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IGMC में स्क्रब टाइफस और स्वाइन फ्लू के नहीं हो रहे टेस्ट, सिर्फ कोरोना पर फोकस

आईजीएमसी समेत अन्य अस्पतालों में स्क्रब टाइफस समेत स्वाइन फ्लू के टेस्ट ही नहीं हुए हैं. इसके चलते इन गंभीर बीमारियों के मरीजों का पता ही नहीं चल पा रहा है. सर्दी-खांसी, जुकाम, बुखार जैसे लक्षण दिखने पर अब कोरोना के टेस्ट करवाए जा रहे हैं, जबकि यही लक्षण स्वाइन फ्लू ओर स्क्रब टाइफस के भी हैं.

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Published : Apr 27, 2021, 10:16 AM IST

Tests of swine flu and scrub typhus stopped at IGMC SHIMLA
फोटो.

शिमला: कोरोना संक्रमण का असर अब अन्य गंभीर बीमारियों के इलाज पर भी पड़ रहा है. सर्दी-खांसी, जुकाम, बुखार जैसे लक्षण दिखने पर अब कोरोना के टेस्ट करवाए जा रहे हैं, जबकि यही लक्षण स्वाइन फ्लू ओर स्क्रब टाइफस के भी हैं, लेकिन आईजीएमसी समेत अन्य अस्पतालों में इसके टेस्ट ही नहीं हुए हैं. इसके चलते इन गंभीर बीमारियों के मरीजों का पता ही नहीं चल पा रहा है.

अप्पर शिमला में सबसे ज्यादा फैलने वाले स्क्रब टाइफस के मरीज इस साल सामने ही नहीं आए हैं. सालभर इस बीमारी के मरीज अस्पताल पहुंचते थे, लेकिन जुलाई के बाद यह बीमारी पूरी तरह से फैल जाती थी. हर साल इस बीमारी से कई लोगों की मौत भी हो जाती थी. आमतौर पर स्क्रब टाइफस के लक्षण कोरोना की तरह ही दिखते हैं. मरीज को तेज बुखार के साथ शरीर में जकड़न, जुकाम, ठंड लगना इसके प्रमुख लक्षण हैं, लेकिन अब बुखार और जुकाम के मरीजों का सीधा कोरोना टेस्ट करवाया जा रहा है.

हर साल आते हैं स्क्रब टाइफस के 1500 से अधिक मरीज

जानकारी के अनुसार आईजीएमसी में हर साल स्क्रब टाइफस के 1500 से ज्यादा सैंपल लिए जाते थे, इसमें 400 के करीब मरीज पॉजिटिव होते थे, जबकि 45 से 60 मौतें भी स्क्रब टाइफस से आईजीएमसी में हो जाती थी. बरसात में स्क्रब टाइफस एक बार फिर से जोर पकड़ लेगा. उसके बाद लगातार अलग-अलग इलाकों से इसके लक्षण वाले मरीज आना शुरू हो जाएंगे. बता दें कि स्क्रब टायफस बरसात के मौसम में घासनियों में पिस्सू के काटने से होता है.

स्वाइन फ्लू के भी नहीं हुए टेस्ट

स्वाइन फ्लू के भी हर साल आईजीएमसी में कई मरीज आते थे. गर्मियों के दौरान स्वाइन फ्लू का ज्यादा असर रहता था. आजकल स्वाइन फ्लू के मरीजों का आना शुरू हो जाता था. स्वाइन फ्लू के हर साल आईजीएमसी में 50 से ज्यादा मरीज दो से तीन माह में आ जाते थे, लेकिन अभी तक आईजीएमसी में स्वाइन फ्लू की टेस्टिंग ही शुरू नहीं की गई है. यहां पर केवल कोरोना की सैंपलिंग की जा रही है. ऐसे में इसके मरीजों का पता ही नहीं पा रहा है.

स्टाफ की कमी

स्टाफ की कमी के कारण भी स्क्रब टाइफस और स्वाइन फ्लू के टेस्ट नहीं हो पा रहे हैं. आईजीएमसी का पूरा स्टाफ कोरोना की सैंपलिंग में लगा हुआ है. मशीनों से भी कोरोना टेस्टिंग की जा रही. एसे में अन्य टेस्ट के लिए ना तो यहां पर स्टाफ है और ना ही मशीनें. इसके अलावा दोपहर 12 बजे तक अन्य बीमारियों के ब्लड टेस्ट भी किए जा रहे हैं.

वहीं इस बारे में आईजीएमसी के प्रशासनिक अधिकारी डॉ. राहुल गुप्ता का कहना है कि प्रशासन की प्राथमिकता कोरोना है. स्क्रब टाइफस या स्वाइन फ्लू के लक्षण वाले मरीज यहां पर आए ही नहीं है. ऐसे में टेस्ट की जरूरत ही नहीं पड़ी.

ये भी पढ़ें: शिमला: अस्पताल में ऑक्सीजन न मिलने से मरीज की मौत, परिजनों ने लगाया लापरवाही का आरोप

शिमला: कोरोना संक्रमण का असर अब अन्य गंभीर बीमारियों के इलाज पर भी पड़ रहा है. सर्दी-खांसी, जुकाम, बुखार जैसे लक्षण दिखने पर अब कोरोना के टेस्ट करवाए जा रहे हैं, जबकि यही लक्षण स्वाइन फ्लू ओर स्क्रब टाइफस के भी हैं, लेकिन आईजीएमसी समेत अन्य अस्पतालों में इसके टेस्ट ही नहीं हुए हैं. इसके चलते इन गंभीर बीमारियों के मरीजों का पता ही नहीं चल पा रहा है.

अप्पर शिमला में सबसे ज्यादा फैलने वाले स्क्रब टाइफस के मरीज इस साल सामने ही नहीं आए हैं. सालभर इस बीमारी के मरीज अस्पताल पहुंचते थे, लेकिन जुलाई के बाद यह बीमारी पूरी तरह से फैल जाती थी. हर साल इस बीमारी से कई लोगों की मौत भी हो जाती थी. आमतौर पर स्क्रब टाइफस के लक्षण कोरोना की तरह ही दिखते हैं. मरीज को तेज बुखार के साथ शरीर में जकड़न, जुकाम, ठंड लगना इसके प्रमुख लक्षण हैं, लेकिन अब बुखार और जुकाम के मरीजों का सीधा कोरोना टेस्ट करवाया जा रहा है.

हर साल आते हैं स्क्रब टाइफस के 1500 से अधिक मरीज

जानकारी के अनुसार आईजीएमसी में हर साल स्क्रब टाइफस के 1500 से ज्यादा सैंपल लिए जाते थे, इसमें 400 के करीब मरीज पॉजिटिव होते थे, जबकि 45 से 60 मौतें भी स्क्रब टाइफस से आईजीएमसी में हो जाती थी. बरसात में स्क्रब टाइफस एक बार फिर से जोर पकड़ लेगा. उसके बाद लगातार अलग-अलग इलाकों से इसके लक्षण वाले मरीज आना शुरू हो जाएंगे. बता दें कि स्क्रब टायफस बरसात के मौसम में घासनियों में पिस्सू के काटने से होता है.

स्वाइन फ्लू के भी नहीं हुए टेस्ट

स्वाइन फ्लू के भी हर साल आईजीएमसी में कई मरीज आते थे. गर्मियों के दौरान स्वाइन फ्लू का ज्यादा असर रहता था. आजकल स्वाइन फ्लू के मरीजों का आना शुरू हो जाता था. स्वाइन फ्लू के हर साल आईजीएमसी में 50 से ज्यादा मरीज दो से तीन माह में आ जाते थे, लेकिन अभी तक आईजीएमसी में स्वाइन फ्लू की टेस्टिंग ही शुरू नहीं की गई है. यहां पर केवल कोरोना की सैंपलिंग की जा रही है. ऐसे में इसके मरीजों का पता ही नहीं पा रहा है.

स्टाफ की कमी

स्टाफ की कमी के कारण भी स्क्रब टाइफस और स्वाइन फ्लू के टेस्ट नहीं हो पा रहे हैं. आईजीएमसी का पूरा स्टाफ कोरोना की सैंपलिंग में लगा हुआ है. मशीनों से भी कोरोना टेस्टिंग की जा रही. एसे में अन्य टेस्ट के लिए ना तो यहां पर स्टाफ है और ना ही मशीनें. इसके अलावा दोपहर 12 बजे तक अन्य बीमारियों के ब्लड टेस्ट भी किए जा रहे हैं.

वहीं इस बारे में आईजीएमसी के प्रशासनिक अधिकारी डॉ. राहुल गुप्ता का कहना है कि प्रशासन की प्राथमिकता कोरोना है. स्क्रब टाइफस या स्वाइन फ्लू के लक्षण वाले मरीज यहां पर आए ही नहीं है. ऐसे में टेस्ट की जरूरत ही नहीं पड़ी.

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