शिमला: राजनीतिक संतुलन बनाने के लिए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने 6 विधायकों को मुख्य संसदीय सचिव बनाया (Chief Parliamentary Secretary in Himachal) है. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने सचिवालय में सभी 6 विधायकों को मुख्य संसदीय सचिव पद की शपथ दिलाई. अब सबसे पहला सवाल मन में यही आता है कि आखिर ये संसदीय सचिव क्या होता है और इनके कार्य क्या होते हैं. बता दें कि मुख्य संसदीय सचिव और संसदीय सचिव में बस सैलरी और सुविधाओं का थोड़ा सा फर्क है. हिमाचल प्रदेश में मुख्य संसदीय सचिव का वेतन 40 हजार से बढ़कर अब 65 हजार प्रति माह हो गया है. संसदीय सचिव को 35 हजार मासिक के स्थान पर 60 हजार रुपए मासिक मिलेंगे. अन्य भत्ते समान रहेंगे. अप्रैल 2016 में वीरभद्र सरकार ने वेतन बढ़ोतरी की थी.
संसदीय सचिव/पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी है क्या?: एकदम आसान भाषा में कहें, तो संसदीय सचिव का पद वित्तीय लाभ का पद है. संसदीय सचिव जिस किसी भी मंत्री के साथ जुड़ा होता है, वो उसकी मदद करता है. बदले में उसे पैसा, कार जैसी जरूरी सुविधाएं मिलती हैं. ये ब्रिटिश सिस्टम की देन है. इंग्लैंड में मंत्री संसद के उसी सदन में जा सकता है, जिसका वो सदस्य होता है. तो दोनों सदनों में काम करने के लिए मंत्री को पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी की जरूरत पड़ती है. पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी अपने मंत्री की तरफ से किसी भी सदन में जा सकता है. भारत में मंत्री लोकसभा या राज्यसभा, किसी भी सदन में जा सकते हैं. मंत्रियों की मदद के लिए केंद्र में मिनिस्ट्री ऑफ़ पार्लियामेंट्री अफेयर्स है, जो इस तरह के काम देखती है. उसी के अंतर्गत पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी आते हैं.
अब स्टेट में पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी का क्या काम?: पार्लियामेंट तो केंद्र में है सीधे-सीधे कहें, तो राज्यों में कई बार मंत्री पद न मिलने से नाखुश विधायकों को ये पोस्ट दे दी जाती है. पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी को राज्यमंत्री या कैबिनेट मंत्री की रैंक दी जाती है. उनको सारी सुविधाएं भी मंत्री वाली ही मिलती हैं. पर क्या राज्य सरकारों का ऐसा करना ठीक है? किसी विधायक को खुश करने के लिए जनता का पैसा बर्बाद करना उचित है?
संविधान क्या कहता है?: 2003 में संविधान में एक संशोधन किया गया था. इस 91वें संशोधन के मुताबिक आर्टिकल 164(1A) जोड़ा गया. इसमें कहा गया कि किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री को मिलाकर कुल विधायकों का 15 फीसदी ही मंत्री रह सकते हैं. यानी 100 विधायक हैं, तो कुल 15 मंत्री. मतलब हर किसी को मंत्री बनाकर पैसा बांटना बंद. दिल्ली के लिए आर्टिकल 239 (A) है. यहां 10 फीसदी तक ही मंत्री हो सकते हैं. यानी कुल 70 विधायकों में से 7 विधायक ही मंत्री रह सकते हैं. लेकिन राज्य सरकारों में भी चतुर लोग बैठे हैं. इन्होंने तुरंत अपना एक कानून बनाया. West Bengal Parliamentary Secretaries (Appointment, Salaries, Allowances and Miscellaneous Provisions) Bill, 2012 टाइप का. कई राज्यों में. ऐसे कानून से पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी का पोस्ट बनाया गया. मंत्री की रैंक रहेगी. (What is parliamentary secretary)
विधायक को और क्या चाहिए पद, सिक्योरिटी, दबदबा. मंत्री जी वाला रुतबा पर मामला फिर फंसा. संविधान के आर्टिकल 191 के मुताबिक, कोई विधायक या सांसद सरकार के अंतर्गत किसी 'लाभ के पद' पर नहीं रह सकता. ऐसा होने पर विधायकी से बर्खास्त हो जाएंगे. हालांकि कैबिनेट मिनिस्टर या मिनिस्टर ऑफ स्टेट को 'लाभ का पद' नहीं माना जाता, पर पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी को 'लाभ का पद' माना जाता है. (Chief Parliamentary Secretary in Himachal)
इसका क्या उपाय है?: इसका भी तोड़ है. राज्य सरकार कानून लाकर पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी के पोस्ट को 'लाभ के पद' से मुक्त कर देती है.जैसे दिल्ली सरकार के कानून Delhi Members of Legislative Assembly (Removal of Disqualification) Act, 1997 के मुताबिक, ये लाभ का ही पद है. अरविंद केजरीवाल सरकार ने कानून में बदलाव लाते हुए जून, 2015 में Delhi Members of Legislative Assembly (Removal of Disqualification) Bill, 2015 लाया. इसमें प्रावधान था कि मंत्रियों को दिए गए पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी पोस्ट को लाभ का पद न माना जाये. साथ ही इसे बैक-डेट यानी से लागू किया जाए. (what are parliamentary secretaries)
दिक्कत कहां है?: मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों के अलावा बाकी सारे विधायक, चाहे सरकार की पार्टी के हों या किसी और पार्टी के, कानून बनाने की प्रक्रिया में भाग लेते हैं. ये दबाव के जरिए सरकार पर लगाम भी रखते हैं. अब पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी बनाकर किसी विधायक को किसी मंत्री के नीचे लाना एक तरह से इस व्यवस्था को तोड़ना है. सत्ता के मन के अनुरूप ढालना है. कुल मिलाकर अगर कहें तो ये लाभ का पद है और ये सिर्फ अपने नाराज विधायकों को अपने साथ लाने का जरिया है.
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