शिमला: हिमाचल सरकार राज्य की नदियों के पानी पर बनी जलविद्युत परियोजनाओं पर वाटर सेस के जरिए कमाई करना चाहती है. देश के कुछ और राज्यों ने भी अपने यहां वाटर सेस लगाया है. जेएंडके सरकार हर साल वाटर सेस के रूप में एक हजार करोड़ रुपए का राजस्व जुटाती है. हिमाचल की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने भी राज्य को आर्थिक संकट से निकालने के लिए वाटर सेस लागू करने से जुड़ा विधेयक विधानसभा में पारित किया है. हिमाचल सरकार ने अपने यहां चल रही 172 जलविद्युत परियोजनाओं पर वाटर सेस लगाने का फैसला लिया है, लेकिन सुखविंदर सरकार का ये निर्णय कुछ प्रोजेक्ट्स को रास नहीं आया है.
परिणामस्वरूप वाटर सेस के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की गई हैं. हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट में वाटर सेस मामले को लेकर 16 अगस्त को सुनवाई होनी है. सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार किसी भी कीमत पर वाटर सेस से होने वाली कमाई पर पानी नहीं फिरने देना चाहती है. यही कारण है कि हाई कोर्ट में राज्य सरकार ने अपने पक्ष में कई मजबूत तर्क जुटाने का काम किया है. हिमाचल सरकार का मानना है कि जब देश के अन्य राज्य अपने यहां वाटर सेस लगाकर कमाई कर रहे हैं तो हिमाचल को इस हक से वंचित क्यों किया जा रहा है?
हिमाचल सरकार का तर्क है कि पानी राज्य के जलशक्ति विभाग का विषय है और उसके पास राज्य की नदियों में बह रहे पानी पर सेस लगाने का अधिकार है. राज्य की जिन नदियों के ऊपर स्थापित जलविद्युत परियोजनाएं उस नदी के पानी का प्रयोग कर रही है, उन पर सेस लगाना सरकार के क्षेत्राधिकार में है. सुखविंदर सिंह सरकार हाई कोर्ट में केस की मजबूत पैरवी के लिए जिन तर्कों पर काम कर रही है, उसमें एक तर्क ये है कि जब अन्य राज्य इसी तरीके से राजस्व जुटा रहे हैं तो केंद्र सरकार हिमाचल का विरोध क्यों कर रही है? केंद्र सरकार के संबंधित मंत्रालय ने सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाओं से वाटर सेस के खिलाफ हाई कोर्ट जाने को लेकर पत्र क्यों लिखा?
पड़ोसी राज्य उत्तराखंड भी कर रहा कमाई: हिमाचल का पड़ोसी राज्य उत्तराखंड भी वाटर सेस से कमाई कर रहा है. इसके अलावा इस समय जम्मू-कश्मीर, सिक्किम और तेलंगाना भी सेस से राजस्व जुटा रहा है. सिक्किम सरकार ने अपने यहां जलविद्युत परियोजनाओं में इस सेस को फॉरेस्ट इकोसिस्टम सेस के तौर पर लागू किया हुआ है. हिमाचल सरकार को भी उम्मीद है कि 172 जलविद्युत परियोजनाओं में लगाए जाने वाले सेस से उसको सालाना 800 से 1000 करोड़ रुपए के राजस्व की कमाई होगी.
हिमाचल की सुखविंदर सिंह सरकार ने अपने पहले ही बजट सत्र में वाटर सेस से जुड़ा बिल पारित किया है. कुल 172 परियोजनाएं इसके दायरे में आएंगी. इसके लिए राज्य सरकार ने वाटर कमीशन का गठन भी किया है. हाल ही में जलशक्ति विभाग से रिटायर सचिव आईएएस अफसर अमिताभ अवस्थी को राज्य का पहला वाटर कमीशन चेयरमैन बनाया है. वहीं, राज्य सरकार भी निरंतर ऊर्जा उत्पादकों के साथ मिलकर सेस को लेकर स्थिति स्पष्ट कर रही है. ऊर्जा सचिव राजीव शर्मा कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा कर चुके हैं. ऐसा भी संकेत है कि राज्य सरकार प्रस्तावित वाटर सेस की दरों में कटौती कर सकती है.
एक साथ सभी याचिकाओं पर सुनवाई: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट में अलग-अलग प्रोजेक्ट्स की तरफ से याचिकाएं दाखिल की गई थी. हाई कोर्ट ने उन सभी याचिकाओं की एक साथ सुनवाई तय की है. हाई कोर्ट में एनटीपीसी यानी नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन, बीबीएमबी यानी भाखड़ा-ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड, एनएचपीसी यानी नेशनल हाइड्रो पावर कारपोरेशन व एसजेएनवीएल यानी सतलुज जलविद्युत निगम लिमिटेड ने अलग-अलग याचिकाएं दायर की थी. हाई कोर्ट ने सभी याचिकाओं को एक साथ सुनने का निर्णय लिया.
यही नहीं, राज्य में सक्रिय कुछ प्राइवेट पावर प्रोजेक्ट कंपनियों ने भी वाटर सेस लागू को याचिकाओं के माध्यम से चुनौती दी है. एनटीपीसी, बीबीएमबी, एनएचपीसी और एसजेवीएनएल ने अपनी याचिकाओं में तर्क दिया है कि केंद्र और राज्य सरकार के साथ अनुबंध के आधार पर कंपनियां राज्य को 12 से 15 फीसदी बिजली निशुल्क देती हैं. इस स्थिति में हिमाचल प्रदेश वाटर सेस अधिनियम के तहत कंपनियों से सेस वसूलने का प्रावधान संविधान के अनुरूप नहीं है. पूर्व में सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि 25 अप्रैल 2023 को केंद्र सरकार ने पाया कि देश में कुछ राज्य केंद्रीय उपक्रमों पर वाटर सेस वसूलने की प्रक्रिया शुरू कर चुके हैं. इस पर केंद्र सरकार ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर आगाह किया हुआ है कि वाटर सेस न वसूला जाए.
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