शिमला: जाइका (जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी Japan International Cooperation Agency) के तहत प्रदेश में वनों के धनत्व को बढ़ाने के लिए कई उपाय कर रही है. जायका के चीफ प्रोजेक्ट डायरेक्टर नागेश गुलेरिया ने कहा कि हिमाचल सरकार ने प्रदेश के अंदर ग्रीन कवर बढ़ाने के लिए अलग-अलग फंडिंग एजेंसी का सहारा लिया है. वर्तमान में जापान इंटरनेशनल फंडिंग एजेंसी प्रदेश में ग्रीन कवर बढ़ाने के लिए सहयोग कर रही है. जायका का प्रोजेक्ट 800 करोड़ का है, जिसमें 640 करोड़ रुपए जापान की तरफ से है और 160 करोड़ हिमाचल सरकार के शेयर है.
नागेश गुलेरिया ने कहा कि ग्रीन कवर या वन आवरण बढ़ाने के हम दो तरह से प्रयास करते हैं. पहला हमारे जंगलों और निजी भूमि पर अधिक से अधिक पौधरोपण करें. दूसरा वनों से आजीविका कमाने वाले लोग या फिर ऐसे लोग जो पूरी तरह से वनों पर निर्भर हैं उनको धीरे-धीरे दूसरी दिशा नें आत्मनिर्भर बनाना ताकि वनों को भी बचाया जा सके और उनका जीवन स्तर भी सुधारा जा सके. साथ ही ऐसे लोगों को रोजगार का दूसरा साधन भी उपलब्ध करवाया जा सके.
जाइका परियोजना के तहत इस साल 1601 हेक्टेयर क्षेत्र में पौधरोपण किया जा रहा है. इसमें से 854 हेक्टेयर पर स्थानीय लोगों ने खुद पौधे लगाए हैं. इसका सबसे अच्छा परिणाम ये रहा कि कोरोना संक्रमण के दौर में लोगों को रोजगार भी मिला और विभाग का उद्देश्य भी पूरा हुआ. इसके अलावा 747 हेक्टेयर क्षेत्र पर विभाग की तरफ से पौधरोपण किया गया. पौधों की जरूरत को पूरा करने के लिए प्रदेश के 5 सर्कल लेवल पर नर्सरी तैयार की जा रही है. रेंज लेवल पर 56 नर्सरियां तैयार की गई हैं. इनमें करीब 30 लाख 74 हजार 56 पौधे तैयार किए जा रहे हैं.
विलेज फोरेस्ट डेवलपमेंट सोसाइटी का गठन
वनों से ग्रामीणों की आत्मनिर्भता कम करने के लिए उन्हें अन्य कमाई के साधन उपलब्ध करवाए जा रहे हैं. इसके लिए जाइका प्रोजेक्ट के तहत गांव में वार्ड स्तर पर विलेज फॉरेस्ट डेवलपमेंट सोसाइटी का गठन किया जा रहा है. प्रदेश में 400 विलेज फॉरेस्ट डेवलेपमेंट सोसाइटी का गठन करने का लक्ष्य रखा है इनमें से पहले बैच में 79 सोसाइटी गाठन कर लिया गया है. दूसरे बैच की 183 के गठन की प्रक्रिया अभी जारी है. तीसरे बैच में 138 सोसाइटी के गठन का लक्ष्य रखा गया है. इन सोसाइटी को प्रदेश सरकार के पास सोसाइटी एक्ट के तहत गठित किया जाता है.
इसके बाद यह तय किया जाता है प्रोजेक्ट के माध्य से इस क्षेत्र में क्या काम किए जा सकते हैं. इसका माइक्रो प्लान तैयार करने के बाद टेक्निकल एक्सपर्ट से अप्रूव करवाया जाता है. फिर फाइनल डॉक्यूमेंट को सोसाइटी के जनरल हाउस में रखा जाता है गांव वालों से अनुमति मिलने के बाद धरातल पर कार्य शुरू किया जाता है. नागेश गुलेरिया ने कहा कि एक माइक्रो प्लान में 45 लाख रुपए प्रोजेक्ट के माध्यम से खर्च किया जा सकता है.
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प्रोजेक्ट के माध्यम से पहला कार्य जंगल की खाली पड़ी जमीन पर ग्रामीणों के सहयोग से पौधे लगाना है. इसके बाद ग्रामीणों को वनों के ऊपर से आत्मनिर्भरता को कम करके अन्य रोजगार के साधन उपलब्ध करवाना है. इसके लिए सेल्फ हेल्प ग्रुप का सहारा लिया जाता है और प्रोजेक्ट के माध्यम से सहायता की जाती है. जैसे किसी भी प्रकार का स्वरोजगार शुरू करने के लिए उससे संबंधित ट्रेनिंग देना या फिर ऐसी जड़ी बुटियां उगाने की ट्रेनिंग देना जिनकी मार्केट उपलब्ध हो.
ग्रामीणों को उत्पाद के लिए मार्केट उपलब्ध करवाना
जाइका के तहत ग्रामीणों को स्वरोजगार उपलब्ध करवाने के साथ-साथ उनके उत्पाद को मंडियों तक पहुंचाने और उचित बाजार उपलब्ध करने का भी प्रयास किया जा रहा है. ऐसे लोग जो वनों से जड़ी बूटियां इकट्ठा करते हैं उनको ट्रेनिंग देकर उन जड़ी बूटियों को जंगलों और निजी भूमि पर उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. जिनकी मार्केट में अच्छी डिमांड है. जिससे ग्रामीणों को अच्छी आय हो सके और वनों पर से निर्भरता कम की जा सके. मार्केट लिंक का कार्य भी प्रोजेक्ट के माध्यम से किया जाता है. लोगों की भागिदारी पर अधिक ध्यान दिया गया है. गांवों में पंचायत वार्ड के स्तर पर लोगों की भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है.
जीयो टैगिंग से की जा रही परियोजना की निगरानी
प्रोजेक्ट में कार्य सही तरीके से हो इसके लिए तीन स्तरीय निगरानी तत्र विकसित किया गया है. कंजरवेटर की अध्यक्षता में विशेष निगरानी सेल का गठन किया गया है. पहले चरण में फील्ड स्टाफ मौके पर जाकर कार्य की समीक्षा करता है. उसके बाद जाइका की टीम रिपोर्ट के आधार पर विचार करके कमियों को दूर करता है. इसके बाद गूगल अर्थ की सहायता से जीआईएस किया जाता है. इसके बाद जब परियोजना कार्य को 3 या 4 साल हो जाते हैं किसी बाहरी एजेंसी से भी निगरानी करवाई जाती है.
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