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कालका शिमला ट्रैक पर 8 माह के बाद दौड़ा 115 साल पुराना स्टीम इंजन, ट्रायल सफल

कोविड संकट के बीच में लगभग आठ महीने बाद एक बार फिर से विश्व धरोहर कालका शिमला रेलवे ट्रैक पर ऐतिहासिक स्टीम इंजन दौड़ता हुआ नजर आया. जैसे ही यह इंजन रेलवे ट्रैक पर चला तो आसपास के लोग इसे देखने के लिए इसकी झलक पाने के लिए ट्रैक के किनारे पहुंच गए.

Railway Station shimla
Railway Station shimla
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Published : Nov 2, 2020, 10:02 PM IST

Updated : Nov 2, 2020, 10:35 PM IST

शिमला: कोविड संकट के बीच में लगभग आठ महीने बाद एक बार फिर से विश्व धरोहर कालका शिमला रेलवे ट्रैक पर ऐतिहासिक स्टीम इंजन दौड़ता हुआ नजर आया. जैसे ही यह इंजन रेलवे ट्रैक पर चला तो आसपास के लोग इसकी झलक पाने के लिए ट्रैक के किनारे पहुंच गए.

रेलवे की ओर से स्टीम इंजन को आज ट्रायल के लिए शिमला रेलवे स्टेशन से कैथलिघाट तक चलाया गया. 115 साल पुराना इंजन विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है. स्टीम इंजन कालका शिमला रेलवे ट्रैक पर जब भी चलता है, तो स्थानीय लोगों के लिए भी इसे देखने का आकर्षण कम नहीं होता.

रेलवे ट्रैक पर सुबह 11:05 पर इंजन को प्लेटफार्म पर लाया गया जिसके बाद 11:15 पर स्टीम इंजन के लिए शिमला प्लेटफार्म से कैथलीघाट के लिए रवाना किया गया ओर शाम 4:30 बजे कैथलीघाट से वापस शिमला रेलवे स्टेशन पहुंचा.

वीडियो.

प्लेटफार्म पर स्टीम इंजन को देखने पहुंचे गए लोग

जैसे ही स्टीम इंजन को शिमला के प्लेटफार्म पर खड़ा किया गया तो इसकी तीखी सीटी की आवाज सुनकर और इसके इंजन से निकलने वाले धुएं को देखकर आसपास के स्थाई लोगों को स्टीम इंजन के चलने की जानकारी मिली तो वह इसे देखने के लिए प्लेटफार्म पर पहुंचे.

इसके बाद स्टीम इंजन को ट्रैक पर ट्रायल के लिए दौड़ाया गया और यह ट्रायल बिल्कुल सफल रहा है. कोविड की परिस्थितियों के बीच 8 महीने से 115 साल पुराने स्टीम इंजन को ट्रैक पर नहीं चलाया गया है.

ऐसे में अब रेलवे की ओर से स्टीम इंजन का ट्रायल किया गया है कि स्टीम इंजन में किसी तरह की कोई खराबी तो नहीं है. स्टीम इंजन के लिए ट्रायल के लिए इसके साथ दो कोच भी लगाए गए थे जिसमें रेलवे के ही तकनीकी कर्मचारियों ने कैथलीघाट तक का सफर किया.

115 साल पुराना है लोकोमोटिव इंजन

केसी-520 स्टीम लोकोमोटिव इंजन 115 साल पुराना है. 1905 में अंग्रेजों ने शिमला से कैथलीघाट के बीच चलाया था. 1971 के बाद 30 सालों तक वर्कशॉप में खड़ा रहा जिसके बाद 2001 में दोबारा बन कर तैयार हुआ.

यह इंजन 41 टन का है और इसकी क्षमता 80 टन तक खींचने की है. स्टीम लोकोमोटिव इंजन से छुक-छुक की आवाज आती है. स्टीम इंजन में भाप के पिस्टन में आगे पीछे चलने और बाहर निकलने से छुक-छुक की आवाज पैदा होती है.

स्टीम इंजन में बजने वाली सीटी भाप के दबाव से बजती है. डीजल इंजन के मुकाबले स्टीम इंजन की सीटी ज्यादा तीखी और दूर तक सुनाई देने वाली होती है जो सबके लिए आकर्षण का केंद्र रहती है. रेलवे की ओर से बुकिंग पर ही स्टीम इंजन को ट्रैक पर चलाया जाता है.

स्टीम इंजन में विदेशी सैलानी पटक कर सफर करने में खासी रुचि दिखाते हैं. 1 लाख 15 हजार रुपये में इसकी बुकिंग करते हैं और शिमला से कैथलीघाट तक का सफर करने के लिए प्राथमिकता देते हैं. शिमला रेलवे स्टेशन के अधीक्षक प्रिंस सेठी ने बताया कि आज ट्रायल के लिए स्टीम इंजन को ट्रैक पर चलाया गया था और यह ट्रायल पूरी तरह से सफल रहा है.

पढ़ें: आगामी 2 दिनों में प्रदेश के 8 जिलों में मौसम रहेगा खराब, ऊपरी क्षेत्रों में बर्फबारी की संभावना

शिमला: कोविड संकट के बीच में लगभग आठ महीने बाद एक बार फिर से विश्व धरोहर कालका शिमला रेलवे ट्रैक पर ऐतिहासिक स्टीम इंजन दौड़ता हुआ नजर आया. जैसे ही यह इंजन रेलवे ट्रैक पर चला तो आसपास के लोग इसकी झलक पाने के लिए ट्रैक के किनारे पहुंच गए.

रेलवे की ओर से स्टीम इंजन को आज ट्रायल के लिए शिमला रेलवे स्टेशन से कैथलिघाट तक चलाया गया. 115 साल पुराना इंजन विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है. स्टीम इंजन कालका शिमला रेलवे ट्रैक पर जब भी चलता है, तो स्थानीय लोगों के लिए भी इसे देखने का आकर्षण कम नहीं होता.

रेलवे ट्रैक पर सुबह 11:05 पर इंजन को प्लेटफार्म पर लाया गया जिसके बाद 11:15 पर स्टीम इंजन के लिए शिमला प्लेटफार्म से कैथलीघाट के लिए रवाना किया गया ओर शाम 4:30 बजे कैथलीघाट से वापस शिमला रेलवे स्टेशन पहुंचा.

वीडियो.

प्लेटफार्म पर स्टीम इंजन को देखने पहुंचे गए लोग

जैसे ही स्टीम इंजन को शिमला के प्लेटफार्म पर खड़ा किया गया तो इसकी तीखी सीटी की आवाज सुनकर और इसके इंजन से निकलने वाले धुएं को देखकर आसपास के स्थाई लोगों को स्टीम इंजन के चलने की जानकारी मिली तो वह इसे देखने के लिए प्लेटफार्म पर पहुंचे.

इसके बाद स्टीम इंजन को ट्रैक पर ट्रायल के लिए दौड़ाया गया और यह ट्रायल बिल्कुल सफल रहा है. कोविड की परिस्थितियों के बीच 8 महीने से 115 साल पुराने स्टीम इंजन को ट्रैक पर नहीं चलाया गया है.

ऐसे में अब रेलवे की ओर से स्टीम इंजन का ट्रायल किया गया है कि स्टीम इंजन में किसी तरह की कोई खराबी तो नहीं है. स्टीम इंजन के लिए ट्रायल के लिए इसके साथ दो कोच भी लगाए गए थे जिसमें रेलवे के ही तकनीकी कर्मचारियों ने कैथलीघाट तक का सफर किया.

115 साल पुराना है लोकोमोटिव इंजन

केसी-520 स्टीम लोकोमोटिव इंजन 115 साल पुराना है. 1905 में अंग्रेजों ने शिमला से कैथलीघाट के बीच चलाया था. 1971 के बाद 30 सालों तक वर्कशॉप में खड़ा रहा जिसके बाद 2001 में दोबारा बन कर तैयार हुआ.

यह इंजन 41 टन का है और इसकी क्षमता 80 टन तक खींचने की है. स्टीम लोकोमोटिव इंजन से छुक-छुक की आवाज आती है. स्टीम इंजन में भाप के पिस्टन में आगे पीछे चलने और बाहर निकलने से छुक-छुक की आवाज पैदा होती है.

स्टीम इंजन में बजने वाली सीटी भाप के दबाव से बजती है. डीजल इंजन के मुकाबले स्टीम इंजन की सीटी ज्यादा तीखी और दूर तक सुनाई देने वाली होती है जो सबके लिए आकर्षण का केंद्र रहती है. रेलवे की ओर से बुकिंग पर ही स्टीम इंजन को ट्रैक पर चलाया जाता है.

स्टीम इंजन में विदेशी सैलानी पटक कर सफर करने में खासी रुचि दिखाते हैं. 1 लाख 15 हजार रुपये में इसकी बुकिंग करते हैं और शिमला से कैथलीघाट तक का सफर करने के लिए प्राथमिकता देते हैं. शिमला रेलवे स्टेशन के अधीक्षक प्रिंस सेठी ने बताया कि आज ट्रायल के लिए स्टीम इंजन को ट्रैक पर चलाया गया था और यह ट्रायल पूरी तरह से सफल रहा है.

पढ़ें: आगामी 2 दिनों में प्रदेश के 8 जिलों में मौसम रहेगा खराब, ऊपरी क्षेत्रों में बर्फबारी की संभावना

Last Updated : Nov 2, 2020, 10:35 PM IST
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