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एशिया के सबसे Richest village में एक है शिमला का ये गांव, आज तक खड्ड पर नहीं पक्का पुल

एशिया के सबसे अमीर गांव की सूची में टॉप 4 पर अपनी जगह बनाने वाले मड़ावग गांव में पुल सुविधा ना होने से स्थानीय लोग लकड़ी के बने जर्जर पुल से रोजाना गुजरने को मजबूर है. आवाजाही करते वक्त हमेशा राहगीरों को कोई अनहोनी होने का खतरा बना रहता है.

villagers face problems due to no bridge facility in shimla
पुल
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Published : Aug 20, 2020, 3:08 PM IST

शिमला: एक तरफ सरकार और प्रशासन जनता को हर सुविधा मुहैया कराने का डंका बजाती रहती है, लेकिन धरातल पर जब इसकी तस्वीर देखी जाती है, तो हकीकत कुछ और ही बयां करती है. दरअसल राजधानी शिमला के उपमंडल चौपाल के तहत आने वाला मड़ावग गांव एशिया के सबसे अमीर गांव की सूची में टॉप 4 पर अपनी जगह बनाए हुए है, लेकिन ये गांव सरकार की अनदेखी का शिकार बना हुआ है, क्योंकि यहां पर पुल सुविधा ना होने से रोज सैकड़ों लोग जान जोखिम में डालकर सफर करते हैं और प्रशासन आंख पर काली पट्टी बांधे बैठा हुआ है.

स्थानीय निवासी भरत सिंह ने बताया कि सेब की बम्पर पैदावार की वजह से मड़ावग को एशिया के सबसे अमीर गांव की सूची में शमिल किया गया है और कई नामी कंपनियां अपने ग्राहकों तक सेब का जूस पहुंचाने के लिए इसी गांव पर निर्भर हैं. उन्होंने बताया कि पूरे विश्व में सबसे ज्यादा सेब उत्पादन का खिताब भी इसी गांव के नाम है, लेकिन हिमाचल प्रदेश को विश्व भर में एक अलग पहचान दिलाने वाले गांव के प्रति सरकार का उदासीन रवैया है, जिसके चलते ग्रामीणों को मजबूरन लकड़ी के जर्जर पुल से गुजरना पड़ता है.

वीडियो

बागवान रमेश चामटा ने बताया कि बरसात के मौसम में गौरली-मड़ावग और माटल पंचायत के किनारे पर बहने वाली लोहना खड्ड का जलस्तर बढ़ जाता है और इन दिनों सेब की सीजन चरम सीमा पर है. ऐसे में सेब से भरी गाड़ियों और निजी वाहनों को लोहना खड्ड से पार करने में परेशानी का सामना करना पड़ता है. उन्होंने कहा कि सरकार ने लोहना खड्ड पर 1 करोड़ 68 लाख रुपये की लागत से बनने वाले पुल का टेंडर भी एक ठेकेदार को दे दिया है, जिसका कार्य जून 2019 को पूरा होना था. साथ ही पुल के एक छोर पर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का बोर्ड लगाकर लोकनिर्माण विभाग ने उसमें पुल निर्माण से संबंधित सभी जानकारियां भी अंकित की है, लेकिन आज तक कोई काम पूरी नहीं हुआ है.

लोकनिर्माण मंडल के अधिशासी अभियंता जगदीश चंद कानूनगो ने बताया कि पुल का टेंडर जनवरी 2018 में एक ठेकेदार को अलॉट किया गया था और उसका निर्माण कार्य जून 2019 तक पूरा किया जाना था, लेकिन तकनीकी अवरोध की वजह से 3 साल बाद भी पुल का निर्माण कार्य शुरू नहीं किया गया. उन्होंने कहा कि तकनीकी खामियों को जल्द ठीक किया जाएगा और आने वाले एक साल के अंदर लोहना खड्ड पर पुल का निर्माण करके जनता को समर्पित किया जाएगा.

बता दें कि शिमला से 92 किलोमीटर दूर 7774 फीट ऊंचाई पर बसे मड़ावग गांव को सेब की सबसे अधिक पैदावार होने पर एशिया के सबसे बड़े अमीर गांवों की सूची में चौथे पायदान पर रखा गया है. यहां पर हर परिवार की सालाना आमदनी 70 से 75 लाख रुपये है.

ये भी पढ़ें: नदियों में जहर घोल रही BBN की काठा डंपिंग साइट, सवालों के घेरे में प्रशासन

शिमला: एक तरफ सरकार और प्रशासन जनता को हर सुविधा मुहैया कराने का डंका बजाती रहती है, लेकिन धरातल पर जब इसकी तस्वीर देखी जाती है, तो हकीकत कुछ और ही बयां करती है. दरअसल राजधानी शिमला के उपमंडल चौपाल के तहत आने वाला मड़ावग गांव एशिया के सबसे अमीर गांव की सूची में टॉप 4 पर अपनी जगह बनाए हुए है, लेकिन ये गांव सरकार की अनदेखी का शिकार बना हुआ है, क्योंकि यहां पर पुल सुविधा ना होने से रोज सैकड़ों लोग जान जोखिम में डालकर सफर करते हैं और प्रशासन आंख पर काली पट्टी बांधे बैठा हुआ है.

स्थानीय निवासी भरत सिंह ने बताया कि सेब की बम्पर पैदावार की वजह से मड़ावग को एशिया के सबसे अमीर गांव की सूची में शमिल किया गया है और कई नामी कंपनियां अपने ग्राहकों तक सेब का जूस पहुंचाने के लिए इसी गांव पर निर्भर हैं. उन्होंने बताया कि पूरे विश्व में सबसे ज्यादा सेब उत्पादन का खिताब भी इसी गांव के नाम है, लेकिन हिमाचल प्रदेश को विश्व भर में एक अलग पहचान दिलाने वाले गांव के प्रति सरकार का उदासीन रवैया है, जिसके चलते ग्रामीणों को मजबूरन लकड़ी के जर्जर पुल से गुजरना पड़ता है.

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बागवान रमेश चामटा ने बताया कि बरसात के मौसम में गौरली-मड़ावग और माटल पंचायत के किनारे पर बहने वाली लोहना खड्ड का जलस्तर बढ़ जाता है और इन दिनों सेब की सीजन चरम सीमा पर है. ऐसे में सेब से भरी गाड़ियों और निजी वाहनों को लोहना खड्ड से पार करने में परेशानी का सामना करना पड़ता है. उन्होंने कहा कि सरकार ने लोहना खड्ड पर 1 करोड़ 68 लाख रुपये की लागत से बनने वाले पुल का टेंडर भी एक ठेकेदार को दे दिया है, जिसका कार्य जून 2019 को पूरा होना था. साथ ही पुल के एक छोर पर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का बोर्ड लगाकर लोकनिर्माण विभाग ने उसमें पुल निर्माण से संबंधित सभी जानकारियां भी अंकित की है, लेकिन आज तक कोई काम पूरी नहीं हुआ है.

लोकनिर्माण मंडल के अधिशासी अभियंता जगदीश चंद कानूनगो ने बताया कि पुल का टेंडर जनवरी 2018 में एक ठेकेदार को अलॉट किया गया था और उसका निर्माण कार्य जून 2019 तक पूरा किया जाना था, लेकिन तकनीकी अवरोध की वजह से 3 साल बाद भी पुल का निर्माण कार्य शुरू नहीं किया गया. उन्होंने कहा कि तकनीकी खामियों को जल्द ठीक किया जाएगा और आने वाले एक साल के अंदर लोहना खड्ड पर पुल का निर्माण करके जनता को समर्पित किया जाएगा.

बता दें कि शिमला से 92 किलोमीटर दूर 7774 फीट ऊंचाई पर बसे मड़ावग गांव को सेब की सबसे अधिक पैदावार होने पर एशिया के सबसे बड़े अमीर गांवों की सूची में चौथे पायदान पर रखा गया है. यहां पर हर परिवार की सालाना आमदनी 70 से 75 लाख रुपये है.

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