्वास्थ्य और विकास पर बारीकी से नजर रखनी पड़ती है.

KNH में सालाना 4-5 हजार प्रीमैच्योर डिलीवरी: डॉ. अशोक गर्ग ने बताया कि केएनएच में एक साल में करीब 7 से 8 हजार गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी होती है. जिसमें से 4 से 5 डिलीवरी प्रीमैच्योर होती हैं, जो कि गर्भ के 9 महीने पूरे होने से पहले ही हो जाती है. ऐसे में इन बच्चों को खास देखभाल की जरूरत होती है, ताकि नवजात को किसी तरीके का भी इन्फेकशन न हो, क्योंकि इन बच्चों की इम्यूनिटी बहुत ज्यादा कमजोर होती है और इनमें बिमारियों से लड़ने की ताकत भी नहीं होती है. ऐसे में ये बेहद जरूरी हो जाता है की स्पेशल केयर के साथ इन बच्चों की ट्रीट किया जाए.

क्यों होती है प्रीमैच्योर डिलीवरी? डॉ. अशोक गर्ग ने बताया कि प्रीमैच्योर डिलीवरी होने का एक सबसे मुख्य कारण लंबे समय से चली आ रही बीमारियां, जैसे कि हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज हो सकती है. इसके साथ ही यूट्रस, सर्विक्स और प्लेसेंटा से जुड़ी समस्याएं भी प्रीमैच्योर डिवीलरी का कारण बनती हैं. इसके अलावा प्रेगनेंसी के समय में शराब पीना, स्मोकिंग करने के कारण भी प्रीमैच्योर डिलीवरी होने के चांसस बने रहते हैं. डॉ. अशोक गर्ग ने बताया कि प्रेगनेंसी पीरियड आमतौर पर 40 हफ्तों का होता है. इसमें इससे पहले भी प्रीमैच्योर बेबी होना या फिर एक से ज्यादा बच्चों के साथ गर्भवती होना भी प्रीमैच्योर डिलीवरी के कारण हैं. प्रीमैच्योर डिलीवरी के लक्षणों में जन्म से संबंधित जटिलताएं बढ़ने लगती हैं, इन बेबी में फेफड़ों का विकास सही से नहीं होता, शरीर का तापमान एक सा रखने में परेशानी, खान-पान में परेशानी और बच्चे का वजन का धीमी गति से बढ़ना शामिल है.

केएनएच में प्रीमैच्योर शिशुओं का निशुल्क इलाज: डॉ. अशोक गर्ग ने बताया कि कमला नेहरू अस्पताल में महिलाओं के लिए सरकार की तरफ से पूरी व्यवस्था की गई है. अस्पताल में बच्चों की देखभाल के लिए विशेष प्रबंध किए गए हैं. उन्हें बताया कि प्रीमैच्योर बच्चे की देखभाल के लिए विशेष रूप से वेंटिलेटर की व्यवस्था की गई है. जहां बच्चों का निशुल्क इलाज होता है. उनका इलाज का पूरा खर्चा हिमाचल सरकार उठाती है. उन्होंने कहा कि निजी अस्पताल में यही खर्चा लाखों रुपयों का है. निजी अस्पताल में वेंटिलेटर पर रखने का 1 दिन का खर्चा करीब 10 हजार रुपए आता है और यदि तीन से चार हफ्ते बच्चों को वेंटिलेटर पर रखने पड़े तो 4 से 5 लख रुपए तक का खर्चा आता है, लेकिन कमला नेहरू अस्पताल में यह बिल्कुल निशुल्क है जहां सरकार की तरफ से पूरी व्यवस्था की गई है.

70 फीसदी प्रीमैच्योर बच्चे हो जाते हैं ठीक: डॉ. अशोक गर्ग ने बताया कि प्रीमैच्योर बच्चों का इलाज संभव है. सरकार की सहायता से यह सभी इलाज किए जाते हैं. उन्होंने बताया कि 70 फीसदी प्रीमैच्योर बच्चे इलाज के बाद ठीक हो जाते हैं. जबकि 30 फीसदी बच्चे या तो जन्म के साथ गंभीर बीमारियों से ग्रसित होते हैं जैसे की पीलिया, या फिर कई बच्चों को सांस लेने में दिक्कत होती हैं, जिन्हें बचाना बहुत मुश्किल हो जाता है. डॉ. अशोक गर्ग ने कहा कि उनकी पूरी कोशिश रहती है कि सभी बच्चों को बेहत और सुरक्षित इलाज मिले और सभी बच्चे बिल्कुल स्वस्थ रहें.

प्रीमैच्योर बेबी के लिए सावधानियां: डॉ. अशोक गर्ग ने बताया कि प्रीमैच्योर डिलवरी से पैदा हुए बच्चों के लिए कुछ सावधानियां बरतना बेहद जरूरी है. प्रीमैच्योर बेबी के शरीर का तापमान बिल्कुल नॉमर्ल होना चाहिए. बच्चे को बहुत ज्यादा ब्लैंकेट ओढ़ाकर भी न रखें. इन बच्चों के शरीर का तापमान हमेशा 97.6 से 99.1 फ़ारेनहाइट टेंपरेचर होना चाहिए. प्रीमैच्योर बेबी के लिए अच्छी नींद बेहद जरूरी है. कमरे में हल्की रोशनी रखें. प्रीमैच्योर बेबी को रात के समय ज्यादा भूख लगती है, इसलिए इन्हें फुल टर्म बेबी से ज्यादा बार दूध पिलाना पड़ता है. प्रीमैच्योर बेबी को हमेशा गुनगुने पानी से ही नहलाएं. एक महीने तक शिशु को किसी भी प्रकार का लोशन या तेल न लगाएं. प्रीमैच्योर बेबी की इम्यूनिटी बहुत कमजोर होती है. इसलिए इन्हें बाहर लेकर निकलना बिल्कुल अवॉइड करें, क्योंकि इन्हें इंफेक्शन का खतरा ज्यादा रहता है.

ये भी पढ़ें: सही रिकवरी के लिए जरूरी है प्रसव के उपरांत मां की विशेष देखभाल, करें ये काम

शिमला: 17 नवंबर, शुक्रवार को विश्व प्रीमैच्योर दिवस मनाया जा रहा है. प्रीमैच्योर बेबी वे शिशु होते हैं, जिनका जन्म समय से पहले ही हो जाता है. जैसे की प्रेगनेंसी के सातवें या आठवें महीने में इन बच्चों का जन्म हो जाता है. इन प्रीमैच्योर शिशुओं की इम्यूनिटी नौ महीने में पैदा हुए बच्चों की इम्यूनिटी की तुलना में बहुत कमजोर होती है. इसलिए प्रीमैच्योर बच्चों को स्पेशल केयर की जरूरत होती है. वहीं, अक्सर प्रीमैच्योर बेबी में बीमारियों का खतरा भी बना रहता है.

हिमाचल प्रदेश के के एक मात्र महिला अस्पताल कमला नेहरू अस्पताल (केएनएच) में स्पेशलिस्ट डॉक्टर अशोक गर्ग ने बताया कि प्रेगनेंसी के 37वें स्पताह से पहले पैदा हुए बच्चों को प्री-टर्म बेबी या प्रीमैच्योर बेबी कहा जाता है. इन बच्चों में इंफेक्शन फैलने का खतरा ज्यादा रहता है. ये बच्चे फुल-टर्म बेबी की तरह पूरी तरह से विकसित भी नहीं हुए होते हैं. यही सबसे बड़ा कारण हे कि प्रीमैच्योर बेबी को ज्यादा समय तक अस्पताल में डॉक्टरों की देखरेख में रखना पड़ता है, क्योंकि इन बच्चों का अभी तक गर्भ में पूरा विकास नहीं हुआ होता है. इसलिए इन बच्चों के स्वास्थ्य और विकास पर बारीकी से नजर रखनी पड़ती है.

KNH में सालाना 4-5 हजार प्रीमैच्योर डिलीवरी: डॉ. अशोक गर्ग ने बताया कि केएनएच में एक साल में करीब 7 से 8 हजार गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी होती है. जिसमें से 4 से 5 डिलीवरी प्रीमैच्योर होती हैं, जो कि गर्भ के 9 महीने पूरे होने से पहले ही हो जाती है. ऐसे में इन बच्चों को खास देखभाल की जरूरत होती है, ताकि नवजात को किसी तरीके का भी इन्फेकशन न हो, क्योंकि इन बच्चों की इम्यूनिटी बहुत ज्यादा कमजोर होती है और इनमें बिमारियों से लड़ने की ताकत भी नहीं होती है. ऐसे में ये बेहद जरूरी हो जाता है की स्पेशल केयर के साथ इन बच्चों की ट्रीट किया जाए.

क्यों होती है प्रीमैच्योर डिलीवरी? डॉ. अशोक गर्ग ने बताया कि प्रीमैच्योर डिलीवरी होने का एक सबसे मुख्य कारण लंबे समय से चली आ रही बीमारियां, जैसे कि हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज हो सकती है. इसके साथ ही यूट्रस, सर्विक्स और प्लेसेंटा से जुड़ी समस्याएं भी प्रीमैच्योर डिवीलरी का कारण बनती हैं. इसके अलावा प्रेगनेंसी के समय में शराब पीना, स्मोकिंग करने के कारण भी प्रीमैच्योर डिलीवरी होने के चांसस बने रहते हैं. डॉ. अशोक गर्ग ने बताया कि प्रेगनेंसी पीरियड आमतौर पर 40 हफ्तों का होता है. इसमें इससे पहले भी प्रीमैच्योर बेबी होना या फिर एक से ज्यादा बच्चों के साथ गर्भवती होना भी प्रीमैच्योर डिलीवरी के कारण हैं. प्रीमैच्योर डिलीवरी के लक्षणों में जन्म से संबंधित जटिलताएं बढ़ने लगती हैं, इन बेबी में फेफड़ों का विकास सही से नहीं होता, शरीर का तापमान एक सा रखने में परेशानी, खान-पान में परेशानी और बच्चे का वजन का धीमी गति से बढ़ना शामिल है.

केएनएच में प्रीमैच्योर शिशुओं का निशुल्क इलाज: डॉ. अशोक गर्ग ने बताया कि कमला नेहरू अस्पताल में महिलाओं के लिए सरकार की तरफ से पूरी व्यवस्था की गई है. अस्पताल में बच्चों की देखभाल के लिए विशेष प्रबंध किए गए हैं. उन्हें बताया कि प्रीमैच्योर बच्चे की देखभाल के लिए विशेष रूप से वेंटिलेटर की व्यवस्था की गई है. जहां बच्चों का निशुल्क इलाज होता है. उनका इलाज का पूरा खर्चा हिमाचल सरकार उठाती है. उन्होंने कहा कि निजी अस्पताल में यही खर्चा लाखों रुपयों का है. निजी अस्पताल में वेंटिलेटर पर रखने का 1 दिन का खर्चा करीब 10 हजार रुपए आता है और यदि तीन से चार हफ्ते बच्चों को वेंटिलेटर पर रखने पड़े तो 4 से 5 लख रुपए तक का खर्चा आता है, लेकिन कमला नेहरू अस्पताल में यह बिल्कुल निशुल्क है जहां सरकार की तरफ से पूरी व्यवस्था की गई है.

70 फीसदी प्रीमैच्योर बच्चे हो जाते हैं ठीक: डॉ. अशोक गर्ग ने बताया कि प्रीमैच्योर बच्चों का इलाज संभव है. सरकार की सहायता से यह सभी इलाज किए जाते हैं. उन्होंने बताया कि 70 फीसदी प्रीमैच्योर बच्चे इलाज के बाद ठीक हो जाते हैं. जबकि 30 फीसदी बच्चे या तो जन्म के साथ गंभीर बीमारियों से ग्रसित होते हैं जैसे की पीलिया, या फिर कई बच्चों को सांस लेने में दिक्कत होती हैं, जिन्हें बचाना बहुत मुश्किल हो जाता है. डॉ. अशोक गर्ग ने कहा कि उनकी पूरी कोशिश रहती है कि सभी बच्चों को बेहत और सुरक्षित इलाज मिले और सभी बच्चे बिल्कुल स्वस्थ रहें.

प्रीमैच्योर बेबी के लिए सावधानियां: डॉ. अशोक गर्ग ने बताया कि प्रीमैच्योर डिलवरी से पैदा हुए बच्चों के लिए कुछ सावधानियां बरतना बेहद जरूरी है. प्रीमैच्योर बेबी के शरीर का तापमान बिल्कुल नॉमर्ल होना चाहिए. बच्चे को बहुत ज्यादा ब्लैंकेट ओढ़ाकर भी न रखें. इन बच्चों के शरीर का तापमान हमेशा 97.6 से 99.1 फ़ारेनहाइट टेंपरेचर होना चाहिए. प्रीमैच्योर बेबी के लिए अच्छी नींद बेहद जरूरी है. कमरे में हल्की रोशनी रखें. प्रीमैच्योर बेबी को रात के समय ज्यादा भूख लगती है, इसलिए इन्हें फुल टर्म बेबी से ज्यादा बार दूध पिलाना पड़ता है. प्रीमैच्योर बेबी को हमेशा गुनगुने पानी से ही नहलाएं. एक महीने तक शिशु को किसी भी प्रकार का लोशन या तेल न लगाएं. प्रीमैच्योर बेबी की इम्यूनिटी बहुत कमजोर होती है. इसलिए इन्हें बाहर लेकर निकलना बिल्कुल अवॉइड करें, क्योंकि इन्हें इंफेक्शन का खतरा ज्यादा रहता है.

ये भी पढ़ें: सही रिकवरी के लिए जरूरी है प्रसव के उपरांत मां की विशेष देखभाल, करें ये काम

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.