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रद्द नहीं होंगी एचपी न्यायिक सेवाएं के दो सिविल जजों की नियुक्तियां, सुप्रीम कोर्ट ने दी बड़ी राहत - सुप्रीम कोर्ट का फैसला

Supreme Court: एचपी न्यायिक सेवाएं के दो सिविल जजों की नियुक्तियां मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है. मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों सिविल जजों की नियुक्तियां को रद्द करने से इनकार कर दिया है. पढ़िए पूरी खबर...

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Nov 21, 2023, 9:20 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश न्यायिक सेवाएं (एचपी ज्यूडिशियल सर्विसेज) के दो जजों की नियुक्तियों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है. सर्वोच्च अदालत ने दो जजों को राहत देते हुए उनकी नियुक्तियों को रद्द करने से इनकार कर दिया है. हिमाचल हाईकोर्ट ने इन जजों की नियुक्ति को रद्द कर दिया था. हिमाचल हाईकोर्ट ने उपरोक्त दो सिविल जजों की नियुति को चुनौती देने वाली याचिकाओं को स्वीकार किया था. सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने दोनों के चयन और नियुक्ति को रद्द कर दिया था. बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट गया. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को कानूनी रूप से सही ठहराया है, लेकिन इन दो जजों की 9 साल से अधिक की लंबी सेवा से जुड़े तथ्य को ध्यान में रखते हुए उन्हें न्यायिक सेवा से बाहर करना उचित नहीं समझा है.

मामले के अनुसार प्रदेश हाईकोर्ट ने दो सिविल जजों की नियुक्तियों को अवैध ठहराते हुए खारिज कर दिया था. हाईकोर्ट के इस फैसले को दोनों प्रार्थियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. हाईकोर्ट की खंडपीठ ने सिविल जज विवेक कायथ व आकांक्षा डोगरा की नियुक्तियों को रद्द करने का फैसला सुनाया था. दोनों जज वर्ष 2013 बैच के न्यायिक अधिकारी थे. मामलों का निपटारा करते हुए हाईकोर्ट ने पाया था कि विवेक कायथ व आकांक्षा डोगरा की नियुक्तियां उन पदों के खिलाफ की गई, जिनका कोई विज्ञापन नहीं दिया गया. बिना विज्ञापन के इन पदों को भरने पर हाईकोर्ट ने हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग को चेताया कि भविष्य में ऐसी लापरवाही न करे.

मामले के अनुसार 1 फरवरी 2013 को हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग ने सिविल जजों के 8 खाली पदों को भरने के लिए विज्ञापन के माध्यम से आवेदन आमंत्रित किए थे. इनमें 6 पद पहले से खाली चल रहे थे और दो पद भविष्य में खाली होने वाले होने थे. आयोग ने अंतिम परिणाम निकाल कर कुल 8 अभ्यर्थियों की नियुक्तियों की अनुशंसा सरकार से की थी. साथ ही अन्य सफल अभ्यर्थियों की एक सिलेक्ट लिस्ट भी तैयार की. इस बीच प्रदेश में दो सिविल जजों के अतिरिक्त पद सृजित किए गए. लोक सेवा आयोग ने इन दो पदों को सिलेक्ट लिस्ट से भरने की प्रक्रिया आरम्भ की. इस प्रक्रिया में विवेक कायथ और आकांक्षा डोगरा को नियुक्ति देने की अनुशंसा की. सरकार ने भी इन दोनों की नियुक्तियां प्रदान कर दी.

मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो अदालत ने दोनों की नियुक्तियों को रद्द करते हुए कहा कि इन नए सृजित पदों को कानूनन विज्ञापित किया जाना जरूरी था, ताकि अन्य योग्यता रखने वाले अभ्यर्थियों को भी प्रतिस्पर्धा का मौका भी मिलता. हाईकोर्ट ने फैसले में स्पष्ट किया था कि इन जजों की नियुक्तियां रद्द होने से इन पदों को वर्ष 2021 की रिक्तियां माना जाए व इन्हें भरने की प्रक्रिया कानून के अनुसार की जाए. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को कानूनन सही ठहराया, लेकिन इनकी 9 साल से लंबी सेवा को ध्यान में रखते हुए दोनों जजों की नियुक्तियों को रद्द करने के आदेशों को खारिज कर दिया.

ये भी पढ़ें: हाइड्रो पावर सेक्टर के जीनियस नंदलाल शर्मा होंगे हरियाणा इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन के चेयरमैन, 7 साल से संभाल रहे एसजेवीएन के सीएमडी का पद

शिमला: हिमाचल प्रदेश न्यायिक सेवाएं (एचपी ज्यूडिशियल सर्विसेज) के दो जजों की नियुक्तियों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है. सर्वोच्च अदालत ने दो जजों को राहत देते हुए उनकी नियुक्तियों को रद्द करने से इनकार कर दिया है. हिमाचल हाईकोर्ट ने इन जजों की नियुक्ति को रद्द कर दिया था. हिमाचल हाईकोर्ट ने उपरोक्त दो सिविल जजों की नियुति को चुनौती देने वाली याचिकाओं को स्वीकार किया था. सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने दोनों के चयन और नियुक्ति को रद्द कर दिया था. बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट गया. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को कानूनी रूप से सही ठहराया है, लेकिन इन दो जजों की 9 साल से अधिक की लंबी सेवा से जुड़े तथ्य को ध्यान में रखते हुए उन्हें न्यायिक सेवा से बाहर करना उचित नहीं समझा है.

मामले के अनुसार प्रदेश हाईकोर्ट ने दो सिविल जजों की नियुक्तियों को अवैध ठहराते हुए खारिज कर दिया था. हाईकोर्ट के इस फैसले को दोनों प्रार्थियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. हाईकोर्ट की खंडपीठ ने सिविल जज विवेक कायथ व आकांक्षा डोगरा की नियुक्तियों को रद्द करने का फैसला सुनाया था. दोनों जज वर्ष 2013 बैच के न्यायिक अधिकारी थे. मामलों का निपटारा करते हुए हाईकोर्ट ने पाया था कि विवेक कायथ व आकांक्षा डोगरा की नियुक्तियां उन पदों के खिलाफ की गई, जिनका कोई विज्ञापन नहीं दिया गया. बिना विज्ञापन के इन पदों को भरने पर हाईकोर्ट ने हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग को चेताया कि भविष्य में ऐसी लापरवाही न करे.

मामले के अनुसार 1 फरवरी 2013 को हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग ने सिविल जजों के 8 खाली पदों को भरने के लिए विज्ञापन के माध्यम से आवेदन आमंत्रित किए थे. इनमें 6 पद पहले से खाली चल रहे थे और दो पद भविष्य में खाली होने वाले होने थे. आयोग ने अंतिम परिणाम निकाल कर कुल 8 अभ्यर्थियों की नियुक्तियों की अनुशंसा सरकार से की थी. साथ ही अन्य सफल अभ्यर्थियों की एक सिलेक्ट लिस्ट भी तैयार की. इस बीच प्रदेश में दो सिविल जजों के अतिरिक्त पद सृजित किए गए. लोक सेवा आयोग ने इन दो पदों को सिलेक्ट लिस्ट से भरने की प्रक्रिया आरम्भ की. इस प्रक्रिया में विवेक कायथ और आकांक्षा डोगरा को नियुक्ति देने की अनुशंसा की. सरकार ने भी इन दोनों की नियुक्तियां प्रदान कर दी.

मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो अदालत ने दोनों की नियुक्तियों को रद्द करते हुए कहा कि इन नए सृजित पदों को कानूनन विज्ञापित किया जाना जरूरी था, ताकि अन्य योग्यता रखने वाले अभ्यर्थियों को भी प्रतिस्पर्धा का मौका भी मिलता. हाईकोर्ट ने फैसले में स्पष्ट किया था कि इन जजों की नियुक्तियां रद्द होने से इन पदों को वर्ष 2021 की रिक्तियां माना जाए व इन्हें भरने की प्रक्रिया कानून के अनुसार की जाए. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को कानूनन सही ठहराया, लेकिन इनकी 9 साल से लंबी सेवा को ध्यान में रखते हुए दोनों जजों की नियुक्तियों को रद्द करने के आदेशों को खारिज कर दिया.

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