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हिमाचल में हर साल हो रहा 15 लाख किलो ऊन का उत्पादन, देश के साथ विदेशों में भी हिमाचली ऊन की डिमांड

हिमाचली ऊन की डिमांड देश के साथ साथ विदेश में भी है. बता दें कि हिमाचल में हर साल 15 लाख किलो ऊन का उत्पादन हो रहा है. हिमाचल के ग्रामीण और जनजातीय क्षेत्रों के किसानों के लिए भेड़ पालन जीवनयापन का एक प्रमुख जरिया है. (Wool production in Himachal) (Sheep farming in Himachal)

देश के साथ विदेशों में भी हिमाचली ऊन की डिमांड
देश के साथ विदेशों में भी हिमाचली ऊन की डिमांड
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Published : Feb 26, 2023, 8:09 PM IST

Updated : Feb 26, 2023, 8:15 PM IST

शिमला: हिमाचल सालाना 15 लाख किलो से अधिक ऊन का उत्पादन करने लगा है. हिमाचल की ऊन की न केवल देश में बल्कि विदेश में पश्चिम के बाजारों तक भी पहुंच है. सरकार गाय व भैंस के दूध व गोबर की खरीद के लिए कदम उठा रही है, वहीं भेड़ पालकों को लाभान्वित करने के लिए भी कई उपाय किए जा रहे हैं. हिमाचल में भेड़ पालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था और आजीविका का अभिन्न अंग है. हिमाचल प्रदेश के छोटे और सीमांत किसान कृषि के साथ-साथ भेड़ पालन करके अपनी आमदनी में वृद्धि कर रहे हैं. हिमाचल के ग्रामीण और जनजातीय क्षेत्रों के किसानों के लिए भेड़ पालन जीवनयापन का एक प्रमुख जरिया है.

हिमाचल में हर साल हो रहा 15 लाख किलो ऊन का उत्पादन
हिमाचल में हर साल हो रहा 15 लाख किलो ऊन का उत्पादन

राज्य में प्रमुख रूप से गद्दी और रामपुर बुशहरी नस्ल का पालन किया जाता है. गद्दी नस्ल की भेड़ चंबा, कुल्लू, कांगड़ा और मंडी जबकि रामपुर बुशहरी नस्ल किन्नौर, रामपुर और शिमला में पाई जाती है. राज्य में वर्ष 2019 में की गई पशुधन गणना के अनुसार राज्य में कुल 7,91,345 भेड़ें हैं. जिसमें विदेशी नस्ल की संख्या 72821 है और स्वदेशी नस्ल की 7,18,524 भेंड़ें है. भेड़पालक ऊन, पशु, मांस, खाद और दूध इत्यादि उत्पादों की बिक्री के माध्यम से आय अर्जित कर रहे हैं. भेड़पालकों के हितों की रक्षा के लिए राज्य की शीर्ष सहकारी संस्था हिमाचल प्रदेश वूल फेडरेशन महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.

फेडरेशन ने तकनीकी और यांत्रिक उपकरणों के माध्यम से भेड़ की ऊन निकालने की सुविधाएं प्रदान करने के साथ-साथ भेड़पालकों से ऊन की खरीद के लिए 133.39 करोड़ रुपये का रिवॉल्विंग फंड भी बनाया है. फेडरेशन द्वारा बाजार को ध्यान में रखते हुए ऊन की 125 से 150 मीट्रिक टन की खरीद भी की जा रही है, इसके लिए भेड़ पालकों को मौके पर भुगतान भी किया जा रहा है.

देश के साथ विदेशों में भी हिमाचली ऊन की डिमांड
देश के साथ विदेशों में भी हिमाचली ऊन की डिमांड

भेड़ों की ऊन निकालने की सुविधा दे रहा है फेडरेशन: हिमाचल प्रदेश वूल फेडरेशन द्वारा प्रदेश के भेड़ पालकों को 11 रुपये से 13 रुपये प्रति भेड़ तक की रियायती दरों पर उपकरणों द्वारा भेड़ की ऊन निकालने की सुविधा दी जा रही है. उपकरणों से भेड़ की ऊन निकालने से समय की बचत हो रही है. साथ ही पशु के स्वास्थ्य के अनुकूल भी होती है. यह सुविधा प्रशिक्षित और अनुभवी भेड़पालकों की मदद से दी जा रही है.

हिमाचली ऊन की बाजारों में लगातार बढ़ रही है मांग: गुणवत्ता के लिहाज से विशिष्ट पहचान रखने वाली हिमाचली ऊन की मांग बाजारों में निरंतर बढ़ रही है. हिमाचली ऊन प्रदेश के विभिन्न भागों के साथ-साथ पश्चिमी बाजारों की आवश्यकताओं को भी पूरा कर रही है. प्रदेश के निजी हितधारक भी राज्य के कुछ हिस्सों में हिमाचली ऊन के जैविक प्रमाणन और अन्य प्रमाणन जैसे आर.डब्ल्यू.एस. (रिस्पॉन्सिबल वूल स्टैंडर्ड्स) में निवेश कर रहे हैं.

15 लाख किलो ऊन का किया जा रहा है उत्पादन: हिमाचल प्रदेश वूल फेडरेशन के एक प्रवक्ता ने बताया कि राज्य में कुल 15.50 लाख किलोग्राम ऊन का उत्पादन किया जा रहा है, जिसके आधार पर प्रति भेड़ करीब 1.9 किलोग्राम का उत्पादन होता है. ऊन के दामों की बात करें तो सफेद ऊन की दर 34.10 रुपए किलो से लेकर 71.50 रुपये किलो और काली ऊन 25.50 रुपए किलो से लेकर 45 रुपये किलो है. हिमाचल प्रदेश वूल फेडरेशन भेड़पालकों को भेड़ों की क्रॉस-ब्रीडिंग प्रक्रिया अपनाने और वस्त्र उद्योग की मांग के अनुसार परिधान निर्माण में उच्च गुणवत्ता वाली ऊन उत्पादित करने के लिए के लिए प्रेरित कर रही है.

भेड़पालकों ने कहा, फेडरेशन कर रहा मदद: चंबा जिले के होली के गांव देओल के प्रगतिशील भेड़पालक जय सिंह ने बताया कि वह वूल फेडरेशन को लगभग 900 से 1000 किलोग्राम क्रॉसब्रीड ऊन 85.80 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से विक्रय करते हैं. वूल फेडरेशन की ऊन निकालने की टीमें भरमौर में उनकी भेड़ों की ऊन निकालने में मदद करती है. फेडरेशन के सहयोग से वह 800 भेड़ों के झुंड को सफलतापूर्वक पालने में सफल हुए हैं. पारंपरिक रूप से ऊन निकालने वाले लोग बहुत कम रह गए हैं और वे प्रति भेड़ 25 रुपये से 30 रुपये शुल्क लेते हैं.

कांगड़ा जिले के छोटा भंगाल के भेड़ पालक मोहिंदर ठाकुर ने बताया कि वह सर्दियों में अपने लगभग 300 भेड़ों के झुंड के साथ नालागढ़ के पास रामशहर चले जाते हैं. फेडरेशन उन्हें रामशहर के पास जंगल में भेड़ की ऊन निकालने की सुविधा प्रदान करता है और नियमित रूप से प्रशिक्षण शिविर भी आयोजित करता है. जिससे उनकी समस्याओं के निवारण के लिए स्थानीय पशु चिकित्सकों से परामर्श और प्रशासन से आवश्यक सहायता भी मिलती है.

ये भी पढ़ें: पारदर्शी और जवाबदेह प्रशासन के लिए Comprehensive Guiding Principles को सख्ती से लागू करेगी सुक्खू सरकार

शिमला: हिमाचल सालाना 15 लाख किलो से अधिक ऊन का उत्पादन करने लगा है. हिमाचल की ऊन की न केवल देश में बल्कि विदेश में पश्चिम के बाजारों तक भी पहुंच है. सरकार गाय व भैंस के दूध व गोबर की खरीद के लिए कदम उठा रही है, वहीं भेड़ पालकों को लाभान्वित करने के लिए भी कई उपाय किए जा रहे हैं. हिमाचल में भेड़ पालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था और आजीविका का अभिन्न अंग है. हिमाचल प्रदेश के छोटे और सीमांत किसान कृषि के साथ-साथ भेड़ पालन करके अपनी आमदनी में वृद्धि कर रहे हैं. हिमाचल के ग्रामीण और जनजातीय क्षेत्रों के किसानों के लिए भेड़ पालन जीवनयापन का एक प्रमुख जरिया है.

हिमाचल में हर साल हो रहा 15 लाख किलो ऊन का उत्पादन
हिमाचल में हर साल हो रहा 15 लाख किलो ऊन का उत्पादन

राज्य में प्रमुख रूप से गद्दी और रामपुर बुशहरी नस्ल का पालन किया जाता है. गद्दी नस्ल की भेड़ चंबा, कुल्लू, कांगड़ा और मंडी जबकि रामपुर बुशहरी नस्ल किन्नौर, रामपुर और शिमला में पाई जाती है. राज्य में वर्ष 2019 में की गई पशुधन गणना के अनुसार राज्य में कुल 7,91,345 भेड़ें हैं. जिसमें विदेशी नस्ल की संख्या 72821 है और स्वदेशी नस्ल की 7,18,524 भेंड़ें है. भेड़पालक ऊन, पशु, मांस, खाद और दूध इत्यादि उत्पादों की बिक्री के माध्यम से आय अर्जित कर रहे हैं. भेड़पालकों के हितों की रक्षा के लिए राज्य की शीर्ष सहकारी संस्था हिमाचल प्रदेश वूल फेडरेशन महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.

फेडरेशन ने तकनीकी और यांत्रिक उपकरणों के माध्यम से भेड़ की ऊन निकालने की सुविधाएं प्रदान करने के साथ-साथ भेड़पालकों से ऊन की खरीद के लिए 133.39 करोड़ रुपये का रिवॉल्विंग फंड भी बनाया है. फेडरेशन द्वारा बाजार को ध्यान में रखते हुए ऊन की 125 से 150 मीट्रिक टन की खरीद भी की जा रही है, इसके लिए भेड़ पालकों को मौके पर भुगतान भी किया जा रहा है.

देश के साथ विदेशों में भी हिमाचली ऊन की डिमांड
देश के साथ विदेशों में भी हिमाचली ऊन की डिमांड

भेड़ों की ऊन निकालने की सुविधा दे रहा है फेडरेशन: हिमाचल प्रदेश वूल फेडरेशन द्वारा प्रदेश के भेड़ पालकों को 11 रुपये से 13 रुपये प्रति भेड़ तक की रियायती दरों पर उपकरणों द्वारा भेड़ की ऊन निकालने की सुविधा दी जा रही है. उपकरणों से भेड़ की ऊन निकालने से समय की बचत हो रही है. साथ ही पशु के स्वास्थ्य के अनुकूल भी होती है. यह सुविधा प्रशिक्षित और अनुभवी भेड़पालकों की मदद से दी जा रही है.

हिमाचली ऊन की बाजारों में लगातार बढ़ रही है मांग: गुणवत्ता के लिहाज से विशिष्ट पहचान रखने वाली हिमाचली ऊन की मांग बाजारों में निरंतर बढ़ रही है. हिमाचली ऊन प्रदेश के विभिन्न भागों के साथ-साथ पश्चिमी बाजारों की आवश्यकताओं को भी पूरा कर रही है. प्रदेश के निजी हितधारक भी राज्य के कुछ हिस्सों में हिमाचली ऊन के जैविक प्रमाणन और अन्य प्रमाणन जैसे आर.डब्ल्यू.एस. (रिस्पॉन्सिबल वूल स्टैंडर्ड्स) में निवेश कर रहे हैं.

15 लाख किलो ऊन का किया जा रहा है उत्पादन: हिमाचल प्रदेश वूल फेडरेशन के एक प्रवक्ता ने बताया कि राज्य में कुल 15.50 लाख किलोग्राम ऊन का उत्पादन किया जा रहा है, जिसके आधार पर प्रति भेड़ करीब 1.9 किलोग्राम का उत्पादन होता है. ऊन के दामों की बात करें तो सफेद ऊन की दर 34.10 रुपए किलो से लेकर 71.50 रुपये किलो और काली ऊन 25.50 रुपए किलो से लेकर 45 रुपये किलो है. हिमाचल प्रदेश वूल फेडरेशन भेड़पालकों को भेड़ों की क्रॉस-ब्रीडिंग प्रक्रिया अपनाने और वस्त्र उद्योग की मांग के अनुसार परिधान निर्माण में उच्च गुणवत्ता वाली ऊन उत्पादित करने के लिए के लिए प्रेरित कर रही है.

भेड़पालकों ने कहा, फेडरेशन कर रहा मदद: चंबा जिले के होली के गांव देओल के प्रगतिशील भेड़पालक जय सिंह ने बताया कि वह वूल फेडरेशन को लगभग 900 से 1000 किलोग्राम क्रॉसब्रीड ऊन 85.80 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से विक्रय करते हैं. वूल फेडरेशन की ऊन निकालने की टीमें भरमौर में उनकी भेड़ों की ऊन निकालने में मदद करती है. फेडरेशन के सहयोग से वह 800 भेड़ों के झुंड को सफलतापूर्वक पालने में सफल हुए हैं. पारंपरिक रूप से ऊन निकालने वाले लोग बहुत कम रह गए हैं और वे प्रति भेड़ 25 रुपये से 30 रुपये शुल्क लेते हैं.

कांगड़ा जिले के छोटा भंगाल के भेड़ पालक मोहिंदर ठाकुर ने बताया कि वह सर्दियों में अपने लगभग 300 भेड़ों के झुंड के साथ नालागढ़ के पास रामशहर चले जाते हैं. फेडरेशन उन्हें रामशहर के पास जंगल में भेड़ की ऊन निकालने की सुविधा प्रदान करता है और नियमित रूप से प्रशिक्षण शिविर भी आयोजित करता है. जिससे उनकी समस्याओं के निवारण के लिए स्थानीय पशु चिकित्सकों से परामर्श और प्रशासन से आवश्यक सहायता भी मिलती है.

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Last Updated : Feb 26, 2023, 8:15 PM IST
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